ETV Bharat / state

जंगलों के लिए अभिशाप बनता जा रहा है सागौन, उन्मूलन में लगा वन महकमा - Teak in Ramnagar forests

सागौन के पेड़ उत्तराखंड के जंगलों के लिए अभिशाप बनता जा रहा है. ऐसे में उत्तराखंड वन विभाग अब सागौन के उन्मूलन में लगा हुआ है.

रामनगर
सागौन जंगलों के लिए अभिशाप
author img

By

Published : Sep 12, 2020, 12:03 PM IST

Updated : Sep 12, 2020, 2:32 PM IST

रामनगर: उत्तराखंड के जंगलों के लिए सागौन अभिशाप बनते जा रहा हैं. वन विभाग इस पेड़ के उन्मूलन के लिए लगातार प्रयास कर रहा है. कहा जाता है कि सागौन को ब्रिटिश काल के दौरान अंग्रेज यहां लाए थे, इसे इमारती लकड़ी के रूप में इस्तेमाल किया जाता था. वहीं, लेंटाना को भी अंग्रेज अपने साथ यहां लेकर आए थे. दोनों प्रजातियों के पेड़ों को जैवविविधता के लिए काफी खतरनाक माना जाता है, जो वनों के विस्तार में बाधक बने हुए हैं.

सागौन के पेड़ बने मुसीबत.

बता दें सागौन के पेड़ों से जंगलों में जानवरों को भोजन की उपलब्धता काफी कम हो जाती है. क्योंकि इसके नीचे कोई चीज पनप नहीं पाती है. सागौन के नीचे न कोई घास होती है, न कोई पौधा पनप पाता है. साथ ही इसकी पत्तियां मवेशियों के चारे के काम भी नहीं आती हैं. जिसके उन्मूलन के लिए वन महकमा सालों से लगा हुआ है. इसका पूरी तरह उन्मूलन असंभव हो जाता है.

वन विभाग लेंटाना के साथ-साथ सागौन को भी खत्म करने के लिए काम कर रहा है. ज्यादातर सागौन की जो तादात है वह कुमाऊं क्षेत्र में पाई जाती है. अगर वन प्रभाग तराई पश्चिमी के जंगलों की बात करें तो यहां 4,903 हेक्टयर भूमि में सागौन के वृक्ष हैं. वहीं, वन प्रभाग रामनगर की बात करें तो 3,358 हेक्टेयर भूमि पर सागौन के वृक्ष हैं. कॉर्बेट में सागौन के वृक्ष नहीं लगाए गए हैं और न ही ऐसा कोई ब्यौरा सागौन का कॉर्बेट प्रशासन के पास मौजूद है, लेकिन फिर भी कॉर्बेट में भी कई पेड़ सागौन के मौजूद हैं.

ये भी पढ़े: कोरोना इफेक्ट: त्यौहारों से बंधी ऑटोमोबाइल सेक्टर की उम्मीद

वन्यजीव प्रेमी संजय छिमवाल ने बताया कि सागौन की जो लकड़ी है, उसका फर्नीचर बनाने में उपयोग होता है. सागौन बाहर से लाई गई वृक्ष की प्रजाति है. सागौन का वृक्ष बहुत तेजी से बढ़ता है. 40 साल पहले जो यहां के नेचुरल जंगल थे, उनको काटकर यहां पर सागौन लगाए गए थे. शुरू में इसके दुष्प्रभाव से लोग अनजान थे, लेकिन अब लोगों को पता चल गया है. ये इमारती लकड़ी के अलावा ये किसी भी चीज में काम नहीं आती है. जैव विविधता के दृष्टिकोण से अगर हम देखें तो ये खतरनाक पेड़ है.

वन प्रभाग तराई पश्चिमी के डीएफओ हिमांशु बागड़ी का कहना है कि यहां 30 से 40 वर्ष पूर्व सागौन का वृक्षारोपण किया गया था. सागौन से एलेलोपैथिक (लिक्विड सा पदार्थ) निकलता है. जिससे इसके नीचे कोई भी घास नहीं उगती है. विभाग द्वारा सागौन को काटकर मिश्रित वन लगाने का कार्य किया जा रहा है. वहीं कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक राहुल कुमार ने कहा कि सागौन को हटाने को लेकर जो भी अनुमोदन प्राप्त होगा उस पर कार्रवाई की जाएगी.

रामनगर: उत्तराखंड के जंगलों के लिए सागौन अभिशाप बनते जा रहा हैं. वन विभाग इस पेड़ के उन्मूलन के लिए लगातार प्रयास कर रहा है. कहा जाता है कि सागौन को ब्रिटिश काल के दौरान अंग्रेज यहां लाए थे, इसे इमारती लकड़ी के रूप में इस्तेमाल किया जाता था. वहीं, लेंटाना को भी अंग्रेज अपने साथ यहां लेकर आए थे. दोनों प्रजातियों के पेड़ों को जैवविविधता के लिए काफी खतरनाक माना जाता है, जो वनों के विस्तार में बाधक बने हुए हैं.

सागौन के पेड़ बने मुसीबत.

बता दें सागौन के पेड़ों से जंगलों में जानवरों को भोजन की उपलब्धता काफी कम हो जाती है. क्योंकि इसके नीचे कोई चीज पनप नहीं पाती है. सागौन के नीचे न कोई घास होती है, न कोई पौधा पनप पाता है. साथ ही इसकी पत्तियां मवेशियों के चारे के काम भी नहीं आती हैं. जिसके उन्मूलन के लिए वन महकमा सालों से लगा हुआ है. इसका पूरी तरह उन्मूलन असंभव हो जाता है.

वन विभाग लेंटाना के साथ-साथ सागौन को भी खत्म करने के लिए काम कर रहा है. ज्यादातर सागौन की जो तादात है वह कुमाऊं क्षेत्र में पाई जाती है. अगर वन प्रभाग तराई पश्चिमी के जंगलों की बात करें तो यहां 4,903 हेक्टयर भूमि में सागौन के वृक्ष हैं. वहीं, वन प्रभाग रामनगर की बात करें तो 3,358 हेक्टेयर भूमि पर सागौन के वृक्ष हैं. कॉर्बेट में सागौन के वृक्ष नहीं लगाए गए हैं और न ही ऐसा कोई ब्यौरा सागौन का कॉर्बेट प्रशासन के पास मौजूद है, लेकिन फिर भी कॉर्बेट में भी कई पेड़ सागौन के मौजूद हैं.

ये भी पढ़े: कोरोना इफेक्ट: त्यौहारों से बंधी ऑटोमोबाइल सेक्टर की उम्मीद

वन्यजीव प्रेमी संजय छिमवाल ने बताया कि सागौन की जो लकड़ी है, उसका फर्नीचर बनाने में उपयोग होता है. सागौन बाहर से लाई गई वृक्ष की प्रजाति है. सागौन का वृक्ष बहुत तेजी से बढ़ता है. 40 साल पहले जो यहां के नेचुरल जंगल थे, उनको काटकर यहां पर सागौन लगाए गए थे. शुरू में इसके दुष्प्रभाव से लोग अनजान थे, लेकिन अब लोगों को पता चल गया है. ये इमारती लकड़ी के अलावा ये किसी भी चीज में काम नहीं आती है. जैव विविधता के दृष्टिकोण से अगर हम देखें तो ये खतरनाक पेड़ है.

वन प्रभाग तराई पश्चिमी के डीएफओ हिमांशु बागड़ी का कहना है कि यहां 30 से 40 वर्ष पूर्व सागौन का वृक्षारोपण किया गया था. सागौन से एलेलोपैथिक (लिक्विड सा पदार्थ) निकलता है. जिससे इसके नीचे कोई भी घास नहीं उगती है. विभाग द्वारा सागौन को काटकर मिश्रित वन लगाने का कार्य किया जा रहा है. वहीं कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक राहुल कुमार ने कहा कि सागौन को हटाने को लेकर जो भी अनुमोदन प्राप्त होगा उस पर कार्रवाई की जाएगी.

Last Updated : Sep 12, 2020, 2:32 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.