हल्द्वानी: अगर आप चारधाम की यात्रा नहीं कर पा रहे हैं, तो उत्तराखंड के इस चारधाम मंदिर के दर्शन करने से चारधाम यात्रा के बराबर फल की प्राप्ति होगी. हल्द्वानी से 14 किलोमीटर दूर लामाचौड़ में स्थित पौराणिक मंदिर बौद्ध धर्म का सिद्ध पीठ भी माना जाता है. मान्यता है कि करीब 400 साल पुराने इस मंदिर की बौद्ध धर्म के समय स्थापना हुई थी. बाद में यह मंदिर चारधाम के नाम से जाने जाने लगा. मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित चंद्रशेखर जोशी ने बताया कि इस मंदिर का इतना महत्व है कि जितना चारधाम यात्रा करने पर फल की प्राप्ति होती है.
चारधाम मंदिर की है बड़ी महत्ता: पंडित चंद्रशेखर जोशी कहते हैं कि ऐसी मान्यता है कि कोई व्यक्ति अगर चारधाम की यात्रा नहीं कर पाता है, तो एक बार इस मंदिर में आकर मंदिर में विराजमान भगवान बदरीनाथ, केदारनाथ, द्वारकानाथ और भगवान जगन्नाथ जी का दर्शन कर ले तो चारधाम यात्रा के बराबर फल की प्राप्ति होती है. उन्होंने बताया कि इस मंदिर में चारधाम मंदिर के अलावा कई अन्य मंदिर भी स्थापित हैं. इसमें भगवान शिव, शनिदेव, कुबेर देवता के अलावा देवी देवताओं के कई मंदिर भी हैं.
श्रद्धालु दूर दूर से आते हैं मंदिर के दर्शन करने: यही नहीं मंदिर में बैकुंठ धाम भी है, जहां भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना करने से मनुष्य को बैकुंठधाम की प्राप्ति होती है. बताया जाता है कि महाशिवरात्रि के मौके पर बड़ी संख्या में यहां पर श्रद्धालु पहुंचते हैं. भगवान शिव के दर्शन के साथ-साथ चारों धाम के दर्शन करते हैं. जिससे उनकी सभी मनोकामना पूर्ण होती हैं. यही कारण है कि इस चारधाम मंदिर की महिमा हल्द्वानी के साथ-साथ पूरे उत्तराखंड में फैली हुई है.
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400 साल पुराना बताया जाता है ये मंदिर: यह प्राचीन मंदिर करीब 400 साल पुराना है, जो बौद्ध धर्म के समय का बना हुआ है. उस समय इसे बौधा मंदिर कहा जाता था. करीब 100 साल पहले बाबा भगवान दास चारधाम यात्रा करने के बाद यहां पहुंचे थे. इसलिए इस मंदिर का नाम उन्होंने चारधाम रखा. आज यह चारधाम मंदिर कुमाऊं क्षेत्र का विख्यात मंदिर है. त्योहारों के समय इस मंदिर में बड़ी संख्या में दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं. कहा जाता है कि जो भी भक्त यहां सच्चे मन से मुराद मांगता है, वो मुराद जरूर पूरी होती है.