नैनीतालः सूखाताल झील में हो रहे सौंदर्यीकरण और भारी भरकम निर्माण कार्यों के मामले में नैनीताल हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. मामले में मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने सूखाताल एरिया में सभी निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी. साथ ही खंडपीठ ने स्टेट एनवायरनमेंट इम्पैक्ट अथॉरिटी और स्टेट वेटलैंड मैनेजमेंट अथॉरिटी को पक्षकार बनाकर नोटिस जारी किया है. अब मामले की सुनवाई 20 दिसंबर को होगी.
हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान अधिवक्ता कार्तिकेय हरि गुप्ता ने अवगत कराया कि हाइड्रोलॉजिकल अध्ययन से पता चला है कि सूखाताल नैनी झील को 40 से 50 प्रतिशत रिचार्ज करती है. आईआईटी रुड़की की ओर से दिए सुझाव को दरकिनार कर राज्य सरकार झील की सतह पर कंक्रीट बिछा रही है, जो दोनों झीलों के लिए खतरा है. राज्य सरकार ने सौंदर्यीकरण करने से पहले इसकी पर्यावरणीय सर्वे नहीं किया है. आईआईटी रुड़की की रिपोर्ट पर भी विश्वास नहीं किया जा सकता, क्योंकि उनके पास भी पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करने की विशेषज्ञता नहीं हैं.
आईआईटी रुड़की (IIT Roorkee Report) ने अपनी रिपोर्ट में सूखाताल झील के सौंदर्यीकरण (Sukhatal lake Beautification work) के लिए तीन सुझाव दिए हैं. पहला झील के किनारे बाउंड्रीवाल बनाई जाए. जिससे झील में अतिक्रमण न हो सके, लेकिन कमिश्नर के निरीक्षण के बाद इसे बदलकर जिला विकास प्राधिकरण ने झील की सतह पर कंक्रीट बिछाकर इसे बारहमासी झील के रूप में तब्दील करने का निर्णय लिया है. उनकी ओर से ये भी कहा गया कि अगर इसे बारहमासी झील के रूप में तब्दील किया जाता है तो नैनीझील पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा. साथ में पर्यावरणीय क्षति के अलावा आपदा आने की संभावना भी बनी रहेगी.
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बता दें कि नैनीताल निवासी डॉ. जीपी साह समेत अन्य लोगों ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर सूखाताल में हो रहे भारी भरकम निर्माण से झील के प्राकृतिक जल स्रोत बंद होने सहित कई अन्य बिंदुओं से अवगत कराया था. पत्र में कहा गया है कि सूखाताल नैनी झील का मुख्य रिचार्जिंग केंद्र (Sukhatal Recharge Naini lake Water) है और उसी स्थान पर इस तरह अवैज्ञानिक तरीके से निर्माण किए जा रहे हैं. पत्र में ये भी कहा गया है कि झील में पहले से ही लोगों ने अतिक्रमण कर पक्के मकान बना दिए है. जिन्हें अभी तक नहीं हटाया गया है. पहले से ही झील के जल स्रोत सुख चुके हैं, जिसका असर नैनी झील पर देखने को मिल रहा है.
कई गरीब परिवार जिनके पास पानी के कनेक्शन नहीं हैं, मस्जिद के पास के जल स्रोत से पानी पिया करते हैं. अगर वो भी सूख गया तो ये लोग पानी कहां से पिया करेंगे? इसलिए इस पर रोक लगाई जाए. पत्र में यह भी कहा गया कि उन्होंने इससे पहले जिलाधिकारी और कमिश्नर को ज्ञापन दिया था. जिस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. इससे पहले कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश ने इस पत्र का स्वतः ही संज्ञान लेकर इसे जनहित याचिका के रूप में सुनवाई के लिए पंजीकृत कराया था.