हल्द्वानी: रोशनी का महापर्व को लेकर लोगों में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है.इस अवसर पर घरों व व्यापारिक प्रतिष्ठानों में मां महालक्ष्मी व भगवान गणेश का पूजन की तैयारी जोरों पर चल रही है.लेकिन कई जगहों और घरों में दीपावली पूजा में गन्ने के बिना पूजा अधूरी मानी जाती है. मान्यता है कि गन्ने में गज लक्ष्मी का वास होता है और जो भी लोग दीपावली के दिन गन्ने को गजलक्ष्मी के स्वरूप में पूजा करता है, हमेशा माता लक्ष्मी उसके घर में वास करती हैं.
कई स्थानों पर घरों में दीपावली पूजन में गन्ना रखने की परंपरा भी है. मीठे रस से भरा गन्ना पूजा में रखा जाता है और फिर अगले दिन गन्ने का रस पीया जाता है. ऐसी मान्यता है कि महालक्ष्मी का एक रूप गजलक्ष्मी भी है और इस रूप में वे ऐरावत हाथी पर सवार दिखाई देती हैं. पुराणों के अनुसार माता लक्ष्मी की सवारी हाथी को भी माना जाता है. मां लक्ष्मी ऐरावत नाम के हाथी पर बैठकर पृथ्वी पर विचरण करती हैं. हाथी को सबसे ज्यादा गन्ना पसंद होता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु की आज्ञा का पालन करते हुए मां लक्ष्मी ने किसान के घर में 12 वर्ष तक निवास किया था. माता लक्ष्मी उस किसान के घर से हमेशा के लिए जाने लगी तो किसान माता लक्ष्मी को रोकने लगा.
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इसके बाद माता लक्ष्मी ने कहा कि जिस गन्ने की वजह से में यहां रही हूं. मेरे पूजन के समय गन्ने का भी पूजन करें तो मैं हमेशा आपके यहां गन्ने के स्वरूप में वास करूंगी. कुमाऊं मंडल के कई क्षेत्र में गन्ने से बनी मां लक्ष्मी की मूर्तियों की पूजा अर्चना की जाती है. लोग घरों में गन्ने के पेड़ से मूर्ति का निर्माण करते हैं. इस मूर्ति को बनाने के लिए कांसे की थाली में गन्ने को तीन भागों में काटा जाता है.इसके बाद इस मूर्ति को ढांचा देने के बाद नींबू या फिर मुखौटे से लक्ष्मी जी की मूर्ति बनाई जाती है.इसके बाद मूर्ति को जेवर और मालाएं पहनाई जाती हैं. मां लक्ष्मी का वास घर में हो, इसके लिए मूर्ति को खूब सजाया-संवारा जाता है. इसके बाद गन्ने की माता लक्ष्मी के स्वरूप में पूजा की जाती है.