हल्द्वानी: पूरे देश में आज धूमधाम से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाई जा रही है. जन्माष्टमी का त्योहार इस साल 11 और 12 अगस्त को मनाया जा रहा है. यह पर्व तिथि और नक्षत्र अलग-अलग दिन पड़ने की वजह से दो दिन मनाया जाएगा. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर आज हम आपको एक ऐसी जगह के बारे में बताएंगे, जहां भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से जुड़े वृक्षों को संरक्षित किया जा रहा है.
हम सब जानते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण को माखन बहुत पसंद है. भगवान बाल रूप में घरों से चुराकर माखन खाया करते थे. माखन चुराकर भगवान कृष्ण कदंब और कृष्णवट (माखन कटोरी) के वृक्ष पर बैठकर खाते थे. यही कारण है कि इस वृक्ष की पत्तियां कटोरी की आकार की हैं. आज भी कृष्णवट की पत्तियों के तोड़ने पर उसके तने से दूध की तरह तरल पदार्थ निकलता है, जिसे लोग माखन कहते हैं. भगवान को कदंब, मौलश्री और कृष्णवट बहुत प्रिय थे. भगवान अपने गले में वैजयंती की माला और सिर पर मोर पंख धारण करते थे.
कदंब, मौलश्री, कृष्णवट और वैजयंती के वृक्ष अब विलुप्ति की कगार पर हैं. ऐसे में उत्तराखंड वानिकी अनुसंधान संस्थान हल्द्वानी इन वृक्षों का संरक्षण कर रहा है. अनुसंधान केंद्र के वन क्षेत्राधिकारी मदन बिष्ट ने बताया कि उन्होंने पर्यटन को बढ़ावा के उद्देश्य से कृष्ण वाटिका तैयार की है, जिसमें भगवान कृष्ण के प्रिय वैजयंती, कदंब, मौलश्री और कृष्णवट के पेड़ों को संरक्षण किया जा रहा है.
पढ़ें- प्रभु राम के जीवन को बयां कर रही कुमाऊं में बनी देश की पहली रामायण वाटिका
वन क्षेत्राधिकारी मदन बिष्ट की मानें तो कृष्णवट, बैजंती, मौलश्री और कदंब वृक्ष उत्तराखंड में कई जगहों पर पाए जाते हैं, लेकिन अब यह पेड़ पौधे धीरे-धीरे समाप्ति की ओर है. अनुसंधान केंद्र हल्द्वानी इन पौधों को संरक्षण करने का काम कर रहा है. उन्होंने कहा कि इन पेड़ों को आस्था और पर्यावरण की शुद्धता के लिए संजोए रखना जरूरी है.
गौैर हो कि वन अनुसंधान केंद्र ने प्रभु श्री राम की जीवनी दर्शाते हुये देश की पहली रामायण वाटिका की स्थापना भी की है. इस वाटिका में वनस्पतियों के माध्यम से भगवान रामचंद्र की जीवनी को दर्शाया गया है. वाटिका में भगवान वाल्मीकि की मूर्ति की भी स्थापना की गई है, जिसमें बाल्मीकि रामायण में उल्लेख किए गए महत्वपूर्ण पेड़-पौधे और जड़ी-बूटियों के प्रजातियों का संरक्षण करने का काम किया गया है, जिसके तहत वन अनुसंधान केंद्र ने रामायण काल से जुड़े 40 वनस्पतियों का संरक्षण करने का काम किया है.