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शिवालिक एलीफेंट रिजर्व मामले में हाई कोर्ट सख्त, केंद्र और राज्य सरकार से मांगा जवाब

शिवालिक एलीफेंट रिजर्व को डिनोटिफाई करने के मामले पर हाई कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार समेत जैव विविधता बोर्ड को 10 दिन के भीतर जवाब कोर्ट में पेश करने के आदेश दिए हैं. साथ ही राज्य वन्यजीव बोर्ड के सदस्य सचिव को अगली सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से पेश होने के आदेश दिए हैं.

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Published : Mar 3, 2021, 7:30 PM IST

हाई कोर्ट सख्त
हाई कोर्ट सख्त

नैनीताल: राज्य सरकार द्वारा शिवालिक एलीफेंट रिजर्व को डिनोटिफाई करने के मामले पर नैनीताल हाई कोर्ट सख्त नजर आ रहा है. मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चौहान की खंडपीठ ने प्रदेश के वन्यजीव बोर्ड के सदस्य सचिव को 17 मार्च को हाई कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से पेश होने के आदेश दिए हैं. साथ ही केंद्र और राज्य सरकार समेत उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड को अपना जवाब कोर्ट में पेश करने के आदेश दिए हैं.

शिवालिक एलीफेंट रिजर्व मामले में हाई कोर्ट सख्त.

आपको बता दें कि नैनीताल हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को राज्य के करीब 80 पर्यावरण प्रेमियों ने पत्र लिख कर कहा था कि 24 नवंबर 2020 को स्टेट वाइड लाइफ बोर्ड में जौलीग्रांट एयरपोर्ट के विस्तार के लिए शिवालिक एलीफेंट रिजर्व को नोटिफाई करने का निर्णय लिया है. सरकार के इस निर्णय के बाद हाथियों के जीवन पर संकट खड़ा होगा और एलीफेंट कॉरिडोर पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा. वहीं, दूसरी ओर सरकार के इस फैसले से राज्य में विकास परियोजना भी प्रभावित हो रही है, लिहाजा राज्य सरकार के इस फैसले पर रोक लगाई जाए.

ये भी पढ़ें: पहाड़ की जनता को कितना खुश करेगा ये बजट, जानिए एक्सपर्ट की राय

सरकार के इस आदेश के बाद देहरादून निवासी रेनू पॉल ने भी नैनीताल हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि देश में 1993 से प्रोजेक्ट एलीफेंट के तहत 11 एलिफेंट रिजर्व नोटिफाइड किए गए थे, जिसमें शिवालिक एलिफेंट रिजर्व प्रमुख था और लगभग 6 जिलों में फैले इस एलीफेंट रिजर्व को सरकार द्वारा डिनोटिफाइड करने का आदेश जारी किया गया है. जिसकी बैठक मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की अध्यक्षता में 24 नवंबर 2020 को हुई और 24 नवंबर 2020 को ही एलीफेंट रिजर्व को डिनोटिफाइड करने का फैसला भी लिया गया. जिसे उसी दिन सार्वजनिक भी कर दिया गया.

याचिकाकर्ता ने हाथियों पर कई किताबों का हवाला देते हुए मुख्य न्यायधीश की खंडपीठ को बताया कि हाथी लांग रेंज (long-range) में चलने वाला जानवर है. लिहाजा 6 जिलों में फैले एलीफेंट रिजर्व को खत्म करने से हाथियों के अस्तित्व पर संकट गहरा जाएगा. लिहाजा राज्य सरकार के इस आदेश पर रोक लगाई जाए. वही याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे के तीन जजों की खंडपीठ भी हाथियों को संरक्षण के लिए पहले ही अपना एक आदेश सुना चुकी है, लेकिन इसके बावजूद भी उत्तराखंड में एलिफेंट कॉरिडोर को खत्म किया जा रहा है.

पिछली सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट की खंडपीठ ने राज्य सरकार के फैसले पर रोक लगा दी थी और मामले में केंद्र, राज्य सरकार समेत जैव विविधता बोर्ड और वन्यजीव बोर्ड को भी पक्षकार बनाते हुए नोटिस जारी कर 4 सप्ताह के भीतर अपना जवाब कोर्ट में पेश करने के आदेश दिए थे, जिसके बाद आज राज्य सरकार ने कोर्ट में जवाब पेश किया गया और सरकार के फैसले को सही बताया. जिस पर कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए एक बार फिर से केंद्र, राज्य सरकार, जैव विविधता बोर्ड को 10 दिन के भीतर जवाब कोर्ट में पेश करने के आदेश दिए हैं. साथ ही राज्य वन्यजीव बोर्ड के सदस्य सचिव को अगली सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से पेश होने के आदेश दिए हैं.

नैनीताल: राज्य सरकार द्वारा शिवालिक एलीफेंट रिजर्व को डिनोटिफाई करने के मामले पर नैनीताल हाई कोर्ट सख्त नजर आ रहा है. मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चौहान की खंडपीठ ने प्रदेश के वन्यजीव बोर्ड के सदस्य सचिव को 17 मार्च को हाई कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से पेश होने के आदेश दिए हैं. साथ ही केंद्र और राज्य सरकार समेत उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड को अपना जवाब कोर्ट में पेश करने के आदेश दिए हैं.

शिवालिक एलीफेंट रिजर्व मामले में हाई कोर्ट सख्त.

आपको बता दें कि नैनीताल हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को राज्य के करीब 80 पर्यावरण प्रेमियों ने पत्र लिख कर कहा था कि 24 नवंबर 2020 को स्टेट वाइड लाइफ बोर्ड में जौलीग्रांट एयरपोर्ट के विस्तार के लिए शिवालिक एलीफेंट रिजर्व को नोटिफाई करने का निर्णय लिया है. सरकार के इस निर्णय के बाद हाथियों के जीवन पर संकट खड़ा होगा और एलीफेंट कॉरिडोर पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा. वहीं, दूसरी ओर सरकार के इस फैसले से राज्य में विकास परियोजना भी प्रभावित हो रही है, लिहाजा राज्य सरकार के इस फैसले पर रोक लगाई जाए.

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सरकार के इस आदेश के बाद देहरादून निवासी रेनू पॉल ने भी नैनीताल हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि देश में 1993 से प्रोजेक्ट एलीफेंट के तहत 11 एलिफेंट रिजर्व नोटिफाइड किए गए थे, जिसमें शिवालिक एलिफेंट रिजर्व प्रमुख था और लगभग 6 जिलों में फैले इस एलीफेंट रिजर्व को सरकार द्वारा डिनोटिफाइड करने का आदेश जारी किया गया है. जिसकी बैठक मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की अध्यक्षता में 24 नवंबर 2020 को हुई और 24 नवंबर 2020 को ही एलीफेंट रिजर्व को डिनोटिफाइड करने का फैसला भी लिया गया. जिसे उसी दिन सार्वजनिक भी कर दिया गया.

याचिकाकर्ता ने हाथियों पर कई किताबों का हवाला देते हुए मुख्य न्यायधीश की खंडपीठ को बताया कि हाथी लांग रेंज (long-range) में चलने वाला जानवर है. लिहाजा 6 जिलों में फैले एलीफेंट रिजर्व को खत्म करने से हाथियों के अस्तित्व पर संकट गहरा जाएगा. लिहाजा राज्य सरकार के इस आदेश पर रोक लगाई जाए. वही याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे के तीन जजों की खंडपीठ भी हाथियों को संरक्षण के लिए पहले ही अपना एक आदेश सुना चुकी है, लेकिन इसके बावजूद भी उत्तराखंड में एलिफेंट कॉरिडोर को खत्म किया जा रहा है.

पिछली सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट की खंडपीठ ने राज्य सरकार के फैसले पर रोक लगा दी थी और मामले में केंद्र, राज्य सरकार समेत जैव विविधता बोर्ड और वन्यजीव बोर्ड को भी पक्षकार बनाते हुए नोटिस जारी कर 4 सप्ताह के भीतर अपना जवाब कोर्ट में पेश करने के आदेश दिए थे, जिसके बाद आज राज्य सरकार ने कोर्ट में जवाब पेश किया गया और सरकार के फैसले को सही बताया. जिस पर कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए एक बार फिर से केंद्र, राज्य सरकार, जैव विविधता बोर्ड को 10 दिन के भीतर जवाब कोर्ट में पेश करने के आदेश दिए हैं. साथ ही राज्य वन्यजीव बोर्ड के सदस्य सचिव को अगली सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से पेश होने के आदेश दिए हैं.

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