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अंधविश्वास: दिवाली पर उल्लू की आ जाती है शामत, जानिए बलि का मिथक

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Published : Nov 10, 2020, 12:00 PM IST

Updated : Nov 10, 2020, 9:12 PM IST

उल्लू को तो मां लक्ष्मी की सवारी कहा जाता है. लेकिन क्या आपको पता है कई जगहों पर यह माना जाता है कि दिवाली पर उल्लू की बलि देने से देवी प्रसन्न होती हैं. जी हां ये बात थोड़ी अटपटी जरूर लगती है, लेकिन कई जगहों पर तंत्र साधना में उल्लू की बलि दी जाती है.

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दिवाली और उल्लू की बलि

रामनगर: रोशनी का पर्व दिवाली, जब लोग मां लक्ष्मी की पूजा कर सुख और समृद्धि की कामना करते हैं. साल भर लोग घर की इतनी सफाई नहीं करते जितनी दिवाली पर करते हैं. रंग-रोगन किया जाता है. घर को सुंदर बनाने और रोशन करने के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते. इस पूरी कवायद का मकसद लक्ष्मी पूजा नहीं, बल्कि लक्ष्मी को प्रसन्न करना होता है. कुछ इसी मकसद से उल्लू की बलि भी दी जाती है. अब आप सोच रहे होंगे कि उल्लू तो देवी का वाहन माना जाता है. दिवाली पर उल्लू की बलि से देवी प्रसन्न कैसे हो सकती हैं. तो आज हम आपको बताएंगे की आखिर क्यों दी जाती उल्लू की बलि.

दिवाली पर उल्लू की आ जाती है शामत.

क्या है उल्लू?

उल्लू एक ऐसा पक्षी है जिसे दिन की अपेक्षा रात में अधिक स्पष्ट दिखाई देता है. ये अपनी गर्दन पूरी घुमा सकता है. इसके कान बेहद संवेदनशील होते हैं. रात में जब इसका कोई शिकार थोड़ी सी भी हरकत करता है तो इसे पता चल जाता है और यह उसे दबोच लेता है. इसके पैरों में टेढ़े नाखूनों-वाली चार-चार अंगुलियां होती हैं जिनसे इसे शिकार को दबोचने में विशेष सुविधा मिलती है. चूहे इसका विशेष भोजन हैं. उल्लू संसार के सभी भागों में पाया जाता है. भारत में इसे मां लक्ष्मी की सवारी भी कहते हैं.

संरक्षित प्रजाति है उल्लू

भारतीय वन्य जीव अधिनियम,1972 की अनुसूची-एक के तहत उल्लू संरक्षित है. ये विलुप्त प्राय जीवों की श्रेणी में दर्ज है. इनके शिकार या तस्करी करने पर कम से कम 3 वर्ष या उससे अधिक सजा का प्रावधान है. रॉक आउल, ब्राउन फिश आउल, डस्की आउल, बॉर्न आउल, कोलार्ड स्कॉप्स, मोटल्ड वुड आउल, यूरेशियन आउल, ग्रेट होंड आउल, मोटल्ड आउल विलुप्त प्रजाति के रूप में चिह्नित हैं. इनके पालने और शिकार करने दोनों पर प्रतिबंध है. पूरी दुनिया में उल्लू की लगभग 225 प्रजातियां हैं.

पढ़ें- आखिर दीपावली में क्यों मंडराता है उल्लुओं की जान पर खतरा? पढ़ें पूरी खबर

क्यों दी जाती है उल्लू की बलि ?

माना जाता है कि उल्लू एक ऐसा प्राणी है जो जीवित रहे तो भी लाभदायक है और मृत्यु के बाद भी फलदायक होता है. दिवाली में तांत्रिक गतिविधियों में उल्लू का इस्तेमाल होता है. इसके लिए उसे महीनाभर पहले से साथ में रखा जाता है. दिवाली पर बलि के लिए तैयार करने के लिए उसे मांस-मदिरा भी दी जाती है. पूजा के बाद बलि दी जाती है और बलि के बाद शरीर के अलग-अलग अंगों को अलग-अलग जगहों पर रखा जाता है जिससे समृद्धि हर तरफ से आए.

उल्लू की बलि से कैसे प्रसन्न होंगी देवी?

कई लोग मानते हैं कि उल्लू अशुभ होता है. लेकिन उल्लू को लक्ष्मी जी का वाहन कहा जाता है. इस लिहाज से उल्लू शुभ माना गया है. इस दिन उल्लू की पूजा की जाती है और पूजा के बाद इसी उल्लू की बलि दे दी जाती है. ये बात समझना थोड़ा अजीब है, क्योंकि उल्लू तो देवी का वाहन होता है और उन्हीं के वाहन की बलि देंगे तो देवी प्रसन्न कैसे हो सकती हैं. लेकिन जिस सोच के साथ ये सब किया जाता है, उसे जानने के बाद इस बात पर विश्वास और पक्का हो जाता है कि लोग कितने स्वार्थी होते हैं. मान्यता है चूंकि उल्लू पर सवार होकर ही लक्ष्मी विचरण करती हैं, इसलिए उल्लू की बलि देने से मां लक्ष्मी कहीं आ-जा सकने से लाचार हो जाती हैं और घर में हमेशा के लिए बस जाती हैं. इस अंधविश्वास में उल्लू की बलि दे दी जाती है.

पढ़ें- आजमगढ़ में गोबर से बन रहे लक्ष्मी-गणेश, जानें इसके फायदे

दिवाली पर बढ़ जाती है उल्लू की कीमत

बताया जाता है यह कि दीपावली के समय दक्षिण भारत की यह परंपरा है. दक्षिण भारत में दाक्षडात्य ब्रित और रावण संहिता नामक शास्त्रों में उल्लेख है कि उल्लू की बलि दिए जाने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं. वहीं बलि की परंपरा के कारण दिवाली के समय इनकी कीमत भी बढ़ जाती है.

उल्लू की सुरक्षा के लिए कॉर्बेट तैयार

अंधविश्वास के चलते एक विलुप्त होती प्रजाति को खतरा बढ़ गया है. वहीं दिवाली में अधिक खतरा बढ़ जाता है. कहा जाता है कि तांत्रिक दीपावली पर जादू टोना तंत्र-मंत्र और साधना के लिए उल्लू की बलि देकर रिद्धि-सिद्धि प्राप्त करते हैं. इसे देखते हुए कॉर्बेट टाइगर रिजर्व ने उल्लू की तस्करी करने वालों पर लगाम कसने के लिए जंगल में गश्त बढ़ा दी है.

आखिर कितना सही?

देवी को खुश करने के लिए लोग एक विलुप्त होती प्रजाति और निरीह पक्षी की बलि दे रहे हैं. क्या सच में इससे देवी खुश होती हैं, ये तो किसी को नहीं पता. लेकिन सवाल ये है कि अंधविश्वास में आकर एक बेजुबान पक्षी की बलि देना आखिर कितना सही है?

रामनगर: रोशनी का पर्व दिवाली, जब लोग मां लक्ष्मी की पूजा कर सुख और समृद्धि की कामना करते हैं. साल भर लोग घर की इतनी सफाई नहीं करते जितनी दिवाली पर करते हैं. रंग-रोगन किया जाता है. घर को सुंदर बनाने और रोशन करने के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते. इस पूरी कवायद का मकसद लक्ष्मी पूजा नहीं, बल्कि लक्ष्मी को प्रसन्न करना होता है. कुछ इसी मकसद से उल्लू की बलि भी दी जाती है. अब आप सोच रहे होंगे कि उल्लू तो देवी का वाहन माना जाता है. दिवाली पर उल्लू की बलि से देवी प्रसन्न कैसे हो सकती हैं. तो आज हम आपको बताएंगे की आखिर क्यों दी जाती उल्लू की बलि.

दिवाली पर उल्लू की आ जाती है शामत.

क्या है उल्लू?

उल्लू एक ऐसा पक्षी है जिसे दिन की अपेक्षा रात में अधिक स्पष्ट दिखाई देता है. ये अपनी गर्दन पूरी घुमा सकता है. इसके कान बेहद संवेदनशील होते हैं. रात में जब इसका कोई शिकार थोड़ी सी भी हरकत करता है तो इसे पता चल जाता है और यह उसे दबोच लेता है. इसके पैरों में टेढ़े नाखूनों-वाली चार-चार अंगुलियां होती हैं जिनसे इसे शिकार को दबोचने में विशेष सुविधा मिलती है. चूहे इसका विशेष भोजन हैं. उल्लू संसार के सभी भागों में पाया जाता है. भारत में इसे मां लक्ष्मी की सवारी भी कहते हैं.

संरक्षित प्रजाति है उल्लू

भारतीय वन्य जीव अधिनियम,1972 की अनुसूची-एक के तहत उल्लू संरक्षित है. ये विलुप्त प्राय जीवों की श्रेणी में दर्ज है. इनके शिकार या तस्करी करने पर कम से कम 3 वर्ष या उससे अधिक सजा का प्रावधान है. रॉक आउल, ब्राउन फिश आउल, डस्की आउल, बॉर्न आउल, कोलार्ड स्कॉप्स, मोटल्ड वुड आउल, यूरेशियन आउल, ग्रेट होंड आउल, मोटल्ड आउल विलुप्त प्रजाति के रूप में चिह्नित हैं. इनके पालने और शिकार करने दोनों पर प्रतिबंध है. पूरी दुनिया में उल्लू की लगभग 225 प्रजातियां हैं.

पढ़ें- आखिर दीपावली में क्यों मंडराता है उल्लुओं की जान पर खतरा? पढ़ें पूरी खबर

क्यों दी जाती है उल्लू की बलि ?

माना जाता है कि उल्लू एक ऐसा प्राणी है जो जीवित रहे तो भी लाभदायक है और मृत्यु के बाद भी फलदायक होता है. दिवाली में तांत्रिक गतिविधियों में उल्लू का इस्तेमाल होता है. इसके लिए उसे महीनाभर पहले से साथ में रखा जाता है. दिवाली पर बलि के लिए तैयार करने के लिए उसे मांस-मदिरा भी दी जाती है. पूजा के बाद बलि दी जाती है और बलि के बाद शरीर के अलग-अलग अंगों को अलग-अलग जगहों पर रखा जाता है जिससे समृद्धि हर तरफ से आए.

उल्लू की बलि से कैसे प्रसन्न होंगी देवी?

कई लोग मानते हैं कि उल्लू अशुभ होता है. लेकिन उल्लू को लक्ष्मी जी का वाहन कहा जाता है. इस लिहाज से उल्लू शुभ माना गया है. इस दिन उल्लू की पूजा की जाती है और पूजा के बाद इसी उल्लू की बलि दे दी जाती है. ये बात समझना थोड़ा अजीब है, क्योंकि उल्लू तो देवी का वाहन होता है और उन्हीं के वाहन की बलि देंगे तो देवी प्रसन्न कैसे हो सकती हैं. लेकिन जिस सोच के साथ ये सब किया जाता है, उसे जानने के बाद इस बात पर विश्वास और पक्का हो जाता है कि लोग कितने स्वार्थी होते हैं. मान्यता है चूंकि उल्लू पर सवार होकर ही लक्ष्मी विचरण करती हैं, इसलिए उल्लू की बलि देने से मां लक्ष्मी कहीं आ-जा सकने से लाचार हो जाती हैं और घर में हमेशा के लिए बस जाती हैं. इस अंधविश्वास में उल्लू की बलि दे दी जाती है.

पढ़ें- आजमगढ़ में गोबर से बन रहे लक्ष्मी-गणेश, जानें इसके फायदे

दिवाली पर बढ़ जाती है उल्लू की कीमत

बताया जाता है यह कि दीपावली के समय दक्षिण भारत की यह परंपरा है. दक्षिण भारत में दाक्षडात्य ब्रित और रावण संहिता नामक शास्त्रों में उल्लेख है कि उल्लू की बलि दिए जाने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं. वहीं बलि की परंपरा के कारण दिवाली के समय इनकी कीमत भी बढ़ जाती है.

उल्लू की सुरक्षा के लिए कॉर्बेट तैयार

अंधविश्वास के चलते एक विलुप्त होती प्रजाति को खतरा बढ़ गया है. वहीं दिवाली में अधिक खतरा बढ़ जाता है. कहा जाता है कि तांत्रिक दीपावली पर जादू टोना तंत्र-मंत्र और साधना के लिए उल्लू की बलि देकर रिद्धि-सिद्धि प्राप्त करते हैं. इसे देखते हुए कॉर्बेट टाइगर रिजर्व ने उल्लू की तस्करी करने वालों पर लगाम कसने के लिए जंगल में गश्त बढ़ा दी है.

आखिर कितना सही?

देवी को खुश करने के लिए लोग एक विलुप्त होती प्रजाति और निरीह पक्षी की बलि दे रहे हैं. क्या सच में इससे देवी खुश होती हैं, ये तो किसी को नहीं पता. लेकिन सवाल ये है कि अंधविश्वास में आकर एक बेजुबान पक्षी की बलि देना आखिर कितना सही है?

Last Updated : Nov 10, 2020, 9:12 PM IST
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