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शिवालिक एलीफेंट कॉरिडोर डी-नोटिफाइड मामला, 8 सितंबर को अगली सुनवाई - याचिकाकर्ता रेनू पाल

हाईकोर्ट ने शिवालिक एलीफेंट कॉरिडोर को डी-नोटिफाइड करने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए अगली सुनवाई 8 सितंबर की तिथि नियत की है.

nainital
नैनीताल
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Published : Aug 25, 2021, 8:09 PM IST

देहरादूनः हाईकोर्ट ने विकास के नाम पर राज्य सरकार द्वारा रिजर्व शिवालिक एलिफेंट कॉरिडोर को डी-नोटिफाइड करने और देहरादून-दिल्ली नेशनल हाईवे के चौड़ीकरण के खिलाफ दायर दोनों जनहित याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की. मामले को सुनने के बाद खंडपीठ ने अगली सुनवाई हेतु 8 सितंबर की तिथि नियत की है. मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में हुई.

मामले के तहत पिछली तारीख पर कोर्ट ने कहा था कि संतुलित विकास के लिए पर्यावरण संरक्षण के साथ विकास दोनों का संतुलन बनाए रखना जरूरी है. कोर्ट ने NHAI से पूछा था कि दिल्ली–देहरादून हाईवे के चौड़ीकरण में आ रहे पेड़ों को बचाने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं. कोर्ट ने याचिकाकर्ता से भी कहा था कि वह कोर्ट को बताए कि किस तरीके से 2500 साल प्रजाति के वृक्ष कटने से दून को क्षति होगा और इस क्षति की भरपाई अधिक वृक्षारोपण करके नहीं की जा सकती.

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मामले के मुताबिक देहरादून निवासी रेनू पाल एवं अमित खोलिया ने दो अलग-अलग जनहित याचिकाएं दायर कर कहा है कि 24 नवंबर 2020 को स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड की बैठक में प्रदेश के विकास कार्यों को बढ़ावा देने के लिए देहरादून जौलीग्रांट एयरपोर्ट के विस्तार करने हेतु शिवालिक एलिफेंट रिजर्व फॉरेस्ट को डी-नोटिफाइड करने का निर्णय लिया गया. साथ ही ये भी कहा गया कि शिवालिक एलिफेंट रिजर्व के डी-नोटिफाइड नहीं करने से राज्य की कई महत्वपूर्ण परियोजनाएं प्रभावित हो रही हैं.

लिहाजा इसे डी-नोटिफाइड करना अति आवश्यक है. इस नोटिफिकेशन को याचिकाकर्ताओं द्वारा कोर्ट में चुनौती दी गई. सरकार के इस डी-नोटिफिकेशन के आदेश पर कोर्ट पहले ही रोक लगा चुकी है.

ये भी पढ़ेंः न्यू ग्रीन फील्ड एयरपोर्ट मामला: HC ने सचिव नागरिक उड्डयन को किया तलब

याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि शिवालिक एलीफेंट कॉरिडोर 2002 से रिजर्व एलिफेंट कॉरिडोर की श्रेणी में शामिल है, जो करीब 5405 स्क्वायर वर्ग किलोमीटर में फैला है. यह वन्यजीव बोर्ड द्वारा भी डी-नोटिफाइड किया गया क्षेत्र है. उसके बाद भी बोर्ड इसे डी-नोटिफाइड करने की अनुमति कैसे दे सकता है. जबकि, एलिफेंट इस क्षेत्र से नेपाल तक जाते हैं.

दिल्ली से देहरादून के लिए नेशनल हाईवे के चौड़ीकरण के मामले में याचिकर्ता का कहना है कि हाईवे के चौड़ीकरण करने से राजाजी नेशनल पार्क के इको सेंसिटिव जोन का 9 हेक्टेयर क्षेत्र प्रभावित हो रहा है, जिसमें लगभग 2500 पेड़ साल प्रजाति के हैं. इन पेड़ों में कई पेड़ 100 से 150 साल पुराने हैं, जिन्हें राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया गया है.

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क्या है मामला: शिवालिक एलिफेंट रिजर्व उत्तराखंड में हाथियों का एकमात्र अभ्यारण्य है. उत्तराखंड का ये क्षेत्र करीब पांच हजार वर्ग किलोमीटर का है, जहां एशियाई हाथियों की मौजूदगी है. 28 अक्टूबर 2002 को तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने अधिसूचना जारी कर इसे एलिफेंट रिजर्व घोषित किया था. प्रदेश के 17 वन प्रभागों में से 14 प्रभाग इस रिजर्व में शामिल हैं.

प्रदेश सरकार के मुताबिक इस शिवालिक रिजर्व की अधिसूचना निरस्त करने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा. अधिकतर क्षेत्र अब भी संरक्षित वन क्षेत्र का हिस्सा है. दरअसल, 24 नवंबर 2020 को तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की अध्यक्षता में स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड की एक बैठक हुई थी. बैठक में स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड ने एलिफेंट रिजर्व खत्म करने का प्रस्ताव पास कर दिया यानि एलिफेंट रिजर्व को डिनोटिफाइड कर दिया गया. ऐसा इसलिए भी किया गया, क्योंकि इस जगह से तमाम बड़े प्रोजेक्ट होकर गुजरने थे. वहीं, जौलीग्रांट एयरपोर्ट के विस्तारीकरण के रास्ते में भी ये एलिफेंट रिजर्व आ रहा था.

क्या होता है नोटिफाई/डि-नोटिफाई करना: नोटिफाई करने का मतलब होता है कि किसी जमीन को सरकार द्वारा अपने अधिकार में लेना या आरक्षित कर लेना, ताकि सरकारी निर्देश के मुताबिक ही उस जमीन पर काम हो सके. 2002 में कांग्रेस की सरकार ने यही किया. 5405 वर्ग किमी जमीन को एलिफेंट रिजर्व के लिए नोटिफाड कर दिया. अब 2020 में बीजेपी सरकार ने इस जमीन को डिनोटिफाइड कर दिया यानि जमीन पर विकास कार्यों के लिए इसे खुला छोड़ दिया गया.

देहरादूनः हाईकोर्ट ने विकास के नाम पर राज्य सरकार द्वारा रिजर्व शिवालिक एलिफेंट कॉरिडोर को डी-नोटिफाइड करने और देहरादून-दिल्ली नेशनल हाईवे के चौड़ीकरण के खिलाफ दायर दोनों जनहित याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की. मामले को सुनने के बाद खंडपीठ ने अगली सुनवाई हेतु 8 सितंबर की तिथि नियत की है. मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में हुई.

मामले के तहत पिछली तारीख पर कोर्ट ने कहा था कि संतुलित विकास के लिए पर्यावरण संरक्षण के साथ विकास दोनों का संतुलन बनाए रखना जरूरी है. कोर्ट ने NHAI से पूछा था कि दिल्ली–देहरादून हाईवे के चौड़ीकरण में आ रहे पेड़ों को बचाने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं. कोर्ट ने याचिकाकर्ता से भी कहा था कि वह कोर्ट को बताए कि किस तरीके से 2500 साल प्रजाति के वृक्ष कटने से दून को क्षति होगा और इस क्षति की भरपाई अधिक वृक्षारोपण करके नहीं की जा सकती.

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मामले के मुताबिक देहरादून निवासी रेनू पाल एवं अमित खोलिया ने दो अलग-अलग जनहित याचिकाएं दायर कर कहा है कि 24 नवंबर 2020 को स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड की बैठक में प्रदेश के विकास कार्यों को बढ़ावा देने के लिए देहरादून जौलीग्रांट एयरपोर्ट के विस्तार करने हेतु शिवालिक एलिफेंट रिजर्व फॉरेस्ट को डी-नोटिफाइड करने का निर्णय लिया गया. साथ ही ये भी कहा गया कि शिवालिक एलिफेंट रिजर्व के डी-नोटिफाइड नहीं करने से राज्य की कई महत्वपूर्ण परियोजनाएं प्रभावित हो रही हैं.

लिहाजा इसे डी-नोटिफाइड करना अति आवश्यक है. इस नोटिफिकेशन को याचिकाकर्ताओं द्वारा कोर्ट में चुनौती दी गई. सरकार के इस डी-नोटिफिकेशन के आदेश पर कोर्ट पहले ही रोक लगा चुकी है.

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याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि शिवालिक एलीफेंट कॉरिडोर 2002 से रिजर्व एलिफेंट कॉरिडोर की श्रेणी में शामिल है, जो करीब 5405 स्क्वायर वर्ग किलोमीटर में फैला है. यह वन्यजीव बोर्ड द्वारा भी डी-नोटिफाइड किया गया क्षेत्र है. उसके बाद भी बोर्ड इसे डी-नोटिफाइड करने की अनुमति कैसे दे सकता है. जबकि, एलिफेंट इस क्षेत्र से नेपाल तक जाते हैं.

दिल्ली से देहरादून के लिए नेशनल हाईवे के चौड़ीकरण के मामले में याचिकर्ता का कहना है कि हाईवे के चौड़ीकरण करने से राजाजी नेशनल पार्क के इको सेंसिटिव जोन का 9 हेक्टेयर क्षेत्र प्रभावित हो रहा है, जिसमें लगभग 2500 पेड़ साल प्रजाति के हैं. इन पेड़ों में कई पेड़ 100 से 150 साल पुराने हैं, जिन्हें राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया गया है.

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क्या है मामला: शिवालिक एलिफेंट रिजर्व उत्तराखंड में हाथियों का एकमात्र अभ्यारण्य है. उत्तराखंड का ये क्षेत्र करीब पांच हजार वर्ग किलोमीटर का है, जहां एशियाई हाथियों की मौजूदगी है. 28 अक्टूबर 2002 को तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने अधिसूचना जारी कर इसे एलिफेंट रिजर्व घोषित किया था. प्रदेश के 17 वन प्रभागों में से 14 प्रभाग इस रिजर्व में शामिल हैं.

प्रदेश सरकार के मुताबिक इस शिवालिक रिजर्व की अधिसूचना निरस्त करने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा. अधिकतर क्षेत्र अब भी संरक्षित वन क्षेत्र का हिस्सा है. दरअसल, 24 नवंबर 2020 को तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की अध्यक्षता में स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड की एक बैठक हुई थी. बैठक में स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड ने एलिफेंट रिजर्व खत्म करने का प्रस्ताव पास कर दिया यानि एलिफेंट रिजर्व को डिनोटिफाइड कर दिया गया. ऐसा इसलिए भी किया गया, क्योंकि इस जगह से तमाम बड़े प्रोजेक्ट होकर गुजरने थे. वहीं, जौलीग्रांट एयरपोर्ट के विस्तारीकरण के रास्ते में भी ये एलिफेंट रिजर्व आ रहा था.

क्या होता है नोटिफाई/डि-नोटिफाई करना: नोटिफाई करने का मतलब होता है कि किसी जमीन को सरकार द्वारा अपने अधिकार में लेना या आरक्षित कर लेना, ताकि सरकारी निर्देश के मुताबिक ही उस जमीन पर काम हो सके. 2002 में कांग्रेस की सरकार ने यही किया. 5405 वर्ग किमी जमीन को एलिफेंट रिजर्व के लिए नोटिफाड कर दिया. अब 2020 में बीजेपी सरकार ने इस जमीन को डिनोटिफाइड कर दिया यानि जमीन पर विकास कार्यों के लिए इसे खुला छोड़ दिया गया.

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