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इस गांव के लड़के-लड़कियों से कोई नहीं करना चाहता शादी, जानिए क्या है वजह? - श्रीलंका टापू

मूलभूत सुविधाओं से वंचित है हल्द्वानी से 30 किलोमीटर दूर बसा है एक गांव. यहां सड़क, लाइट, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं के अभाव में कोई इस गांव में नहीं करना चाहता अपने बेटे-बेटियों की शादी.

हल्द्वानी का श्रीलंका टापू.
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Published : Jun 25, 2019, 11:54 AM IST

हल्द्वानी: देश को आजाद हुए सात दशक से ज्यादा हो गए हैं. 21वीं सदी में हर कोई डिजिटल इंडिया से लेकर चांद पर घर बनाने की बात कर रहा है, लेकिन हल्द्वानी का एक ऐसा गांव भी है जो मूलभूत सुविधाओं से अबतक वंचित है. सुविधाओं का यहां ऐसा टोटा है कि यहां के बेटे-बेटियों की शादी तक नहीं हो पा रही है.

दरअसल, नैनीताल के हल्द्वानी से 30 किलोमीटर दूर बसा श्रीलंका टापू में 40 से ज्यादा परिवार रहते हैं. ये गांव 1980 से अबतक गौला नदी के बीचोंबीच है. हर साल बरसात के 3 महीनों में यह गांव पूरी तरह से नदी से घिर जाता है और जिला प्रशासन सहित अन्य गांवों से इसका संपर्क टूट जाता है. यही कारण है कि इस गांव के बेटे-बेटियों की शादी होने में काफी परेशानियां होती हैं. कोई भी अन्य गांव इस जगह में रहने वाले गांववासियों से रिश्ता नहीं जोड़ना चाहता है.

हाल-ए श्रीलंका टापू.

पढ़ें- चारधाम हवाई यात्रा में टिकटों की कालाबाजारी पर प्रशासन ने उठाया ये कदम, नहीं चलेगी हेली कंपनियों की मनमानी

क्यों कहा जाता है गांव को श्रीलंका टापू
हल्द्वानी गौला नदी के चारों ओर से घिरे इस गांव का नाम श्रीलंका टापू इसलिए पड़ा, क्योंकि 1980 में जब कुमाऊं की सबसे बड़ी गौला नदी ने विकराल रूप लिया तो बिंदुखत्ता गांव को अपने बहाव में लेते हुए इसके एक एक टुकड़े को अलग कर दिया. इसको चारों ओर से नदी ने घेर लिया, जिसके बाद इसका नाम श्रीलंका टापू रख दिया गया.

वोट बटोरने तक सीमित हैं नेता
पहाड़ से मैदान तक के कई परिवार इस गांव में रहते हैं. यहां के बाशिंदे नेताओं की वादाखिलाफी काफी नाराज हैं. स्थानीय निवासियों का कहना है कि सड़क, बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी मूल सुविधा का वादा तो उत्तराखंड के राजनेताओं ने कई बार किया, लेकिन हर कोई सिर्फ कोरे वादे कर वोट बटोरने तक ही सीमित रहा. चुनाव के बाद कोई भी यहां मुड़कर नहीं देखता. ग्रामीणों का कहना है कि सबसे ज्यादा समस्या बरसात के दौरान होती है जब 3 महीने तक उनके गांव का संपर्क जिला प्रशासन से टूट जाता है. ऐसे में कोई बीमार पड़ता है तो उसे चारपाई पर लादकर नदी के सहारे लालकुआं लेकर जाना पड़ता है. बच्चों को पढ़ाई करने के लिए नदी पार कर कई मीटर दूर जाना पड़ता है.

पढ़ें- मिशन डेयर डेविल: 8वें पर्वतारोही का नहीं चला पता, खराब मौसम ने बढ़ाई रेस्क्यू टीम की परेशानी

वहीं, ग्रामीण महिलाओं का कहना है कि सबसे बड़ी समस्या उनके सामने रिश्तों को लेकर है. गांव में न तो सड़क है, न बिजली और न अन्य मूलभूत सुविधाएं ऐसे में यहां कोई रिश्ता जोड़ने और शादी करने को तैयार नहीं है. उन्होंने बताया कि गांव के अधिकतर लड़के और लड़कियां उम्र दराज हो रहे हैं. भारतीय संविधान में हर नागरिक को मूलभूत सुविधा उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेदारी है. श्रीलंका टापू के लोग जंगलों और नदी से घिरे इस क्षेत्र में दहशत में रहते हैं. जंगली जानवारों के अलावा नदी का बहाव लोगों को हर दिन डराता है.

हल्द्वानी: देश को आजाद हुए सात दशक से ज्यादा हो गए हैं. 21वीं सदी में हर कोई डिजिटल इंडिया से लेकर चांद पर घर बनाने की बात कर रहा है, लेकिन हल्द्वानी का एक ऐसा गांव भी है जो मूलभूत सुविधाओं से अबतक वंचित है. सुविधाओं का यहां ऐसा टोटा है कि यहां के बेटे-बेटियों की शादी तक नहीं हो पा रही है.

दरअसल, नैनीताल के हल्द्वानी से 30 किलोमीटर दूर बसा श्रीलंका टापू में 40 से ज्यादा परिवार रहते हैं. ये गांव 1980 से अबतक गौला नदी के बीचोंबीच है. हर साल बरसात के 3 महीनों में यह गांव पूरी तरह से नदी से घिर जाता है और जिला प्रशासन सहित अन्य गांवों से इसका संपर्क टूट जाता है. यही कारण है कि इस गांव के बेटे-बेटियों की शादी होने में काफी परेशानियां होती हैं. कोई भी अन्य गांव इस जगह में रहने वाले गांववासियों से रिश्ता नहीं जोड़ना चाहता है.

हाल-ए श्रीलंका टापू.

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क्यों कहा जाता है गांव को श्रीलंका टापू
हल्द्वानी गौला नदी के चारों ओर से घिरे इस गांव का नाम श्रीलंका टापू इसलिए पड़ा, क्योंकि 1980 में जब कुमाऊं की सबसे बड़ी गौला नदी ने विकराल रूप लिया तो बिंदुखत्ता गांव को अपने बहाव में लेते हुए इसके एक एक टुकड़े को अलग कर दिया. इसको चारों ओर से नदी ने घेर लिया, जिसके बाद इसका नाम श्रीलंका टापू रख दिया गया.

वोट बटोरने तक सीमित हैं नेता
पहाड़ से मैदान तक के कई परिवार इस गांव में रहते हैं. यहां के बाशिंदे नेताओं की वादाखिलाफी काफी नाराज हैं. स्थानीय निवासियों का कहना है कि सड़क, बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी मूल सुविधा का वादा तो उत्तराखंड के राजनेताओं ने कई बार किया, लेकिन हर कोई सिर्फ कोरे वादे कर वोट बटोरने तक ही सीमित रहा. चुनाव के बाद कोई भी यहां मुड़कर नहीं देखता. ग्रामीणों का कहना है कि सबसे ज्यादा समस्या बरसात के दौरान होती है जब 3 महीने तक उनके गांव का संपर्क जिला प्रशासन से टूट जाता है. ऐसे में कोई बीमार पड़ता है तो उसे चारपाई पर लादकर नदी के सहारे लालकुआं लेकर जाना पड़ता है. बच्चों को पढ़ाई करने के लिए नदी पार कर कई मीटर दूर जाना पड़ता है.

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वहीं, ग्रामीण महिलाओं का कहना है कि सबसे बड़ी समस्या उनके सामने रिश्तों को लेकर है. गांव में न तो सड़क है, न बिजली और न अन्य मूलभूत सुविधाएं ऐसे में यहां कोई रिश्ता जोड़ने और शादी करने को तैयार नहीं है. उन्होंने बताया कि गांव के अधिकतर लड़के और लड़कियां उम्र दराज हो रहे हैं. भारतीय संविधान में हर नागरिक को मूलभूत सुविधा उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेदारी है. श्रीलंका टापू के लोग जंगलों और नदी से घिरे इस क्षेत्र में दहशत में रहते हैं. जंगली जानवारों के अलावा नदी का बहाव लोगों को हर दिन डराता है.

Intro:sammry- मूलभूत सुविधाओं से वंचित गांव नहीं सड़क , लाइट शिक्षा और स्वास्थ्य बेटे बेटियों की शादी में होती है अड़चन।

एंकर-देश को आजाद हुए 71 साल बीत चुके हैं लेकिन नैनीताल जिले के हल्द्वानी जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर एक ऐसा गांव है जहां के वाशिंदे मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। डिजिटल इंडिया की तरफ बढ़ रहे भारत के इस गांव में नहीं सड़क है नहीं बिजली है नहीं स्वास्थ्य और शिक्षा की कोई व्यवस्था ऐसे में अब गांव के लोगों को सबसे ज्यादा खामियाजा अपने बेटे बेटियों की शादी के लिए उठाना पड़ रहा है । क्योंकि मूलभूत सुविधा नहीं होने के चलते लोग अब इस गांव से रिश्ता भी नहीं जोड़ रहे हैं।
देखिए एक रिपोर्ट---------



Body:हल्द्वानी जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर गोला नदी के चारों ओर से घिरे इस गांव का नाम है श्री लंका टापू। श्रीलंका टापू नाम सुनकर आपको बड़ा अटपटा लग रहा होगा लेकिन यह हकीकत है। 1980 में जब कुमाऊ की सबसे बड़ी गोला नदी ने अपना विकराल रूप धारण किया तो बिंदु खता गांव को अपने बहाव में लेते हुए गांव के एक टुकड़े को अलग कर दिया और उस गांव को चारों ओर से नदी ने घेर लिया। किसी ने पड़ोसी देश की भौगोलिक स्थिति से मेल खाने के कारण इसका नाम श्रीलंका टापू रख दिया और तब से अब तक इस गांव का नाम श्री लंका टापू के नाम से विख्यात हो लगा।


करीब 40 परिवारों वाला इस गांव 1980 से आज तक यह गांव नदी के बीचो बीच में स्थापित है और हर वर्ष बरसात के 3 महीनों में यह गांव पूरी तरह से नदी से गिर जाता है और जिला प्रशासन सहित गांव से इसका संपर्क टूट जाता है ।

पहाड़ से मैदान तक के कई परिवार इस गांव में रहते हैं लेकिन गांव वालों को एक दूसरे से कोई शिकायत नहीं है लेकिन हमारे नेताओं की वादाखिलाफी से गांव वासी आज भी नाराज है क्योंकि इस गांव में ना सड़क है नहीं बिजली है नहीं स्वास्थ्य, शिक्षा ऐसे में इन गांव वालों का कहना है कि उत्तराखंड की पूरी राजनीतिक ने यहां के लोगों को आजा दिखाया है। राजनीतिक दल विधानसभा और लोकसभा चुनाव में यह वोट मांगने पहुंचते हैं और गांव में सुविधा देने की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं लेकिन चुनाव जीतने के बाद इधर मुड़ कर भी नहीं देखते हैं।

ग्रामीणों का कहना है कि सबसे ज्यादा समस्या बरसात के दौरान होता है जब 3 महीने तक उनका गांव का संपर्क जिला प्रशासन से टूट जाता है ऐसे में कोई बीमार पड़ता है तो चारपाई पर लादकर नदी के सहारे लालकुआं लेकर जाना पड़ता है। और भगवान भरोसे रहता है। यही नहीं छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ाई करने नदी पार क्षेत्र कुल मीटर दूर जाना पड़ता है लेकिन सरकार इस पर कोई भी ध्यान नहीं दे रही है।

बाइट ग्रामीण।

वहीं ग्रामीण महिलाओं का कहना है कि सबसे बड़ा समस्या इन दिनों उनके आगे रिश्तो को लेकर खड़ा हो गया है क्योंकि गांव में नहीं सड़क है नहीं बिजली नहीं मूलभूत सुविधा ऐसे में कोई भी अपना रिश्ता इस गांव से जुड़ने को तैयार नहीं होता है ।गांव के अधिकतर लड़के और लड़कियां उम्र दराज हो रहे हैं और शादी विवाह में काफी कठिनाई हो रही है रिश्ते तो आते हैं लेकिन गांव में घुसने से पहले ही वापस चले जाते हैं।

वाइट ग्रामीण महिला
बाइट ग्रामीण महिला


Conclusion:भारतीय संविधान में हर नागरिक को मूलभूत सुविधा उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेदारी है श्रीलंका टापू के लोग भी सरकार के चयन में भागीदारी करते हैं लेकिन जंगलों और नदी से घिरा इस गांव कि लोग आज भी दहशत में रहते हैं कि गोला नदी अगर कभी भी विकराल रूप लेती है तो पूरा गांव तबाह जाएगा यही नहीं हमेशा जंगली जानवरों का भी डर सताया रहता है जबकि जंगली जानवर उनके फसलों को भी बर्बाद कर रहे हैं।
ऐसे में अब ग्रामीणों का उम्मीद है कि डबल इंजन की सरकार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और त्रिवेंद्र सिंह रावत उनके गांव के हालात पर एक बार जरूर गौर करेंगे।
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