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उत्तराखंड अधिवक्ता संयुक्त संघर्ष मोर्चा ने हाईकोर्ट शिफ्टिंग का किया विरोध, CM को दिया ज्ञापन

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Published : Nov 1, 2022, 6:43 AM IST

उत्तराखंड अधिवक्ता संयुक्त संघर्ष मोर्चा की तरफ से डीएस मेहता ने मुख्यमंत्री को ज्ञापन देकर नैनीताल से हाईकोर्ट शिफ्ट न करने की मांग की है. ज्ञापन में कहा गया गया है कि नैनीताल से हाईकोर्ट शिफ्ट होने से बड़े स्तर पर पलायन बढ़ेगा जो राज्य की मूल अवधारणा के खिलाफ है.

Nainital High Court
नैनीताल हाईकोर्ट

नैनीताल: मोर्चा के संयोजक दुर्गा सिंह मेहता व अन्य द्वारा दिये गए ज्ञापन में कहा गया है कि उत्तराखंड अपनी विशेष सांस्कृतिक, राजनैतिक, भौगोलिक विरासत व जन आंदोलनों व जनता की शहादत से बना राज्य है. राज्य का गठन पहाड़ से पलायन रोकने व विशेष रूप से पहाड़ के विकास के लिए किया गया. किन्तु अलग राज्य बनने के बाद पहाड़ के लगभग 1000 गांव निर्जन हो चुके हैं. वहीं उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्र में औद्योगिकीकरण व शहरीकरण से 20% खेती की जमीन समाप्त हो चुकी है. औद्योगिक विकास भी केवल उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्रों में ही हुआ. उत्तराखंड बनने के बाद पहाड़ी जिलों से लगभग 32 लाख लोग पलायन कर चुके हैं. पहाड़ में न उद्योग लग सके और न ही वहां राज्य स्तरीय व केन्द्रीय संस्थान खोले गये. उसके उलट कई राजकीय संस्थान पहाड़ से मैदान में शिफ्ट कर दिये गये और पहाड़ में भी जंगली जानवरों के कारण खेती की जमीनें बंजर हो चुकी हैं.

नैनीताल को उत्तराखंड की न्यायिक राजधानी बताया: उत्तराखंड अधिवक्ता संयुक्त संघर्ष मोर्चा ने कहा कि नैनीताल जो कि उत्तराखंड की न्यायिक राजधानी है, सन् 1815 में अंग्रेजों ने कुमाऊं व गढ़वाल को जोड़कर कुमाऊं कमिश्नरी की स्थापना की और उत्तराखंड के सभी न्यायिक व प्रशासनिक कार्य नैनीताल से ही किये जाने लगे. सन् 1862 से नैनीताल को तत्कालीन संयुक्त प्रान्त की राजधानी भी बना दिया गया. नैनीताल का इतिहास पर्यटन से अधिक न्यायिक व प्रशासनिक है. इसलिए उत्तराखंड की स्थापना के समय ही नैनीताल में उत्तराखंड की स्थाई हाईकोर्ट की स्थापना की गई. भवाली में नेशनल लॉ कालेज की स्थापना का भी प्रस्ताव था, लेकिन उसका रुख भी देहरादून की ओर मोड़ दिया गया.

नैनीताल हाईकोर्ट रिवर्स पलायन को प्रेरित कर रहा: आज नैनीताल हाईकोर्ट में रेगुलर वकालत करने वाले अधिवक्ताओं की संख्या लगभग 800 है, जिसमें उत्तराखंड के सभी जिलों से आने वाले 500 अधिवक्ता स्थाई रूप से नैनीताल में रहे हैं. नैनीताल में उत्तराखंड का उच्च न्यायालय होने से उत्तर प्रदेश से आये अधिवक्तागण व मैदानी जिला देहरादून, हरिद्वार व उधम सिंह नगर में रहने वाले अधिवक्ता भी स्थायी रूप से नैनीताल, भवाली, भीमताल, ज्योलीकोट, खुर्पाताल व नजदीकी इलाकों में स्थायी रूप से रहने लगे हैं. यह रिवर्स पलायन का सबसे बड़ा उदाहरण है.
ये भी पढ़ें: हाईकोर्ट शिफ्टिंग मुद्दे की बैठक में हुआ जोरदार हंगामा, नैनीताल में भिड़े वकीलों के दो गुट

नैनीताल हाईकोर्ट शिफ्ट करने का विरोध: नैनीताल में हाईकोर्ट होने की वजह से नैनीताल व उसके आसपास के गांवों के लगभग 10 हजार लोगों को रोजगार मिला हुआ है. लेकिन उत्तराखंड हाईकोर्ट की स्थापना के 22 साल बाद कुछ लोग नैनीताल से हाईकोर्ट शिफ्टिंग की बात कर रहे हैं. नैनीताल में लगभग 250 अधिवक्ताओं को 2008 में चैम्बर मिल चुके और लगभग 250 अधिवक्ताओं के लिए चैम्बर निर्माण का कार्य पूर्ण होने को है. पिछले 22 सालों में नैनीताल हाईकोर्ट पर जनता का हजारों करोड़ रुपये खर्च हो चुका है. भविष्य के लिए हाईकोर्ट को अधिक जमीन की आवश्यकता है तो हाईकोर्ट के नजदीक मैट्रोपोल होटल की लगभग 7 एकड़ जमीन खाली पड़ी है, जिसको सरकार हाईकोर्ट को मुहैया कर सकती है. इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए नैनीताल से हाईकोर्ट शिफ्ट न किया जाए.

नैनीताल: मोर्चा के संयोजक दुर्गा सिंह मेहता व अन्य द्वारा दिये गए ज्ञापन में कहा गया है कि उत्तराखंड अपनी विशेष सांस्कृतिक, राजनैतिक, भौगोलिक विरासत व जन आंदोलनों व जनता की शहादत से बना राज्य है. राज्य का गठन पहाड़ से पलायन रोकने व विशेष रूप से पहाड़ के विकास के लिए किया गया. किन्तु अलग राज्य बनने के बाद पहाड़ के लगभग 1000 गांव निर्जन हो चुके हैं. वहीं उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्र में औद्योगिकीकरण व शहरीकरण से 20% खेती की जमीन समाप्त हो चुकी है. औद्योगिक विकास भी केवल उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्रों में ही हुआ. उत्तराखंड बनने के बाद पहाड़ी जिलों से लगभग 32 लाख लोग पलायन कर चुके हैं. पहाड़ में न उद्योग लग सके और न ही वहां राज्य स्तरीय व केन्द्रीय संस्थान खोले गये. उसके उलट कई राजकीय संस्थान पहाड़ से मैदान में शिफ्ट कर दिये गये और पहाड़ में भी जंगली जानवरों के कारण खेती की जमीनें बंजर हो चुकी हैं.

नैनीताल को उत्तराखंड की न्यायिक राजधानी बताया: उत्तराखंड अधिवक्ता संयुक्त संघर्ष मोर्चा ने कहा कि नैनीताल जो कि उत्तराखंड की न्यायिक राजधानी है, सन् 1815 में अंग्रेजों ने कुमाऊं व गढ़वाल को जोड़कर कुमाऊं कमिश्नरी की स्थापना की और उत्तराखंड के सभी न्यायिक व प्रशासनिक कार्य नैनीताल से ही किये जाने लगे. सन् 1862 से नैनीताल को तत्कालीन संयुक्त प्रान्त की राजधानी भी बना दिया गया. नैनीताल का इतिहास पर्यटन से अधिक न्यायिक व प्रशासनिक है. इसलिए उत्तराखंड की स्थापना के समय ही नैनीताल में उत्तराखंड की स्थाई हाईकोर्ट की स्थापना की गई. भवाली में नेशनल लॉ कालेज की स्थापना का भी प्रस्ताव था, लेकिन उसका रुख भी देहरादून की ओर मोड़ दिया गया.

नैनीताल हाईकोर्ट रिवर्स पलायन को प्रेरित कर रहा: आज नैनीताल हाईकोर्ट में रेगुलर वकालत करने वाले अधिवक्ताओं की संख्या लगभग 800 है, जिसमें उत्तराखंड के सभी जिलों से आने वाले 500 अधिवक्ता स्थाई रूप से नैनीताल में रहे हैं. नैनीताल में उत्तराखंड का उच्च न्यायालय होने से उत्तर प्रदेश से आये अधिवक्तागण व मैदानी जिला देहरादून, हरिद्वार व उधम सिंह नगर में रहने वाले अधिवक्ता भी स्थायी रूप से नैनीताल, भवाली, भीमताल, ज्योलीकोट, खुर्पाताल व नजदीकी इलाकों में स्थायी रूप से रहने लगे हैं. यह रिवर्स पलायन का सबसे बड़ा उदाहरण है.
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नैनीताल हाईकोर्ट शिफ्ट करने का विरोध: नैनीताल में हाईकोर्ट होने की वजह से नैनीताल व उसके आसपास के गांवों के लगभग 10 हजार लोगों को रोजगार मिला हुआ है. लेकिन उत्तराखंड हाईकोर्ट की स्थापना के 22 साल बाद कुछ लोग नैनीताल से हाईकोर्ट शिफ्टिंग की बात कर रहे हैं. नैनीताल में लगभग 250 अधिवक्ताओं को 2008 में चैम्बर मिल चुके और लगभग 250 अधिवक्ताओं के लिए चैम्बर निर्माण का कार्य पूर्ण होने को है. पिछले 22 सालों में नैनीताल हाईकोर्ट पर जनता का हजारों करोड़ रुपये खर्च हो चुका है. भविष्य के लिए हाईकोर्ट को अधिक जमीन की आवश्यकता है तो हाईकोर्ट के नजदीक मैट्रोपोल होटल की लगभग 7 एकड़ जमीन खाली पड़ी है, जिसको सरकार हाईकोर्ट को मुहैया कर सकती है. इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए नैनीताल से हाईकोर्ट शिफ्ट न किया जाए.

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