श्रीनगरः प्राचीन कमलेश्वर महादेव मंदिर में बैकुंठ चतुर्दशी (Baikunth Chaturdashi) के मौके पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ रही है. श्रद्धालु लाइन में लगकर भगवान शिव के दर्शन कर रहे हैं. जबकि, शाम होते ही खड़ा दीया अनुष्ठान भी शुरू हो जाएगा. इस बार अनुष्ठान में 185 निसंतान दंपति (Childless Couples) संतान कामना के लिए खड़ा दीया अनुष्ठान कर रहे हैं. इसके अलावा श्रद्धालु मंदिर में 365 रूई की बाती भी चढ़ाएंगे.
कमलेश्वर महादेव मंदिर (Kamleshwar Mahadev Temple) के महंत आशुतोष पुरी ने बताया कि 185 दंपतियों ने खड़ा दीया अनुष्ठान (Khada Diya Ritual) के लिए पंजीकरण करवाया है. दंपतियों को गोधुली वेला में पूजा करने के बाद दीपक दिए जाएंगे. इस बार बैकुंठ चतुर्दशी बुधवार सुबह नौ बजे से गुरुवार सुबह 12 बजे तक रहेगा. इस दौरान मंदिर में पूजाएं होंगी. मंदिर में परिवार की खुशहाली के लिए रूई की बातियां भी भगवान शिव को अर्पित की जाएगी. इसमें पूरे साल के हिसाब से यानी 356 बातियां चढ़ाई जाएगी.
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कमलेश्वर महादेव मंदिर में होगी भजन संध्याः उत्तराखंड क्रांति दल के केंद्रीय कोषाध्यक्ष मोहन काला की ओर से कमलेश्वर महादेव मंदिर में सहस्र कमल पूजन, भजन संध्या और भंडारे का आयोजन किया जाएगा. बुधवार रात आठ बजे से जन कल्याण के लिए एक हजार ब्रह्मकमल चढ़ाए जाएंगे. रात 9 बजे से भजन और जागरण होगा. वहीं, 18 नवंबर की सुबह 5 से दोपहर 12 बजे तक भंडारा चलेगा.
निसंतान दंपति की भरती है गोदः मान्यता है कि बैकुंठ चतुर्दशी के दिन जो भी निसंतान दंपति सच्चे मन से भगवान शिव की आराधना करता है तो उसे संतान की प्राप्ति होती है. इस दौरान निसंतान दंपति खड़े दीपक का अनुष्ठान करते हैं, उन्हें मन चाहा फल मिलता है. इस पूजा में रात भर दंपतियों को हाथ में जलता हुआ दीया रख कर भगवान शिव की पूजा करनी होती है. जिसे खड़े दीये का अनुष्ठान कहा जाता है.
भगवान विष्णु ने की थी शिव का आराधनाः मान्यता है कि भगवान विष्णु ने सुर्दशन चक्र की प्राप्ति के लिए कमलेश्वर मंदिर में भगवान शिव की आराधना की थी. इस दौरान व्रत के अनुसार भगवान विष्णु ने 100 कमलों को शिव आराधना के दौरान शिवलिंग पर चढ़ाना था, लेकिन तब भगवान शिव ने भक्ति की परीक्षा लेने के लिए 99 कमलों के बाद एक कमल छुपा दिया. जिसके बाद कमल अर्पण करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने नेत्र को चढ़ा दिया. जिसके बाद से ही भगवान विष्णु के नेत्रों को कमलनयन कहा जाता है.
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निसंतान दंपति ने देखी थी भगवान विष्णु की साधनाः भगवान विष्णु की भक्ति से खुश होकर भगवान शिव ने उन्हें सुर्दशन चक्र प्रदान किया था. तब भगवान विष्णु की इस पूजा को एक निसंतान दंपति भी देख रहा था. जिसके बाद उन्होंने भी इस विधि-विधान से भगवान की पूजा अर्चना की. जिसके बाद उन्हें पुत्र रत्न की प्रप्ति हुई.
बड़ी संख्या में कमलेश्वर मंदिर पहुंचते हैं श्रद्धालुः एक और मान्यता के अनुसार त्रेता युग में भगवान राम ने ब्रह्महत्या के पाप से बचने के लिए भगवान शिव की पूजा अर्चना की. जिससे उन्हें ब्रह्महत्या से मुक्ति मिली. द्वापर युग में भगवान कृष्ण ने जामवंती के कहने पर कमलेश्वर मंदिर में 'खड़े दीये' का अनुष्ठान किया. जिसके बाद उन्हें स्वाम नाम के पुत्र की प्राप्ति हुई. आज भी कलयुग में श्रद्धालु इन मान्यताओं को मानते हैं.
बता दें कि इस बार ऐतिहासिक बैकुंठ चतुर्दशी मेला एवं विकास प्रदर्शनी का आयोजन नहीं किया गया है. कोरोनाकाल से पहले तक श्रीनगर में भव्य मेला और विकास प्रदर्शनी लगती थी. जहां पर सास्कृतिक कार्यक्रम से लेकर खेलकूद आदि की प्रतियोगिताएं होती थी. साथ ही मेले में कई प्रकार की दुकाने सजती थी. जहां दूर-दूर से लोग खरीददारी करने पहुंचते थे, लेकिन इस बार इस मेले का आयोजन नहीं किया जा रहा है.