कोटद्वार: पौड़ी जनपद के कोटद्वार में भारत नामदेव चक्रवर्ती सम्राट राजा भरत की जन्म स्थली एवं महर्षि कण्व की तपोस्थली में तीन दिवसीय बसंतोत्सव की धूम रही. कण्वाश्रम में मालिनी नदी के तट पर हर साल बसंत पंचमी के दिन उत्सव मनाया जा जात है. शिक्षा विद्वान जगदीश प्रसाद कुकरेती बताते हैं कि गढ़वाल के प्रथम विधायक भक्त दर्शन बड़थ्वाल के समय से पंचमी के दिन मेला लगता आ रहा है. मेले के दूसरे दिन स्कूलों की ओर से सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है.
गढ़वाल के प्रसिद्ध बसंत पंचमी का मेले में दूसरे दिन हजारों की संख्या में लोग पहुंचे. इस दौरान स्कूली छात्रों ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने लोगों का खूब मनमोहा. वहीं, आंशुकला समिति के कलाकारों ने भी गढ़वाली नृत्य गीतों ने श्रृताओं को झूमने पर मजबूर कर दिया. कण्वाश्रम मेले अब दूर दराज क्षेत्र से भी लोग कण्वाश्रम मेले में पहुंचे.
घरों में बनते हैं पकवान: बसंत पंचमी के दिन लोग घर की चौखट पर गोबर के साथ जौ की बाली से पूजा करते हैं. जिसके बाद रसोई में नए अनाज से पकवान बनाए जाते हैं. गढ़वाल क्षेत्र में यह प्रथा प्राचीन काल से ही चली आ रही है.
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भगवान इंद्र ने की थी तपस्या: ऋषि वशिष्ठ ने इस नगरी को अपनी तोपस्थली बनाया था. तपस्या को भंग करने के लिए स्वर्ग से आई मेनका नाम की अप्सरा ऋषि वशिष्ठ की तपस्या भंग करने में सफल हुई. जिसके बाद मेनका व ऋषि वशिष्ठ के मिलने से शकुन्तला नाम की कन्या की उत्पत्ति हुई. ऋषि वशिष्ठ ने अंतिम समय में शकुन्तला को ऋषि कण्व के आश्रम में सौंप दिया. मालिनी नदी के तट पर स्थित कण्वाश्रम का वर्णन भारत के प्राचीन ग्रंथों, पुराणों, महर्षि व्यास द्वारा रचित महाभारत तथा महान कवि कालिदास द्वारा अभिज्ञान शाकुन्तलम में व स्कन्द पुराण के केदारखंड के 57वें अध्याय में भी वर्णन इस प्रकार किया गया है.