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सर्दी में खाएं गर्म तासीर वाली ये पहाड़ी दालें, स्वाद के साथ औषधीय गुणों से हैं भरपूर

उत्तराखंड की संस्कृति और परंपराओं में ही नहीं, यहां के खान-पान में भी विविधता का समावेश है. पौष्टिक तत्वों से भरपूर उत्तराखंडी खान-पान में मोटी दालों को विशेष स्थान मिला हुआ है. यहां होने वाली दालें राजमा, गहथ (कुलथ), उड़द, तोर, लोबिया, काले भट, नौरंगी (रयांस), सफेद छेमी आदि औषधीय गुणों से भरपूर हैं और इन्हें मौसम के हिसाब से उपयोग में लाया जाता है.

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Published : Jan 15, 2022, 12:36 PM IST

Updated : Jan 15, 2022, 5:27 PM IST

पहाड़ी दालें
पहाड़ी दालें

हल्द्वानी: उत्तराखंड की संस्कृति अपने खानपान के साथ-साथ जैविक उत्पादन के लिए भी जानी जाता है. पहाड़ के साथ-साथ मैदानी इलाकों में भी इन दिनों ठंड का कहर जारी है. ठंड से बचने के लिए लोग तरह-तरह के उपाय और बचाव कर रहे हैं, लेकिन ठंड के मौसम में पहाड़ की दालों का अपना विशेष महत्व होता है. जिन्हें लोग बड़े चाव से खाते हैं. पहाड़ की दालें न सिर्फ आपकी इम्यूनिटी बढ़ती हैं बल्कि कई रोगों के लिए रामबाण इलाज भी हैं.

उत्तराखंड में इस समय ठंड अपने चरम पर है. ऐसे में पहाड़ की दालों की डिमांड बढ़ गई है. पहाड़ की दालें केवल ठंड से नहीं बल्कि पथरी जैसे कई बीमारियों का रामबाण इलाज भी हैं. पहाड़ी दालों को रोजाना सेवन करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है. इसके अलावा पहाड़ की दालें आयरन, विटामिन और कैल्शियम से भरपूर होती हैं.

सर्दी में खाएं गर्म तासीर वाली ये पहाड़ी दालें

सर्दियों में बढ़ी पहाड़ी दालों की मांग: बाजारों में इस समय गहत, भट, रैंस, तुवर, लोबिया, पहाड़ी मास दाल मुनस्यारी और चकराता के राजमा की खूब डिमांड हो रही है. इसके अलावा पहाड़ के मंडुए और झंगोरा की भी खूब मांग हो रही है. जानकारों की मानें सर्दियों में गहत की दाल के साथ अन्य दालों का मिश्रण काफी अच्छा होता है. ये सिर्फ न आपको सर्दी से बचाती हैं, बल्कि पथरी के इलाज में कारगर साबित होती हैं. गहत की दाल में कार्बोहाइड्रेट, वसा, रेशा और खनिज के साथ-साथ कैल्शियम सहित कई अन्य मिनरल से भरपूर होते हैं. इसके अलावा पहाड़ की काली और सफेद भट भी काफी पौष्टिक होती है.

पढ़ें- रसोई पर पड़ रही महंगाई की मार, उत्तराखंड में आसमान छू रहे सब्जी और राशन के दाम

पहाड़ी दालों की जैविक खेती: दालों की जैविक खेती करने वाले अनिल पांडे की मानें तो पहाड़ी दालों के उत्पादन में किसी भी तरह के पेस्टिसाइड या केमिकल खाद का प्रयोग नहीं किया जाता है. यही कारण है कि पहाड़ की दालों की खेती पूरी तरह से जैविक होती है. इसमें सिर्फ गोबर की खाद का इस्तेमाल किया जाता है. यही कारण है कि पहाड़ की दालें कई असाध्य रोगों के इलाज में कारगर मानी जाती हैं.

बाजार में पहाड़ी दालों के दाम: बाजारों में इन दिनों पहाड़ की दालों की खूब डिमांड हो रही है. पहाड़ मुनस्यारी और चकराता की राजमा जहां ₹180 से ₹200 किलो बिक रही है, वहीं भट की दाल ₹100 से 120 रुपए किलो, गहत 140 से 150, लोबिया 120 से 130, तुअर 170 से 180, रेंस छोटी-बड़ी 130 से 140 प्रति रुपए किलो बिक रही है.

बात उत्पादन की करें तो उत्तराखंड में हर साल 1,02,901 हेक्टेयर में मंडुए की खेती की जाती है, जहां करीब 1,30,000 कुंतल हर साल मंडुए का उत्पादन किया जाता है. वहीं गहत दाल की बात करें तो पूरे प्रदेश में 17,196 हेक्टेयर खेती से करीब 1,37,000 कुंतल उत्पादन किया जाता है. जबकि पहाड़ी राजमा की बात करें तो 5,892 हेक्टेयर में राजमा की खेती से करीब 63,000 कुंतल राजमा का उत्पादन होता है. वहीं पहाड़ी भट दाल 6,733 हेक्टेयर में हर साल करीब 74,000 कुंतल उत्पादन किया जाता है. बात कुमाऊं की करें तो कुमाऊं में मंडुए, राजमा और काले भट का सबसे ज्यादा उत्पादन होता है.

हल्द्वानी: उत्तराखंड की संस्कृति अपने खानपान के साथ-साथ जैविक उत्पादन के लिए भी जानी जाता है. पहाड़ के साथ-साथ मैदानी इलाकों में भी इन दिनों ठंड का कहर जारी है. ठंड से बचने के लिए लोग तरह-तरह के उपाय और बचाव कर रहे हैं, लेकिन ठंड के मौसम में पहाड़ की दालों का अपना विशेष महत्व होता है. जिन्हें लोग बड़े चाव से खाते हैं. पहाड़ की दालें न सिर्फ आपकी इम्यूनिटी बढ़ती हैं बल्कि कई रोगों के लिए रामबाण इलाज भी हैं.

उत्तराखंड में इस समय ठंड अपने चरम पर है. ऐसे में पहाड़ की दालों की डिमांड बढ़ गई है. पहाड़ की दालें केवल ठंड से नहीं बल्कि पथरी जैसे कई बीमारियों का रामबाण इलाज भी हैं. पहाड़ी दालों को रोजाना सेवन करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है. इसके अलावा पहाड़ की दालें आयरन, विटामिन और कैल्शियम से भरपूर होती हैं.

सर्दी में खाएं गर्म तासीर वाली ये पहाड़ी दालें

सर्दियों में बढ़ी पहाड़ी दालों की मांग: बाजारों में इस समय गहत, भट, रैंस, तुवर, लोबिया, पहाड़ी मास दाल मुनस्यारी और चकराता के राजमा की खूब डिमांड हो रही है. इसके अलावा पहाड़ के मंडुए और झंगोरा की भी खूब मांग हो रही है. जानकारों की मानें सर्दियों में गहत की दाल के साथ अन्य दालों का मिश्रण काफी अच्छा होता है. ये सिर्फ न आपको सर्दी से बचाती हैं, बल्कि पथरी के इलाज में कारगर साबित होती हैं. गहत की दाल में कार्बोहाइड्रेट, वसा, रेशा और खनिज के साथ-साथ कैल्शियम सहित कई अन्य मिनरल से भरपूर होते हैं. इसके अलावा पहाड़ की काली और सफेद भट भी काफी पौष्टिक होती है.

पढ़ें- रसोई पर पड़ रही महंगाई की मार, उत्तराखंड में आसमान छू रहे सब्जी और राशन के दाम

पहाड़ी दालों की जैविक खेती: दालों की जैविक खेती करने वाले अनिल पांडे की मानें तो पहाड़ी दालों के उत्पादन में किसी भी तरह के पेस्टिसाइड या केमिकल खाद का प्रयोग नहीं किया जाता है. यही कारण है कि पहाड़ की दालों की खेती पूरी तरह से जैविक होती है. इसमें सिर्फ गोबर की खाद का इस्तेमाल किया जाता है. यही कारण है कि पहाड़ की दालें कई असाध्य रोगों के इलाज में कारगर मानी जाती हैं.

बाजार में पहाड़ी दालों के दाम: बाजारों में इन दिनों पहाड़ की दालों की खूब डिमांड हो रही है. पहाड़ मुनस्यारी और चकराता की राजमा जहां ₹180 से ₹200 किलो बिक रही है, वहीं भट की दाल ₹100 से 120 रुपए किलो, गहत 140 से 150, लोबिया 120 से 130, तुअर 170 से 180, रेंस छोटी-बड़ी 130 से 140 प्रति रुपए किलो बिक रही है.

बात उत्पादन की करें तो उत्तराखंड में हर साल 1,02,901 हेक्टेयर में मंडुए की खेती की जाती है, जहां करीब 1,30,000 कुंतल हर साल मंडुए का उत्पादन किया जाता है. वहीं गहत दाल की बात करें तो पूरे प्रदेश में 17,196 हेक्टेयर खेती से करीब 1,37,000 कुंतल उत्पादन किया जाता है. जबकि पहाड़ी राजमा की बात करें तो 5,892 हेक्टेयर में राजमा की खेती से करीब 63,000 कुंतल राजमा का उत्पादन होता है. वहीं पहाड़ी भट दाल 6,733 हेक्टेयर में हर साल करीब 74,000 कुंतल उत्पादन किया जाता है. बात कुमाऊं की करें तो कुमाऊं में मंडुए, राजमा और काले भट का सबसे ज्यादा उत्पादन होता है.

Last Updated : Jan 15, 2022, 5:27 PM IST
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