नैनीताल: गंगा नदी में जल का प्रवाह कम करने का मामला नैनीताल हाईकोर्ट की शरण में पहुंच गया है. मामले में सुनवाई करते हुए नैनीताल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चौहान की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को आदेश दिया है कि वह अपना प्रत्यावेदन जल शक्ति मंत्रालय को प्रस्तुत करें और मंत्रालय को निर्देश दिए हैं कि याचिकाकर्ता के प्रत्यावेदन 3 माह के भीतर निस्तारण करें.
बता दें, सामाजिक कार्यकर्ता भरत झुनझुनवाला ने नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि जल शक्ति मंत्रालय ने गंगा में 20% से 30% पानी छोड़ने की अधिसूचना जारी की गई है. इस मात्रा को निर्धारित करने में जल शक्ति मंत्रालय ने सेंट्रल वॉटर कमिशन की रिपोर्ट को आधार बनाया था, लेकिन सेंट्रल वॉटर कमिशन की उस रिपोर्ट तैयार करने वाले 2 सदस्य एस के गुसाईं और शरद जैन पहले ही 50% पानी छोड़ने की दलीले रख चुके हैं. इसलिए यह रिपोर्ट विश्वसनीय नहीं है.
याचिकाकर्ता का कहना है जल शक्ति मंत्रालय ने वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी व जल शक्ति मंत्रालय की तमाम रिपोर्टों को भी दरकिनार किया गया है, क्योंकि सभी विभागों की रिपोर्ट के आधार पर गंगा नदी में 50 फीसदी पानी छोड़ा जाना अनिवार्य है. इसके बावजूद केंद्र सरकार द्वारा गंगा नदी में 20% से 30% पानी छोड़े जाने का फैसला किया है. इस फैसले को लेने से पहले जल शक्ति मंत्रालय ने कोई वैज्ञानिक आधार नहीं लिया गया है. लिहाजा, केंद्र सरकार द्वारा जारी अधिसूचना पर रोक लगाई जाए.
मामले को गंभीरता से लेते हुए नैनीताल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चौहान की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को अपना प्रत्यावेदन केंद्र सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के पास ले जाने को कहा है. इसके साथ ही खंडपीठ ने केंद्र सरकार के जल शक्ति मंत्रालय को निर्देश दिए हैं कि याचिकाकर्ता के प्रत्यावेदन पर 3 माह के भीतर निर्णय लेकर उसे निस्तारित करें.
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याचिकाकर्ता का कहना है कि केंद्र सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के इस आदेश के बाद गंगा नदी समेत अन्य छोटी नदियों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा जाएगा और नदियां सूख जाएंगी. साथ ही नदियों में रहने वाली महाशीर मछली समेत विभिन्न प्रजातियों पर गहरा असर पड़ेगा, जिस तरफ केंद्र सरकार समेत किसी भी विभाग का ध्यान नहीं गया. लिहाजा, केंद्र सरकार के इस नोटिफिकेशन पर रोक लगाई जाए.
मामले में सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को अपनी याचिका जल शक्ति मंत्रालय के पास प्रस्तुत करने को कहा है. वहीं, जल शक्ति मंत्रालय को निर्देश दिए हैं कि याचिकाकर्ता के प्रत्यावेदन पर 3 माह के भीतर फैसला करें.