हल्द्वानी: महादेव गिरि संस्कृत महाविद्यालय में बीते रोज संस्कृत विद्यालय और महाविद्यालय शिक्षक संघ उत्तराखंड के प्रदेश स्तरीय संस्कृत शिक्षकों की बैठक (sanskrit teachers meeting) हुई. बैठक में राज्य की द्वितीय भाषा संस्कृत को बचाने के लिए चर्चा की गई. संस्कृत विद्यालय महाविद्यालय के प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर राम भूषण बिजल्वाण (Dr Ram Bhushan Bijalwan) ने कहा कि संस्कृत भाषा हमारी दूसरी मातृभाषा है. लेकिन प्रदेश के ब्यूरोक्रेट संस्कृत भाषा को खत्म करना चाहते हैं.
उन्होंने कहा कि इस समय संस्कृत भाषा को बचाने की जरूरत है. संस्कृत शिक्षा को पुनर्जीवित करने के लिए एक जन आंदोलन की जरूरत है. उन्होंने कहा कि सरकार की मंशा संस्कृत को बढ़ावा देना है. लेकिन सरकार के ब्यूरोक्रेट संस्कृत भाषा को खत्म करना चाहते हैं. सनातन धर्म के समय से संस्कृत के महत्व को लोगों ने समझा है. लेकिन अब संस्कृत का केवल नाम रह गया है.
उन्होंने कहा कि देश प्रदेश में संस्कृत की स्थिति अब धीरे-धीरे खराब हो रही है. उन्होंने कहा कि सरकार की मंशा के चलते संस्कृत को राज्य का द्वितीय भाषा बनाया गया लेकिन ब्यूरोक्रेट संस्कृत भाषा को खत्म करने पर तुले हुए हैं. संस्कृत के प्रति इस समय अधिकारियों में उदासीनता है. इसका नतीजा है कि देश के साथ-साथ देवभूमि उत्तराखंड से भी संस्कृत धीरे-धीरे खत्म हो रही है. इसको बचाने के लिए सभी को आगे आने की जरूरत है. समय रहते संस्कृत को नहीं बचाया गया तो आने वाले समय में संस्कृत का नाम लेने वाला भी कोई नहीं रहेगा.
उत्तराखंड सरकार दे रही संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा: उत्तराखंड देश का पहला राज्य है, जो संस्कृत को बढ़ावा देने की पहल कर चुका है. उत्तराखंड सरकार ने बीते दिनों राज्य के सभी 13 जिलों में से प्रत्येक में एक संस्कृत भाषी गांव विकसित करने का फैसला लिया. उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने कहा था कि इन गांवों के निवासियों को संस्कृत जैसी प्राचीन भारतीय भाषा को रोजमर्रा के बोलचाल में इस्तेमाल करने के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा.
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संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने के फैसलों पर हुए विवाद: उत्तराखंड में संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने के लिए भाजपा सरकार में ही विद्यालयों में संस्कृत को अनिवार्य करने का निर्णय भी लिया गया था. आईसीएसई (Indian Certificate of Secondary Education) और सीबीएसई (Central Board of Secondary Education) के विद्यालयों में भी इसको अनिवार्य रूप से लागू करने की कोशिश की गई. इस पर आदेश भी किया गया, हालांकि इसको लेकर कुछ विद्यालयों की तरफ से आपत्ति भी दर्ज की गई थी.
संस्कृत को लेकर दूसरा बड़ा विवाद स्टेशन का नाम उर्दू में लिखे जाने की बजाय संस्कृत भाषा में लिखे जाने के फैसले पर भी हुआ. भाजपा सरकार में स्टेशनों का नाम संस्कृत भाषा में लिखे जाने को लेकर फैसला लिया गया. लेकिन इसमें उर्दू भाषा को हटाए जाने का पुरजोर विरोध हुआ. इस पर विवाद भी गहराया. इस मामले को लेकर देश भर से प्रतिक्रियाएं भी दी गयीं.