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देवभूमि में फूलदेई पर्व की धूम, त्योहार मनाने के पीछे की ये है रोचक कहानी

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Published : Mar 14, 2020, 9:48 AM IST

Updated : Mar 14, 2020, 5:36 PM IST

बसंत ऋतु के आगाज के साथ फूलदेई पर्व की शुरुआत हो गई है. कुमाऊं में इसे फूलदेई तो गढ़वाल में फूल संक्रांति कहा जाता है. इस दिन हिंदू नववर्ष की शुरुआत भी मानी जाती है.

फूलदेई
फूलदेई

हल्द्वानीः फूलदेई त्योहार आज यानी (शनिवार) से शुरू हो गया है. देवभूमि में फूलदेई पर्व की खास मान्यता है. कुमाऊं में इसे फूलदेई के रूप में मनाया जाता है. जबकि गढ़वाल में फूल संक्राति के रूप में मनाया जाता है. ये उत्तराखंड के बाल पर्व के रुप में मनाया जाता है. बच्चों की आस्था और हर्षोल्लास का त्योहार फूलदेई आज कुमाऊं में धूमधाम से मनाया जा रहा है. ग्रामीण इलाकों में पहाड़ की संस्कृति को संजोए बच्चे घर-घर जाकर लोगों की देहरी में फूल चढ़ा रहे हैं. उसके बदले में लोग इन नौनिहालों को श्रद्धा से गुड़-चावल प्रसाद के रूप में देते हैं.

देवभूमि में फूलदेई पर्व की धूम.

इस त्योहार को लेकर बच्चों में खासा उत्साह रहता है. इसके लिए बच्चे पूरे साल इस दिन का बेसब्री से इंतजार करते हैं. बच्चों की आस्था से जुड़े इस त्योहार में समाज की उन्नति और संपन्नता के लिए इष्ट देवता से प्रार्थना की जाती है.

phooldei
देहरी पूजने के बाद बच्चों को मिष्ठान और सामग्री देती महिला.

फूलदेई त्योहार का महत्व

बसंत ऋतु के स्वागत के लिए इस पर्व को मनाया जाता है. चैत की संक्रांति यानी फूलदेई के दिन से प्रकृति का नजारा ही बदल जाता है. हर ओर फूल खिलने शुरू हो जाते हैं. फूलदेई के लिए बच्चे अपनी टोकरी में खेतों और जंगलों से रंग- बिरंगे फूल चुनकर लाते हैं और हर घर की देहरी पर चुनकर लाए इन फूलों चढ़ाते हैं.

इस लोक पर्व के दौरान बच्चे लोकगीत भी गाते हैं. 'फूलदेई छम्मा देई, दैणी द्वार, भर भकार, ये देली स बारंबार नमस्कार' यानि भगवान देहरी के इन फूलों से सबकी रक्षा करें और घरों में अन्न के भंडार कभी खाली न होने दें.

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देवभूमि में फूलदेई पर्व की धूम.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, फूलदेई त्योहार मनाने के पीछे एक रोचक कहानी भी है. ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव शीतकाल में अपनी तपस्या में लीन थे. ऋतु परिवर्तन के कई वर्ष बीत गए. लेकिन, शिव की तंद्रा नहीं टूटी. ऐसे में मां पार्वती भी नहीं बल्कि नंदी-शिवगण और संसार के कई वर्ष शिव के तंद्रालीन होने से वे मौसमी हो गए.

phooldei
देहरी पूजने जाते बच्चे.

पढ़ेंः CM आवास पर धूमधाम से मनाया गया फूलदेई पर्व, मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ने बच्चों को दी शुभकामनाएं

आखिरकार, शिव की तंद्रा तोड़ने के लिए पार्वती ने युक्ति निकाली और शिव भक्तों को पीतांबरी वस्त्र पहनाकर उन्हें अबोध बच्चों का स्वरूप दे दिया. फिर सभी देव क्यारियों में ऐसे पुष्प चुनकर लाए, जिनकी खुशबू पूरे कैलाश में महक उठी. सबसे पहले शिव के तंद्रालीन मुद्रा को अर्पित किए गए, जिसे फूलदेई कहा गया.

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प्योली के फूल.

शिव की तंद्रा टूटी लेकिन, सामने बच्चों के वेश में शिवगणों को देखकर उनका क्रोध शांत हो गया.गौरतलब है कि पहाड़ की संस्कृति के अनुसार, इस दिन हिंदू नववर्ष की शुरूआत भी मानी जाती है. इस वक्त उत्तराखंड के पहाड़ों में अनेक प्रकार के सुंदर और रंग-बिरंगे फूल खिलते हैं. पूरे पहाड़ का आंचल रंग-बिरंगे फूलों से सजा होता है.

हल्द्वानीः फूलदेई त्योहार आज यानी (शनिवार) से शुरू हो गया है. देवभूमि में फूलदेई पर्व की खास मान्यता है. कुमाऊं में इसे फूलदेई के रूप में मनाया जाता है. जबकि गढ़वाल में फूल संक्राति के रूप में मनाया जाता है. ये उत्तराखंड के बाल पर्व के रुप में मनाया जाता है. बच्चों की आस्था और हर्षोल्लास का त्योहार फूलदेई आज कुमाऊं में धूमधाम से मनाया जा रहा है. ग्रामीण इलाकों में पहाड़ की संस्कृति को संजोए बच्चे घर-घर जाकर लोगों की देहरी में फूल चढ़ा रहे हैं. उसके बदले में लोग इन नौनिहालों को श्रद्धा से गुड़-चावल प्रसाद के रूप में देते हैं.

देवभूमि में फूलदेई पर्व की धूम.

इस त्योहार को लेकर बच्चों में खासा उत्साह रहता है. इसके लिए बच्चे पूरे साल इस दिन का बेसब्री से इंतजार करते हैं. बच्चों की आस्था से जुड़े इस त्योहार में समाज की उन्नति और संपन्नता के लिए इष्ट देवता से प्रार्थना की जाती है.

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देहरी पूजने के बाद बच्चों को मिष्ठान और सामग्री देती महिला.

फूलदेई त्योहार का महत्व

बसंत ऋतु के स्वागत के लिए इस पर्व को मनाया जाता है. चैत की संक्रांति यानी फूलदेई के दिन से प्रकृति का नजारा ही बदल जाता है. हर ओर फूल खिलने शुरू हो जाते हैं. फूलदेई के लिए बच्चे अपनी टोकरी में खेतों और जंगलों से रंग- बिरंगे फूल चुनकर लाते हैं और हर घर की देहरी पर चुनकर लाए इन फूलों चढ़ाते हैं.

इस लोक पर्व के दौरान बच्चे लोकगीत भी गाते हैं. 'फूलदेई छम्मा देई, दैणी द्वार, भर भकार, ये देली स बारंबार नमस्कार' यानि भगवान देहरी के इन फूलों से सबकी रक्षा करें और घरों में अन्न के भंडार कभी खाली न होने दें.

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देवभूमि में फूलदेई पर्व की धूम.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, फूलदेई त्योहार मनाने के पीछे एक रोचक कहानी भी है. ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव शीतकाल में अपनी तपस्या में लीन थे. ऋतु परिवर्तन के कई वर्ष बीत गए. लेकिन, शिव की तंद्रा नहीं टूटी. ऐसे में मां पार्वती भी नहीं बल्कि नंदी-शिवगण और संसार के कई वर्ष शिव के तंद्रालीन होने से वे मौसमी हो गए.

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देहरी पूजने जाते बच्चे.

पढ़ेंः CM आवास पर धूमधाम से मनाया गया फूलदेई पर्व, मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ने बच्चों को दी शुभकामनाएं

आखिरकार, शिव की तंद्रा तोड़ने के लिए पार्वती ने युक्ति निकाली और शिव भक्तों को पीतांबरी वस्त्र पहनाकर उन्हें अबोध बच्चों का स्वरूप दे दिया. फिर सभी देव क्यारियों में ऐसे पुष्प चुनकर लाए, जिनकी खुशबू पूरे कैलाश में महक उठी. सबसे पहले शिव के तंद्रालीन मुद्रा को अर्पित किए गए, जिसे फूलदेई कहा गया.

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प्योली के फूल.

शिव की तंद्रा टूटी लेकिन, सामने बच्चों के वेश में शिवगणों को देखकर उनका क्रोध शांत हो गया.गौरतलब है कि पहाड़ की संस्कृति के अनुसार, इस दिन हिंदू नववर्ष की शुरूआत भी मानी जाती है. इस वक्त उत्तराखंड के पहाड़ों में अनेक प्रकार के सुंदर और रंग-बिरंगे फूल खिलते हैं. पूरे पहाड़ का आंचल रंग-बिरंगे फूलों से सजा होता है.

Last Updated : Mar 14, 2020, 5:36 PM IST
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