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एलीफेंट कॉरिडोर संरक्षण मामले में सुनवाई, हाईकोर्ट ने सरकार को दिए दिशा निर्देश

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एलीफेंट कॉरिडोर संरक्षण को लेकर दी गई याचिका पर सुनवाई की. इस दौरान कोर्ट उत्तराखंड सरकार को कई दिशा निर्देश दिए. हाईकोर्ट मामले की अगली सुनवाई 8 दिसंबर को करेगी. मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ में हुई.

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Published : Sep 1, 2022, 6:31 PM IST

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट (Uttarakhand High Court) ने इंडिपेंडेंट मेडिकल इनीशिएटिव संस्था (independent medical initiative organization) की वर्ष 2019 की जनहित याचिका पर सुनवाई (Public interest litigation hearing) की. मामले में कोर्ट ने रामनगर-मोहन मार्ग पर स्थित, मलानी-कोटा, चिल्किया-कोटा, दक्षिण पातलीदून-चिल्किया हाथी कॉरिडोर पर क्षमता से अधिक व्यावसायिक निर्माण और रात्रि में अत्यधिक ट्रैफिक के संबंध में, भारत सरकार के प्रोजेक्ट एलिफेंट की सर्वे रिपोर्ट (Project Elephant survey report), सड़क के सेटेलाइट मानचित्र और सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2020 में एलीफेंट कॉरिडोर संरक्षण (Elephant Corridor Protection) के लिए दिए गए दिशा निर्देशों के तहत विस्तृत आदेश पारित किया हैं.

कोर्ट ने इस तथ्य का भी संज्ञान लिया कि बीते दशकों में इस क्षेत्र में हुए अंधाधुंध अवैज्ञानिक व्यवसायिक निर्माण से हाथियों को नदी तक पहुंचने में अपना रास्ता बार बार बदलना पड़ा है. जिससे उनके व्यवहार में भी परिवर्तन आया है. सारे तथ्यों और रिपोर्ट का संज्ञान लेने के बाद हाईकोर्ट की खंडपीठ ने निम्न आदेश जारी किए हैं.

1- हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को रामनगर मोहान रोड पर जिम कॉर्बेट पार्क (Jim Corbett Park) से लगते हुए हाथी कॉरिडोर वाले इलाके को इको सेंसिटिव जोन (eco sensitive zone) का दर्जा देने पर विचार करने का आदेश दिया.

2- कोर्ट ने भारत सरकार और राज्य सरकार को आदेश दिया है कि रामनगर-मोहान रोड पड़ने वाले हाथी कॉरिडोर के इलाकों में अब नए होटल, रिजॉर्ट, रेस्टोरेंट का निर्माणों की किसी भी रूप में अधिकारी अनुमति ना दें.

3- कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया कि हाथियों के पारंपरिक कॉरिडोर, जो प्रोजेक्ट एलीफेंट द्वारा इस इलाके में सीमांकन किए गए हैं, उनका तुरंत संरक्षण शुरू करें.

4- मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक उत्तराखंड, डीएफओ रामनगर, डीएफओ अल्मोड़ा और निदेशक कॉर्बेट पार्क को आदेशित किया है कि एलीफेंट कॉरिडोर वाली इस रोड पर रात में 10 बजे से सुबह 4 बजे तक पर्याप्त नाइट गार्ड की व्यवस्था की जाए. ताकि हाथी आसानी से कोसी नदी तक पहुंच सके और रात में अवांछित ट्रैफिक पर लगाम लगाएं.

5- कोर्ट ने भारत सरकार और राज्य सरकार को आदेशित किया है कि इस इलाके में हाथियों के पास, अंडरपास की व्यवस्था किए बिना भविष्य में किसी सड़क का निर्माण ना किया जाए, जब तक कि पर्याप्त अबाध सेफ पैसेज की व्यवस्था न हो.

6- कोर्ट ने कहा पूर्व में ही उनके द्वारा हाथियों को सड़क पार करते समय वन विभाग द्वारा मिर्च के पाउडर का प्रयोग करने पर रोक लगा दी गई थी, जो कि जारी रहेगी, कोर्ट ने पुनः आदेश किया कि हाथियों को सड़क पर आने से रोकने के लिए अमानवीय तरीकों का प्रयोग किसी भी हाल में न किया जाए.

7- राज्य के वन सचिव को भी कोर्ट ने आदेश दिया है कि अगर जरूरत पड़े तो एलीफेंट कॉरिडोर में हाथियों के अबाध आवागमन में बाधा बनने वाले निर्माण का अधिग्रहण कर सरकार मुआवजा देकर उस भूखंड को अपने नियंत्रण में ले लें.

8- कोर्ट ने सख्त निर्देश दिए हैं कि जिन अधिकारियों को इन आदेशों के पालन के लिए जिम्मेदार बनाया गया है. वह सभी कोर्ट के आदेशों का पूर्ण अनुपालन सुनिश्चित करें और कोर्ट के आदेशों की अनुपालन रिपोर्ट 8 दिसंबर 2022 तक बिंदुवार करें करें.

उत्तराखंड हाईकोर्ट मामले की अगली सुनवाई 8 दिसंबर को करेगी. मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ में हुई. मामले के अनुसार दिल्ली की इंडिपेंडेंट्स मेडिकल इंटीवेट सोसाइटी ने इस मामले में जनहित याचिका दायर की है. इसमें कहा गया कि प्रदेश के 11 हाथी कॉरिडोर मार्गों पर अतिक्रमण कर वहां व्यावसायिक भवन बनाए जा चुके हैं.

इसमें तीन हाथी कॉरिडोर रामनगर-मोहान सीमा से लगते हुए 27 किमी हाईवे में स्थित हैं. जबकि रामनगर के ढिकुली क्षेत्र में पड़ने वाले कॉरिडोर में 150 से अधिक व्यावसायिक निर्माण के चलते उक्त परिक्षेत्र पूरी तरह बंद हो चुका है. अल्मोड़ा जिले के मोहान क्षेत्र में निर्माण होने से रात्रि में वाहनों की आवाजाही के चलते हाथियों को कोसी नदी में पहुंचने में बाधा हो रही है. एक परिपक्व हाथी को प्रतिदिन 225 लीटर पानी की आवश्यकता होती है. व्यावसायिक भवनों में रात्रि में होने वाली शादियों और पार्टी में बजने वाले संगीत से वन्यजीवों पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है.

जनहित याचिका में यह भी कहा गया कि वन विभाग द्वारा जंगलों में मानव दखलअंदाजी (human interference in the forest) को रोकने के बजाय हाथियों को हाईवे पर आने से रोका जा रहा है. इसके लिए मिर्च पाउडर और पटाखों का प्रयोग किया जा रहा है. इससे हाथियों के व्यवहार में परिवर्तन आ रहा है और वे हिंसक हो रहे हैं. बीते 1 साल में हाथियों की हमले की 20 से अधिक घटनाएं हो चुकी हैं.

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट (Uttarakhand High Court) ने इंडिपेंडेंट मेडिकल इनीशिएटिव संस्था (independent medical initiative organization) की वर्ष 2019 की जनहित याचिका पर सुनवाई (Public interest litigation hearing) की. मामले में कोर्ट ने रामनगर-मोहन मार्ग पर स्थित, मलानी-कोटा, चिल्किया-कोटा, दक्षिण पातलीदून-चिल्किया हाथी कॉरिडोर पर क्षमता से अधिक व्यावसायिक निर्माण और रात्रि में अत्यधिक ट्रैफिक के संबंध में, भारत सरकार के प्रोजेक्ट एलिफेंट की सर्वे रिपोर्ट (Project Elephant survey report), सड़क के सेटेलाइट मानचित्र और सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2020 में एलीफेंट कॉरिडोर संरक्षण (Elephant Corridor Protection) के लिए दिए गए दिशा निर्देशों के तहत विस्तृत आदेश पारित किया हैं.

कोर्ट ने इस तथ्य का भी संज्ञान लिया कि बीते दशकों में इस क्षेत्र में हुए अंधाधुंध अवैज्ञानिक व्यवसायिक निर्माण से हाथियों को नदी तक पहुंचने में अपना रास्ता बार बार बदलना पड़ा है. जिससे उनके व्यवहार में भी परिवर्तन आया है. सारे तथ्यों और रिपोर्ट का संज्ञान लेने के बाद हाईकोर्ट की खंडपीठ ने निम्न आदेश जारी किए हैं.

1- हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को रामनगर मोहान रोड पर जिम कॉर्बेट पार्क (Jim Corbett Park) से लगते हुए हाथी कॉरिडोर वाले इलाके को इको सेंसिटिव जोन (eco sensitive zone) का दर्जा देने पर विचार करने का आदेश दिया.

2- कोर्ट ने भारत सरकार और राज्य सरकार को आदेश दिया है कि रामनगर-मोहान रोड पड़ने वाले हाथी कॉरिडोर के इलाकों में अब नए होटल, रिजॉर्ट, रेस्टोरेंट का निर्माणों की किसी भी रूप में अधिकारी अनुमति ना दें.

3- कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया कि हाथियों के पारंपरिक कॉरिडोर, जो प्रोजेक्ट एलीफेंट द्वारा इस इलाके में सीमांकन किए गए हैं, उनका तुरंत संरक्षण शुरू करें.

4- मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक उत्तराखंड, डीएफओ रामनगर, डीएफओ अल्मोड़ा और निदेशक कॉर्बेट पार्क को आदेशित किया है कि एलीफेंट कॉरिडोर वाली इस रोड पर रात में 10 बजे से सुबह 4 बजे तक पर्याप्त नाइट गार्ड की व्यवस्था की जाए. ताकि हाथी आसानी से कोसी नदी तक पहुंच सके और रात में अवांछित ट्रैफिक पर लगाम लगाएं.

5- कोर्ट ने भारत सरकार और राज्य सरकार को आदेशित किया है कि इस इलाके में हाथियों के पास, अंडरपास की व्यवस्था किए बिना भविष्य में किसी सड़क का निर्माण ना किया जाए, जब तक कि पर्याप्त अबाध सेफ पैसेज की व्यवस्था न हो.

6- कोर्ट ने कहा पूर्व में ही उनके द्वारा हाथियों को सड़क पार करते समय वन विभाग द्वारा मिर्च के पाउडर का प्रयोग करने पर रोक लगा दी गई थी, जो कि जारी रहेगी, कोर्ट ने पुनः आदेश किया कि हाथियों को सड़क पर आने से रोकने के लिए अमानवीय तरीकों का प्रयोग किसी भी हाल में न किया जाए.

7- राज्य के वन सचिव को भी कोर्ट ने आदेश दिया है कि अगर जरूरत पड़े तो एलीफेंट कॉरिडोर में हाथियों के अबाध आवागमन में बाधा बनने वाले निर्माण का अधिग्रहण कर सरकार मुआवजा देकर उस भूखंड को अपने नियंत्रण में ले लें.

8- कोर्ट ने सख्त निर्देश दिए हैं कि जिन अधिकारियों को इन आदेशों के पालन के लिए जिम्मेदार बनाया गया है. वह सभी कोर्ट के आदेशों का पूर्ण अनुपालन सुनिश्चित करें और कोर्ट के आदेशों की अनुपालन रिपोर्ट 8 दिसंबर 2022 तक बिंदुवार करें करें.

उत्तराखंड हाईकोर्ट मामले की अगली सुनवाई 8 दिसंबर को करेगी. मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ में हुई. मामले के अनुसार दिल्ली की इंडिपेंडेंट्स मेडिकल इंटीवेट सोसाइटी ने इस मामले में जनहित याचिका दायर की है. इसमें कहा गया कि प्रदेश के 11 हाथी कॉरिडोर मार्गों पर अतिक्रमण कर वहां व्यावसायिक भवन बनाए जा चुके हैं.

इसमें तीन हाथी कॉरिडोर रामनगर-मोहान सीमा से लगते हुए 27 किमी हाईवे में स्थित हैं. जबकि रामनगर के ढिकुली क्षेत्र में पड़ने वाले कॉरिडोर में 150 से अधिक व्यावसायिक निर्माण के चलते उक्त परिक्षेत्र पूरी तरह बंद हो चुका है. अल्मोड़ा जिले के मोहान क्षेत्र में निर्माण होने से रात्रि में वाहनों की आवाजाही के चलते हाथियों को कोसी नदी में पहुंचने में बाधा हो रही है. एक परिपक्व हाथी को प्रतिदिन 225 लीटर पानी की आवश्यकता होती है. व्यावसायिक भवनों में रात्रि में होने वाली शादियों और पार्टी में बजने वाले संगीत से वन्यजीवों पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है.

जनहित याचिका में यह भी कहा गया कि वन विभाग द्वारा जंगलों में मानव दखलअंदाजी (human interference in the forest) को रोकने के बजाय हाथियों को हाईवे पर आने से रोका जा रहा है. इसके लिए मिर्च पाउडर और पटाखों का प्रयोग किया जा रहा है. इससे हाथियों के व्यवहार में परिवर्तन आ रहा है और वे हिंसक हो रहे हैं. बीते 1 साल में हाथियों की हमले की 20 से अधिक घटनाएं हो चुकी हैं.

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