हल्द्वानी: देवभूमि को औषधि प्रदेश से भी कहा जाता है, लेकिन धीरे-धीरे कई औषधि पौधे विलुप्ति की कगार पर हैं. ऐसे में लालकुआं वन अनुसंधान केंद्र इन औषधि और दुर्लभ वनस्पतियों को संरक्षित करने पर जोर दे रहा है और नर्सरी के माध्यम से इनको संजोय रखने का काम कर रहा है. अलग-अलग भौगोलिक वातावरण से लाए गए तुलसी और मिंट के 42 प्रजातियों को नर्सरी के माध्यम से संरक्षित किया जा रहा है.
अनुसंधान केंद्र के वन क्षेत्राधिकारी नवीन रौतेला ने बताया कि जैव विविधता के क्षेत्र में लालकुआं अनुसंधान केंद्र का बड़ा योगदान है. नर्सरी में देश-विदेश के हजारों पौधों का संरक्षण किया जा रहा है, लेकिन पहली बार उत्तराखंड के लालकुआं वन अनुसंधान केंद्र में देश में विलुप्त हो रहे सगंध पौधे के प्रजाति को संरक्षण का काम किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि नर्सरी में सगंध प्रजाति के 42 पौधों का संरक्षण किया जा रहा है. जिसमें विलुप्त हो रही 14 तुलसी प्रजाति के पौधे है.
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सनातन धर्म में तुलसी को पूजनीय माना जाता है, लेकिन धार्मिक महत्त्व होने के साथ-साथ तुलसी औषधि गुणों से भी भरपूर है. आयुर्वेद में तो तुलसी को उसके औषधीय गुणों के कारण विशेष महत्व दिया जाता है. तुलसी के कई ऐसे प्रजाति है जो विलुप्ति की कगार पर हैं. अनुसंधान केंद्र में मुख्य रूप से काली तुलसी, मरुआ तुलसी, कर्पूर तुलसी, वन तुलसी, राम तुलसी सहित 42 सगंध पौधों का संरक्षण किया जा रहा है.