हल्द्वानी: नैनीताल के हल्द्वानी में ग्रामीण अब पिरूल को जंगल से हटाने का कार्य कर रहे हैं. हल्द्वानी के वन क्षेत्रों में चीड़ ने विशाल रूप ले लिया है. इसके साथ ही जिन इलाकों में चीड़ के पेड़ हैं उन इलाकों में दूसरे वनस्पति भी खत्म हो रही है. यही वजह है कि अब लोग चीड़ के पिरूल को जंगल से हटाने के साथ-साथ चीड़ के खात्मे के लिए भी आवाज उठाने लगे हैं.
हल्द्वानी के स्थानीय चंदन नयाल कहते हैं कि पिरूल (चीड़ की पत्ति) का अब तक कोई व्यवसायिक उपयोग नहीं किया जाता है. नैनीताल जिले के सुदूरवर्ती गांवों में ग्रामीण पिरूल को जंगल से हटाकर किनारे करने के काम में जुटे हुए हैं जिससे जंगलों में आग लगने का खतरा कम हो सके. उन्होंने कहा कि चीड़ आज उत्तराखंड के जंगलों से खेत खलिहानों तक फैल चुका है, जो परंपरागत मिश्रित वनों के साथ ही जैव विविधता के लिए भी खतरनाक साबित हो रहा है. इससे निकलना वाला लीसा और इसकी पत्तियां अत्यधिक ज्वलनशील होने के कारण गर्मी के मौसम में जंगलों की आग को बढ़ाने में सहायक होते हैं. जानकारों का मानना है कि जंगल को आग से बचाने के लिए चीड़ की पत्तियों को हटाया जाना जरूरी है.
पर्यावरणविद् डॉ. पी कुमार का कहना है कि पिरूल को कई प्रकार के व्यवसायिक गतिविधियों में भी लाया जा सकता है. वन विभाग को भी पिरूल के व्यवसायिक उपयोग के लिए ठोस कदम उठाना चाहिए. उत्तराखंड के वनों में हर साल वनाग्नि की घटना से करोड़ों की वन संपदा खाक हो जाती है. दूसरी तरफ कई लोग अपनी जान भी गंवा देते हैं. जंगलों की इस आग से पर्यावरण को भी भारी नुकसान पहुंचता है. वनाग्नि की घटनाओं में आम तौर पर चीड़ के पेड़ ही मुख्य कारण होते हैं.
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