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World Labor Day: भगवान भरोसे गौला के मजदूर, आखिर कौन सुनेगा दर्द?

यूं तो हर साल विश्व मजदूर दिवस मजदूरों को उनके अधिकारों के प्रति जागृत करने के लिए मनाया जाता है लेकिन कुमाऊं की सबसे बड़ी गौला नदी में उप खनिज निकासी का काम करने वाले मजदूरों के हाल ठीक नहीं है. गौला नदी में मजदूरों से काम कराने वाली कार्यदायी संस्था वन विकास निगम की ओर से मजदूरों को कोई सुविधा नहीं दी जा ही है.

World Labor Day 2022
विश्व मजदूर दिवस
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Published : May 1, 2022, 9:06 AM IST

Updated : May 1, 2022, 11:54 AM IST

हल्द्वानी: दुनिया भर में हर साल आज के दिन यानी 1 मई को विश्व मजदूर दिवस (world labor day 2022 ) मनाया जाता है. विश्व मजदूर दिवस को श्रम दिवस भी कहा जाता है. मजदूर दिवस या पहली बार 1 मई को 1886 में मनाया गया था. तो वहीं, भारत में मजदूर दिवस पहली बार 1 मई 1923 को मनाया गया था.मजदूर दिवस मनाने का उद्देश्य मजदूरों को मिलने वाला अधिकार कैसे मिल सके. मजदूर दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य मजदूरों में उनके अधिकार के प्रति जागृत करना है, लेकिन लगातार बढ़ती महंगाई मजदूरों का निवाला छीनने का काम कर रही है.

कुमाऊं की सबसे बड़ी गौला नदी की बात करें तो नदी से होने वाले उप खनिज निकासी में उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार सहित कई राज्यों के मजदूर, मेहनत कर अपना और अपने परिवार का पेट पालते हैं. गौला नदी में करीब 20 हजार से अधिक मजदूर हैं, जो हाड़तोड़ मेहनत से नदी में खनन कर ट्रकों में उप खनिज लोड कर के रोजाना ₹300 से लेकर ₹500 तक मजदूरी कमाते हैं. मजदूरों की मेहनत के बदौलत प्रदेश सरकार को हर साल खनन से करोड़ों के राजस्व की प्राप्ति होती है, लेकिन सरकार है कि इन मजदूरों की सुध नहीं ले रही है.

गौला नदी के मजदूरों का दर्द.

गौला नदी में मजदूरों से काम कराने वाली कार्यदायी संस्था वन विकास निगम द्वारा जाड़े में उनको ठंड से बचने के लिए कंबल, जूते, जलाने के लिए लकड़ी, शुद्ध पेयजल, चिकित्सा सुविधा और मजदूरों के बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था सहित कई अन्य प्रकार की सुविधा उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी है. लेकिन विभाग ने जिम्मेदारी से मुंह मोड़ रखा है. यहां तक की इन मजदूरों को मिलने वाला अपना हक और अधिकार नहीं मिल पा रहा है.

मजदूरों का आरोप है कि सरकार द्वारा उनको कई तरह की सुविधा दिए जाने का वादा तो किया जाता है, लेकिन उनको सुविधा नहीं मिल रही है. जाड़े में केवल उनको एक कंबल दिया जाता है. उसके बाद विभाग और सरकार मुंह फेर लेती है. पानी पीने के लिए दूर-दूर से साइकिल से ढोकर लाना पड़ता है. परिवार में किसी के बीमार पड़ने के स्थिति में मजदूरी नहीं हो पाती है और ना ही कोई इलाज की सुविधा है. उनको कई साल से जूता और ग्लव्स तक नहीं मिला है. साथ ही उनको उचित मजदूरी भी नहीं मिल पा रही है.
पढ़ें- सुरंगों का जाल कहीं पहाड़ों के लिए ना बन जाए खतरा! वैज्ञानिकों ने किया आगाह

श्रम विभाग के कमिश्नर उत्तराखंड संजय खेतवाल का कहना है कि माइनिंग कार्य से जुड़े मजदूर केंद्रीय श्रम मंत्रालय के अंतर्गत आते हैं, जहां माइनिंग से जुड़े श्रमिकों की समस्याओं का समाधान डीएलसी सेंट्रल देहरादून के माध्यम से की जाती है. गोला नदी से जुड़े मजदूरों के उत्पीड़न का कोई मामला आता है तो डीएलसी केंद्रीय श्रम विभाग देहरादून में शिकायत शिकायत दर्ज करा सकते हैं. जहां केंद्रीय श्रम विभाग द्वारा कार्रवाई की जाएगी.

बंधुआ मजदूरों को कराया मुक्त: श्रम आयुक्त संजय खेतवाल ने बताया कि बंधुआ मजदूरों की संख्या में काफी कमी आई है. उन्होंने कहा कि जहां कहीं बंधुआ मजदूरों की शिकायत मिलती है, तो तुरंत कार्रवाई कर उनको मुक्त कराया जाता है. तत्काल सहायता के तौर पर ₹20 हजार भी दिए जाते हैं. उसके बाद जिसके बाद उनको पुनर्वास की व्यवस्था कराई जाती है.

World Labor Day 2022
बंधुआ मजदूरों को मुक्त कराने का आंकड़ा

हल्द्वानी: दुनिया भर में हर साल आज के दिन यानी 1 मई को विश्व मजदूर दिवस (world labor day 2022 ) मनाया जाता है. विश्व मजदूर दिवस को श्रम दिवस भी कहा जाता है. मजदूर दिवस या पहली बार 1 मई को 1886 में मनाया गया था. तो वहीं, भारत में मजदूर दिवस पहली बार 1 मई 1923 को मनाया गया था.मजदूर दिवस मनाने का उद्देश्य मजदूरों को मिलने वाला अधिकार कैसे मिल सके. मजदूर दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य मजदूरों में उनके अधिकार के प्रति जागृत करना है, लेकिन लगातार बढ़ती महंगाई मजदूरों का निवाला छीनने का काम कर रही है.

कुमाऊं की सबसे बड़ी गौला नदी की बात करें तो नदी से होने वाले उप खनिज निकासी में उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार सहित कई राज्यों के मजदूर, मेहनत कर अपना और अपने परिवार का पेट पालते हैं. गौला नदी में करीब 20 हजार से अधिक मजदूर हैं, जो हाड़तोड़ मेहनत से नदी में खनन कर ट्रकों में उप खनिज लोड कर के रोजाना ₹300 से लेकर ₹500 तक मजदूरी कमाते हैं. मजदूरों की मेहनत के बदौलत प्रदेश सरकार को हर साल खनन से करोड़ों के राजस्व की प्राप्ति होती है, लेकिन सरकार है कि इन मजदूरों की सुध नहीं ले रही है.

गौला नदी के मजदूरों का दर्द.

गौला नदी में मजदूरों से काम कराने वाली कार्यदायी संस्था वन विकास निगम द्वारा जाड़े में उनको ठंड से बचने के लिए कंबल, जूते, जलाने के लिए लकड़ी, शुद्ध पेयजल, चिकित्सा सुविधा और मजदूरों के बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था सहित कई अन्य प्रकार की सुविधा उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी है. लेकिन विभाग ने जिम्मेदारी से मुंह मोड़ रखा है. यहां तक की इन मजदूरों को मिलने वाला अपना हक और अधिकार नहीं मिल पा रहा है.

मजदूरों का आरोप है कि सरकार द्वारा उनको कई तरह की सुविधा दिए जाने का वादा तो किया जाता है, लेकिन उनको सुविधा नहीं मिल रही है. जाड़े में केवल उनको एक कंबल दिया जाता है. उसके बाद विभाग और सरकार मुंह फेर लेती है. पानी पीने के लिए दूर-दूर से साइकिल से ढोकर लाना पड़ता है. परिवार में किसी के बीमार पड़ने के स्थिति में मजदूरी नहीं हो पाती है और ना ही कोई इलाज की सुविधा है. उनको कई साल से जूता और ग्लव्स तक नहीं मिला है. साथ ही उनको उचित मजदूरी भी नहीं मिल पा रही है.
पढ़ें- सुरंगों का जाल कहीं पहाड़ों के लिए ना बन जाए खतरा! वैज्ञानिकों ने किया आगाह

श्रम विभाग के कमिश्नर उत्तराखंड संजय खेतवाल का कहना है कि माइनिंग कार्य से जुड़े मजदूर केंद्रीय श्रम मंत्रालय के अंतर्गत आते हैं, जहां माइनिंग से जुड़े श्रमिकों की समस्याओं का समाधान डीएलसी सेंट्रल देहरादून के माध्यम से की जाती है. गोला नदी से जुड़े मजदूरों के उत्पीड़न का कोई मामला आता है तो डीएलसी केंद्रीय श्रम विभाग देहरादून में शिकायत शिकायत दर्ज करा सकते हैं. जहां केंद्रीय श्रम विभाग द्वारा कार्रवाई की जाएगी.

बंधुआ मजदूरों को कराया मुक्त: श्रम आयुक्त संजय खेतवाल ने बताया कि बंधुआ मजदूरों की संख्या में काफी कमी आई है. उन्होंने कहा कि जहां कहीं बंधुआ मजदूरों की शिकायत मिलती है, तो तुरंत कार्रवाई कर उनको मुक्त कराया जाता है. तत्काल सहायता के तौर पर ₹20 हजार भी दिए जाते हैं. उसके बाद जिसके बाद उनको पुनर्वास की व्यवस्था कराई जाती है.

World Labor Day 2022
बंधुआ मजदूरों को मुक्त कराने का आंकड़ा
Last Updated : May 1, 2022, 11:54 AM IST
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