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रामनगर में हुड़किया बौल की धुनों पर हुई धान की रोपाई, भूली-बिसरी परंपरा याद आईं - Hudkiya Ball program in Umedpur village of Ramnagar

रामनगर के उमेदपुर गांव में हुड़किया बौल की धुनों पर खेतों में धान की रोपाई की गई. उत्तराखंड में हुड़किया बौल की परंपरा बहुत पुरानी है, जो कि अब धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है.

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रामनगर में हुड़किया बौल की धुनों पर खेतों में हुई धान की रोपाई,
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Published : Aug 6, 2021, 4:49 PM IST

Updated : Aug 6, 2021, 5:04 PM IST

रामनगर: पहाड़ की विलुप्त होती संस्कृति हुड़किया बौल आज भी रामनगर में दिखाई देती है. रामनगर में हुड़किया बौल के धुनों पर धान की रोपाई की जाती है. कहा जाता है हुड़के की धुन पर किसान धान रोपाई का जटिल काम भी आसानी से कर लेते हैं. हुड़किया बौल के स्वरों के बीच चांचड़ी गाकर धान की रोपाई की जाती है. रामनगर के उमेदपुर में हुड़के के बौल में धान रोपाई का कार्यक्रम हुआ. जिसका आयोजन पूर्व विधायक व कांग्रेस कार्यकारी अध्यक्ष रणजीत सिंह रावत के खेतों में किया गया.

पहले के जमाने में हुड़के की थाप पर चाचड़ी गाकर गांव में धान रोपाई का कार्य किया जाता था. पहाड़ की विलुप्त होती लोक संस्कृति को जीवित रखने के लिए पूर्व विधायक व कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रणजीत सिंह रावत ने अपने खेतों पर उमेदपुर में यह कार्यक्रम आयोजित किया. इस पहाड़ की विलुप्त होती संस्कृति को देखने के लिए आसपास के ग्रामीण भी पहुंचे. ग्रामीणों का मानना है कि हुड़के की थाप में धान रोपाई का काम आसान हो जाता है. रोपाई करते हुए हुड़के से निकलने वाली जोशीली ध्वनि से थकान का एहसास भी नहीं होता.

रामनगर में हुड़किया बौल की धुनों पर खेतों में हुई धान की रोपाई,

पढ़ें- वंदना कटारिया के घर के बाहर पटाखे फोड़ने का मामला, DGP अशोक कुमार बोले- सही दिशा में जारी जांच


रोपाई के दौरान हुड़किया बौल के स्वरों और थाप पर ही रोपाई का कार्य किया जाता था. आज धीरे-धीरे ये संस्कृति विलुप्त होती जा रही है. अभी भी कुछ गांवों में हुड़के की थाप पर चांचड़ी गाकर रोपाई कर परंपरा को बचाने का प्रयास किया जा रहा है. हुड़का वादक के गीतों पर महिलाओं व पुरुषों ने पारंपरिक तरीके से रोपाई का काम शुरू किया. हुड़का वादक ने झोड़ा, चांचड़ी, धनौला आदि लोकगीतों को गाकर ऐसा समां बांधा की महिलाओं ने उनके सुर में सुर मिलाकर माहौल को संगीतमय बना दिया.

पढ़ें- वंदना कटारिया के घर के बाहर पटाखे फोड़ने का मामला, DGP अशोक कुमार बोले- सही दिशा में जारी जांच

आयोजक कांग्रेस कार्यकारी अध्यक्ष रणजीत सिंह रावत ने बताया कि पहले लोगों के पास मनोरंजन का कोई साधन नहीं था. तब वादक उन्हें पारंपरिक कथाओं को गानों में पिरोकर सुनाता था. जिसका सभी मिलकर आनंद लिया करते थे. वे कहते हैं कि तत्कालीन परिवेश अब धीरे-धीरे समाप्ति की कगार पर हैं. पर्वतीय क्षेत्र का युवा वर्ग रोजगार की तलाश में भटक रहा है. सरकार द्वारा गांव से सरकारी सस्ते गल्ले की दुकानों में सस्ता अनाज मिलने से लोग खेती में भी रुचि नहीं ले रहे हैं. इससे आज पूर्वजों द्वारा संरक्षित बीज भी धीरे-धीरे खत्म हो रहा है. अब गांव में जो भी रह रहा है वह खेती नहीं करना चाहता. सामूहिक कार्य परंपरा भी अब समाप्त हो रही है. यह एकमात्र उन क्षेत्रों में बची है जहां लोग स्वयं की रुचि से काम करते हैं.

पढ़ें- बाढ़ में फंसी युवती की गुहार : लगातार बढ़ रहा है पानी, प्लीज हमें बचा लीजिए


रणजीत सिंह रावत कहते हैं कि हुड़किया बौल पहाड़ की खेती के दौरान आयोजित होने वाली परंपरागत संस्कृति है, जो विलुप्ति के कगार पर है. इसे भावर के खेतों से शुरू करने का मकसद यही है कि पहाड़ छोड़कर यहां बसे लोग अपनी संस्कृति को भावर में भी जीवित रखें ताकि इस परंपरा को नई पीढ़ी भी जान सके.

रामनगर: पहाड़ की विलुप्त होती संस्कृति हुड़किया बौल आज भी रामनगर में दिखाई देती है. रामनगर में हुड़किया बौल के धुनों पर धान की रोपाई की जाती है. कहा जाता है हुड़के की धुन पर किसान धान रोपाई का जटिल काम भी आसानी से कर लेते हैं. हुड़किया बौल के स्वरों के बीच चांचड़ी गाकर धान की रोपाई की जाती है. रामनगर के उमेदपुर में हुड़के के बौल में धान रोपाई का कार्यक्रम हुआ. जिसका आयोजन पूर्व विधायक व कांग्रेस कार्यकारी अध्यक्ष रणजीत सिंह रावत के खेतों में किया गया.

पहले के जमाने में हुड़के की थाप पर चाचड़ी गाकर गांव में धान रोपाई का कार्य किया जाता था. पहाड़ की विलुप्त होती लोक संस्कृति को जीवित रखने के लिए पूर्व विधायक व कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रणजीत सिंह रावत ने अपने खेतों पर उमेदपुर में यह कार्यक्रम आयोजित किया. इस पहाड़ की विलुप्त होती संस्कृति को देखने के लिए आसपास के ग्रामीण भी पहुंचे. ग्रामीणों का मानना है कि हुड़के की थाप में धान रोपाई का काम आसान हो जाता है. रोपाई करते हुए हुड़के से निकलने वाली जोशीली ध्वनि से थकान का एहसास भी नहीं होता.

रामनगर में हुड़किया बौल की धुनों पर खेतों में हुई धान की रोपाई,

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रोपाई के दौरान हुड़किया बौल के स्वरों और थाप पर ही रोपाई का कार्य किया जाता था. आज धीरे-धीरे ये संस्कृति विलुप्त होती जा रही है. अभी भी कुछ गांवों में हुड़के की थाप पर चांचड़ी गाकर रोपाई कर परंपरा को बचाने का प्रयास किया जा रहा है. हुड़का वादक के गीतों पर महिलाओं व पुरुषों ने पारंपरिक तरीके से रोपाई का काम शुरू किया. हुड़का वादक ने झोड़ा, चांचड़ी, धनौला आदि लोकगीतों को गाकर ऐसा समां बांधा की महिलाओं ने उनके सुर में सुर मिलाकर माहौल को संगीतमय बना दिया.

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आयोजक कांग्रेस कार्यकारी अध्यक्ष रणजीत सिंह रावत ने बताया कि पहले लोगों के पास मनोरंजन का कोई साधन नहीं था. तब वादक उन्हें पारंपरिक कथाओं को गानों में पिरोकर सुनाता था. जिसका सभी मिलकर आनंद लिया करते थे. वे कहते हैं कि तत्कालीन परिवेश अब धीरे-धीरे समाप्ति की कगार पर हैं. पर्वतीय क्षेत्र का युवा वर्ग रोजगार की तलाश में भटक रहा है. सरकार द्वारा गांव से सरकारी सस्ते गल्ले की दुकानों में सस्ता अनाज मिलने से लोग खेती में भी रुचि नहीं ले रहे हैं. इससे आज पूर्वजों द्वारा संरक्षित बीज भी धीरे-धीरे खत्म हो रहा है. अब गांव में जो भी रह रहा है वह खेती नहीं करना चाहता. सामूहिक कार्य परंपरा भी अब समाप्त हो रही है. यह एकमात्र उन क्षेत्रों में बची है जहां लोग स्वयं की रुचि से काम करते हैं.

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रणजीत सिंह रावत कहते हैं कि हुड़किया बौल पहाड़ की खेती के दौरान आयोजित होने वाली परंपरागत संस्कृति है, जो विलुप्ति के कगार पर है. इसे भावर के खेतों से शुरू करने का मकसद यही है कि पहाड़ छोड़कर यहां बसे लोग अपनी संस्कृति को भावर में भी जीवित रखें ताकि इस परंपरा को नई पीढ़ी भी जान सके.

Last Updated : Aug 6, 2021, 5:04 PM IST
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