हल्द्वानीः आपने बाजारों में अभी तक बटन मशरूम का नाम सुना होगा या खाया होगा, लेकिन हल्द्वानी क्षेत्र के गोरापड़ाव की रहने वाली महिलाएं पहली बार ऑयस्टर मशरूम का उत्पादन कर रही हैं. जो पूरी तरह से जैविक है. इतना ही नहीं ऑयस्टर मशरूम पौष्टिकता से भी भरा है. जो बाजारों में भी ऊंचे दाम पर बिक रहा हैं. इस जैविक मशरूम के सूखने के बाद उसकी बाजारों में ₹800 से लेकर ₹1000 प्रति किलो तक की डिमांड मिल रही है. ऐसे में अब सहायता समूह की महिलाएं जैविक मशरूम के माध्यम से आत्मनिर्भर बन रही हैं.
ऑयस्टर मशरूम से नार्मल मशरूम से कैसे अलग है
मनोकामना सहायता समूह की महिलाएं पहली बार नैनीताल जिले के गोरापड़ाव में ऑयस्टर मशरूम के उत्पादन में जुटी हैं. इस मशरूम की खासियत यह है कि वह बटन मशरूम के तुलना में अलग है. मशरूम उत्पादन के दौरान किसी तरह का कोई रसायनिक खाद का प्रयोग नहीं किया जा रहा है. सहायता समूह की महिलाओं की ओर से तैयार किए गए जैविक ऑयस्टर मशरूम की डिमांड भी काफी मिल रही है. फिलहाल, सहायता समूह की महिलाएं अपने मशरूम को हल्द्वानी मंडी के अलावा आसपास के क्षेत्रों में बिक्री कर रही हैं.
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₹800 से लेकर ₹1000 प्रति किलो तक मिल रहा सूखा मशरूम
सहायता समूह की महिलाओं का कहना है कि फिलहाल अभी मशरूम उत्पादन का छोटे स्तर पर किया जा रहा है. समूह की आधा दर्जन महिलाएं मशरूम की खेती कर रही हैं. बाजारों में मिलने वाले बटन मशरूम की तुलना में अधिक पौष्टिक होने के चलते कच्चे मशरूम का दाम ₹160 प्रति किलो रखा गया है, जबकि यही मशरूम सूखने के बाद बाजारों में ₹800 से लेकर ₹1000 किलो तक डिमांड है.
जिम में सेहत बनाने वाले के काफी फायदेमंद होता है सूखा मशरूम
सूखे मशरूम की डिमांड जिम में सेहत बनाने वाले लोगों के लिए काफी फायदेमंद बताई जाती है. जिम संचालकों की ओर से सूखे मशरूम की डिमांड की जा रही है. इसके अलावा ये मशरूम आचार बनाने के काम भी आ रहा है, जिसका अचार काफी स्वादिष्ट होता है.
कैसे कर सकते हैं ऑर्गेनिक ऑयस्टर मशरूम का उत्पादन
- ऑयस्टर मशरूम का छोटे से कमरे में उत्पादन कर सकते हैं.
- बटन मशरूम के लिए अधिक जगह के साथ-साथ नमी की आवश्यकता पड़ती है.
- आमतौर पर देखा गया है कि यूरिया के साथ कंपोस्ट खाद का मिश्रण कर बटन मशरूम को उगाया जाता है, लेकिन ऑयस्टर मशरूम में केवल भूसे को भीगा कर एक पॉलिथीन के बैग में मशरूम का बीज डालकर उगाया जाता है. जो छाते की तौर पर उत्पादन होता है.
- जहां बटन मशरूम का प्रयोग 24 घंटे के भीतर की जाती है, वहीं ऑयस्टर मशरूम की खासियत यह है कि इसे सूखा कर सूप के तौर पर प्रयोग में ले सकते हैं.
- बताया जाता है कि ऑयस्टर मशरूम सूप की डिमांड कई बड़े रेस्टोरेंट और होटलों में की जाती है.
- आमतौर पर देखा गया है कि बटन मशरूम नहीं बिकने पर खराब हो जाता है.
- ऑयस्टर मशरूम खराब नहीं होता है और इसे धूप में सूखाकर पैकिंग कर सप्लाई कर सकते हैं या इसका चूर्ण बनाकर बाजारों में बेच सकते हैं.
जैविक मशरूम की खेती महिलाओं के लिए साबित होगी वरदान
जैविक खेती के ट्रेनर अनिल पांडे के मुताबिक, जैविक मशरूम महिलाओं के लिए वरदान साबित हो सकता है. क्योंकि, ऑयस्टर मशरूम पूरी तरह से जैविक विधि से तैयार किया जाता है. बटन मशरूम की तुलना में ऑयस्टर मशरूम में पौष्टिकता अधिक है. ऐसे में अगर इस मशरूम की खेती को बड़े पैमाने पर कर प्रचार-प्रसार किया जाए तो लोगों का अपना आजीविका का साधन बन सकता है.
नॉर्मल मशरूम से ज्यादा स्वादिष्ट और पौष्टिक है ऑयस्टर मशरूम
जानकारों की मानें तो अभी तक लोगों ने बटन मशरूम खाया है, लेकिन ऑयस्टर मशरूम में अधिक पोषक तत्व के अलावा विटामिन होने की जानकारी लोगों तक नहीं है. ऐसे में आने वाले दिनों में लोग ऑयस्टर मशरूम का सेवन ज्यादा करेंगे.
ऑर्गेनिक मशरूम उत्पादन को कैसे बनाया जा सकता है करियर
ऑर्गेनिक मशरूम उत्पादन उत्तराखंड में नया कारोबार है. उत्तराखंड के पौड़ी और देहरादून में ही यह काम सबसे पहले शुरू हुआ, लेकिन लॉकडाउन के बाद इस काम को अब प्रवासी लोग भी खूब अपना रहे हैं. आलम ये है कि चमोली, उत्तरकाशी और पिथौरागढ़ जैसे पहाड़ी जनपदों में अब कई जगहों पर मशरूम का उत्पादन तेजी से हो रहा है. इस काम में कम लागत में अच्छी इनकम हो सकती है. लिहाजा इसको शुरू करने के लिए मात्र 15 से ₹20 हजार की जरूरत और कुछ 3000 स्क्वायर फीट की जगह काफी है.
युवाओं कैसे हो सकते हैं मशरूम फार्मिंग की तरफ आकर्षित
उत्तराखंड के पहाड़ी जनपदों में युवाओं के लिए रोजगार नहीं है, यह बात सरकार भी मानती है. लिहाजा अब मशरूम के छोटे से कारोबार को बड़ा रूप देने का काम पहाड़ के युवक-युवतियां बखूबी कर रहे हैं. बस जरूरत है कि सरकार इन्हें समय-समय पर प्रोत्साहन देती रहे.