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निर्जला एकादशी व्रत करने से मिलता है 24 व्रतों का फल, जानें शुभ मुहूर्त और महत्व - निर्जला एकादशी लेटेस्ट न्यूज

शुक्रवार को निर्जला एकादशी है. निर्जला एकादशी सभी एकादशियों में सबसे महत्वपूर्ण होती है. इस दिन जलदान, घटदान और वस्त्र दान करने से विशेष फल मिलता है. निर्जला एकादशी के दिन जग के पालनहार भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. इस दिन निर्जला व्रत रखने से सुख-शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है.

Nirjala Ekadashi
निर्जला एकादशी
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Published : Jun 9, 2022, 1:19 PM IST

हल्द्वानी: जेष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी व्रत कहा जाता है. जेष्ठ माह की निर्जला एकादशी 10 जून शुक्रवार को पड़ रही है. इस व्रत के करने से 24 एकादशी जितने पुण्य की प्राप्ति होती है. भगवान विष्णु को समर्पित यह व्रत सभी व्रत में उत्तम और कठिन व्रत माना जाता है. मान्यता है कि जो कोई एकादशी का व्रत नहीं करता, वह अगर निर्जला एकादशी का व्रत करता है तो सभी 24 एकादशी की फल की प्राप्ति होती है. ज्योतिष के अनुसार, गंगा दशहरे के अगले दिन 10 जून को निर्जला एकादशी है.

ज्योतिषाचार्य डॉ. नवीन चंद्र जोशी के मुताबिक, वर्ष में हर महीने कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दो एकादशी व्रत मनाए जाते हैं. लेकिन बहुत से ऐसे लोग हैं, जो हर महीने एकादशी का व्रत नहीं करते हैं. ऐसे में साल में एक बार निर्जला एकादशी व्रत करने से सभी 24 एकादशी व्रत के बराबर का फल मिलता है. साथ ही सभी तरह के पापों का नाश होता है.

ज्योतिषाचार्य डॉ. नवीन चंद्र जोशी.

दान से मिलता है विशेष फलः महाभारत में भगवान कृष्ण ने इस व्रत का विधान महाबली भीमसेन को बताया था. बिना जल ग्रहण किये इस व्रत को किया जाता है. दो प्रकार की विधि है. एक सूर्योदय से सूर्यास्त तक दूसरा सूर्योदय से दूसरे दिन सूर्योदय तक बिना जल के रहना. एकादशी व्रत को व्रतों का राजा माना गया है. एकादशी को जलदान, घटदान और वस्त्र दान करने से विशेष फल मिलता है. निर्जला एकादशी व्रत 10 जून शुक्रवार सुबह 5 बजे से अगले दिन सूर्य उदय तक रखा जाएगा. जबकि 11 जून शनिवार को संन्यासी व्रत का महत्व है.
ये भी पढ़ेंः Nirjala Ekadashi 2022 निर्जला एकादशी की तिथि को लेकर असमंजस, जानें क्या है व्रत का उत्तम दिन और समय

कैसे करें पूजाः सुबह उठकर पवित्र नदी में स्नान करें. भगवान विष्णु के निमित्त व्रत का संकल्प करें. पूरे दिन निर्जल व्रत रखें और भगवान विष्णु का ध्यान करें. भगवान विष्णु को लाल फूलों की माला, धूप, दीप, नैवेद्य और पीले फल अर्पित करें और ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः का जाप करें. हो सके तो इस दिन गरीबों को दान भी करें. इस दिन के दान का विशेष महत्व है.

निर्जला एकादशी का पौराणिक महत्व: निर्जला एकादशी का पौराणिक महत्व है. मान्यता है कि महाभारत में भगवान कृष्ण ने इस व्रत का विधान महाबली भीमसेन को बताया था. इस दिन बिना जल ग्रहण किए इस व्रत को किया जाता है. एकादशी व्रतों का राजा माना जाता है. इस दिन जल दान, घटदान और वस्त्र दान करने का भी विशेष फल मिलता है. शास्त्रों के मुताबिक, जो भी व्यक्ति इस व्रत को करता है, वह अपने शारीरिक सामर्थ्य के अनुसार व्रत को करे.

हल्द्वानी: जेष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी व्रत कहा जाता है. जेष्ठ माह की निर्जला एकादशी 10 जून शुक्रवार को पड़ रही है. इस व्रत के करने से 24 एकादशी जितने पुण्य की प्राप्ति होती है. भगवान विष्णु को समर्पित यह व्रत सभी व्रत में उत्तम और कठिन व्रत माना जाता है. मान्यता है कि जो कोई एकादशी का व्रत नहीं करता, वह अगर निर्जला एकादशी का व्रत करता है तो सभी 24 एकादशी की फल की प्राप्ति होती है. ज्योतिष के अनुसार, गंगा दशहरे के अगले दिन 10 जून को निर्जला एकादशी है.

ज्योतिषाचार्य डॉ. नवीन चंद्र जोशी के मुताबिक, वर्ष में हर महीने कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दो एकादशी व्रत मनाए जाते हैं. लेकिन बहुत से ऐसे लोग हैं, जो हर महीने एकादशी का व्रत नहीं करते हैं. ऐसे में साल में एक बार निर्जला एकादशी व्रत करने से सभी 24 एकादशी व्रत के बराबर का फल मिलता है. साथ ही सभी तरह के पापों का नाश होता है.

ज्योतिषाचार्य डॉ. नवीन चंद्र जोशी.

दान से मिलता है विशेष फलः महाभारत में भगवान कृष्ण ने इस व्रत का विधान महाबली भीमसेन को बताया था. बिना जल ग्रहण किये इस व्रत को किया जाता है. दो प्रकार की विधि है. एक सूर्योदय से सूर्यास्त तक दूसरा सूर्योदय से दूसरे दिन सूर्योदय तक बिना जल के रहना. एकादशी व्रत को व्रतों का राजा माना गया है. एकादशी को जलदान, घटदान और वस्त्र दान करने से विशेष फल मिलता है. निर्जला एकादशी व्रत 10 जून शुक्रवार सुबह 5 बजे से अगले दिन सूर्य उदय तक रखा जाएगा. जबकि 11 जून शनिवार को संन्यासी व्रत का महत्व है.
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कैसे करें पूजाः सुबह उठकर पवित्र नदी में स्नान करें. भगवान विष्णु के निमित्त व्रत का संकल्प करें. पूरे दिन निर्जल व्रत रखें और भगवान विष्णु का ध्यान करें. भगवान विष्णु को लाल फूलों की माला, धूप, दीप, नैवेद्य और पीले फल अर्पित करें और ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः का जाप करें. हो सके तो इस दिन गरीबों को दान भी करें. इस दिन के दान का विशेष महत्व है.

निर्जला एकादशी का पौराणिक महत्व: निर्जला एकादशी का पौराणिक महत्व है. मान्यता है कि महाभारत में भगवान कृष्ण ने इस व्रत का विधान महाबली भीमसेन को बताया था. इस दिन बिना जल ग्रहण किए इस व्रत को किया जाता है. एकादशी व्रतों का राजा माना जाता है. इस दिन जल दान, घटदान और वस्त्र दान करने का भी विशेष फल मिलता है. शास्त्रों के मुताबिक, जो भी व्यक्ति इस व्रत को करता है, वह अपने शारीरिक सामर्थ्य के अनुसार व्रत को करे.

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