हल्द्वानी: केंद्र सरकार द्वारा नए बिल में किसानों के उत्पादन पर लगने वाला मंडी शुल्क समाप्त किए जाने से किसानों को फायदा हुआ है. उधर, प्रदेश की मंडी समितियों और मंडी परिषदों को इसकी वजह से सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ेगा. पहले किसानों की उपज मंडी समितियों के माध्यम से बाजारों में जाती थी, लेकिन अब किसान अपनी उपज को सीधे बाजारों में बेच सकते हैं. ऐसे में मंडी शुल्क खत्म होने से प्रदेश की मंडी समितियों और मंडी परिषदों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है.
मंडी शुल्क समाप्त होने से मंडी समिति को करोड़ों का नुकसान
आपको बता दें कि कुमाऊं की सबसे बड़ी हल्द्वानी मंडी परिषद को पिछले साल मंडी शुल्क से 13 करोड़ 7 लाख 47 हजार रुपए की इनकम हुई थी. 11 करोड़ 56 लाख रुपए मंडी परिषद ने व्यवस्थाओं और तनख्वाह में खर्च किए थे. पिछले वर्ष 2019-20 में मंडी परिषद हल्द्वानी को मंडी शुल्क के तौर पर लकड़ी और लीसा से 5 करोड़ 50 लाख रुपए, जबकि अनाज, सब्जी और फल से 1 करोड़ 47 लाख रुपए राजस्व की प्राप्ति हुई थी. वहीं, धान से 1 करोड़ 35 लाख रुपए सहित अन्य मदों से करीब 13 करोड़ 7 लाख ₹47 हजार रुपए के राजस्व की प्राप्ति हुई थी.
मंडी परिषद कर्मचारियों और व्यवस्थाओं पर करता है करोड़ों खर्च
बताया जा रहा है कि हर साल हल्द्वानी मंडी परिषद के कर्मचारियों की तनख्वाह, व्यवस्थाओं, साफ-सफाई सहित अन्य खर्चों पर करीब 11 करोड़ ₹56 खर्च आता है. हल्द्वानी मंडी समिति के अध्यक्ष मनोज शाह के मुताबिक मंडी शुल्क समाप्त होने से बड़े किसानों को इसका सबसे ज्यादा फायदा मिलेगा. किसान अब अपनी उपज को खुले बाजार में बेच सकते हैं. यहां तक कि पहले मंडी शुल्क ढाई प्रतिशत हुआ करता था जो अब घटकर 1% रह गया है.
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नए नियम के तहत मंडी परिषद में प्रवेश पर ही मंडी शुल्क लागू होगा, जबकि मंडी से बाहर बिकने वाली कृषि उपज पर अब मंडी शुल्क नहीं लगेगा. मंडी समिति अध्यक्ष मनोज शाह के मुताबिक मंडी शुल्क खत्म हो जाने के बाद मंडी समितियों को काफी नुकसान उठाना पड़ेगा. मंडी से बाहर मंडी शुल्क खत्म हो जाने के बाद हल्द्वानी मंडी को अब हर साल 8 से 10 करोड़ राजस्व का नुकसान उठाना पड़ सकता है. वहीं, मंडी की व्यवस्थाओं को सुचारू रखने के लिए मंडी समिति को अपनी आय को बढ़ाने के लिए प्रयास करना होगा, जिससे की मंडी की व्यवस्था आगे ठीक ढंग से चल सके.
केंद्र सरकार ने 1956 से चले आ रहे मंडी शुल्क में छूट दी
किसान और व्यापारियों की सालों से मंडी शुल्क हटाने की मांग को केंद्र सरकार ने मंजूरी दे दी. जिसकी वजह से अब किसान और व्यापारियों को 1956 से चले आ रहे मंडी शुल्क में छूट मिलेगी. अब किसान अपनी फसलों को सीधे व्यापारियों को बेच सकते हैं. गौरतलब है कि विभिन्न मंडियों को पहले किसानों को अपने उत्पाद पर 2 से 3 प्रतिशत तक मंडी शुल्क देना पड़ता था. अब सरकार ने इस पर छूट प्रदान कर दी है.