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सड़क निर्माण में हो रही लापरवाही पर हाईकोर्ट सख्त, नेशनल हाईवे को लेकर सरकार से मांगा जवाब

हल्द्वानी निवासी अमित खोलिया ने नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी. जिसमें उन्होंने देहरादून-सहारनपुर (यूपी) नेशनल हाईवे के चौड़ीकरण में अनियमित्ताओं का बात कही थी. जिस पर कोर्ट ने राज्य सरकार के जवाब मांगा है.

Nainital High Court news
नैनीताल हाई कोर्ट
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Published : Jan 15, 2021, 9:44 PM IST

नैनीताल: देहरादून-सहारनपुर (यूपी) नेशनल हाईवे पर 19 किलोमीटर के एरिया में पड़ रहे ईको सेंसटिव जोन के मामले पर नैनीताल हाई कोर्ट ने सख्त रूख अपनाया हुआ है. हाई कोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार और मुख्य वन संरक्षक को जवाब पेश करने के आदेश दिए हैं. मामले में सुनवाई नैनीताल हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चौहान की खंडपीठ में हुई.

कोर्ट ने राज्य सरकार के पूछा कि जो तीन किमी लंबी सड़क राजाजी नेशनल पार्क समेत ईको सेंसटिव जोन के बीच से बन रही है. क्या सरकार द्वारा उसकी अनुमति दी गई है या नहीं? कोर्ट में सुनवाई के दौरान उत्तराखंड के मुख्य वन संरक्षक से पूछा है कि ईको सेंसटिव जोन की 9 हेक्टेयर भूमि जो सड़क निर्माण के दौरान कट रही है उसका विस्तार किसी अन्य जगह किया गया है या नहीं? कोर्ट ने मुख्य संरक्षक से पूछा है की फॉरेस्ट एक्ट के तहत जो पेड़ काटे जा रहे हैं, उनके बदले कितने पेड़ लगाए जाते हैं?

पढ़ें- पुलिसकर्मियों की पदोन्नति का मामला पहुंचा हाईकोर्ट, राज्य सरकार से मांगा जवाब

बता दें कि हल्द्वानी निवासी अमित खोलिया ने नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी. जिसमें उन्होंने कहा था कि केंद्र सरकार ने देहरादून से सहरानपुर के गणेशपुर के बीच 19 किलोमीटर लंबे नेशनल हाईवे का निर्माण किया जा रहा है. जिसमें तीन किलोमीटर रोड देहरादून व राजाजी नेशनल पार्क के ईको सेंसटिव जोन से होकर गुजर रही है. रोड का चौड़ीकरण होने से ईको सेंसेटिव जोन का 9 हेक्टेयर क्षेत्र कम हो रहा है और सरकार द्वारा इको सेंसटिव जोन का कहीं दूसरे स्थान पर विस्तार भी नहीं किया जा रहा है. जिसका असर वन्यजीवों पर पड़ेगा.

याचिकाकर्ता का कहना है कि रोड के चौड़ीकरण होने से करीब 2700 पेड़ काटे जा रहे हैं. जिनकी उम्र करीब 100 से 150 साल है. इन वृक्षों को राष्ट्रीय धरोहर भी घोषित किया गया है. ऐसी परिस्थितियों में केंद्र सरकार को राज्य सरकार से अनुमति लेनी होती है और राज्य सरकार के मुख्य वन्य प्रतिपालक क्षेत्र का निरीक्षण कर अपनी सहमति देते हैं. लेकिन मुख्य वन प्रतिपालक ने क्षेत्र का निरीक्षण करें बिना ही सड़क निर्माण की अनुमति दे दी. लिहाजा, इस सड़क निर्माण पर रोक लगाई जाए. शुक्रवार को मामले में सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने राज्य सरकार और उत्तराखंड के मुख्य वन संरक्षक को 2 सप्ताह में शपथ-पत्र के माध्यम से अपना जवाब पेश करने को कहा है. मामले की अगली सुनवाई 18 मार्च को होगी.

नैनीताल: देहरादून-सहारनपुर (यूपी) नेशनल हाईवे पर 19 किलोमीटर के एरिया में पड़ रहे ईको सेंसटिव जोन के मामले पर नैनीताल हाई कोर्ट ने सख्त रूख अपनाया हुआ है. हाई कोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार और मुख्य वन संरक्षक को जवाब पेश करने के आदेश दिए हैं. मामले में सुनवाई नैनीताल हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चौहान की खंडपीठ में हुई.

कोर्ट ने राज्य सरकार के पूछा कि जो तीन किमी लंबी सड़क राजाजी नेशनल पार्क समेत ईको सेंसटिव जोन के बीच से बन रही है. क्या सरकार द्वारा उसकी अनुमति दी गई है या नहीं? कोर्ट में सुनवाई के दौरान उत्तराखंड के मुख्य वन संरक्षक से पूछा है कि ईको सेंसटिव जोन की 9 हेक्टेयर भूमि जो सड़क निर्माण के दौरान कट रही है उसका विस्तार किसी अन्य जगह किया गया है या नहीं? कोर्ट ने मुख्य संरक्षक से पूछा है की फॉरेस्ट एक्ट के तहत जो पेड़ काटे जा रहे हैं, उनके बदले कितने पेड़ लगाए जाते हैं?

पढ़ें- पुलिसकर्मियों की पदोन्नति का मामला पहुंचा हाईकोर्ट, राज्य सरकार से मांगा जवाब

बता दें कि हल्द्वानी निवासी अमित खोलिया ने नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी. जिसमें उन्होंने कहा था कि केंद्र सरकार ने देहरादून से सहरानपुर के गणेशपुर के बीच 19 किलोमीटर लंबे नेशनल हाईवे का निर्माण किया जा रहा है. जिसमें तीन किलोमीटर रोड देहरादून व राजाजी नेशनल पार्क के ईको सेंसटिव जोन से होकर गुजर रही है. रोड का चौड़ीकरण होने से ईको सेंसेटिव जोन का 9 हेक्टेयर क्षेत्र कम हो रहा है और सरकार द्वारा इको सेंसटिव जोन का कहीं दूसरे स्थान पर विस्तार भी नहीं किया जा रहा है. जिसका असर वन्यजीवों पर पड़ेगा.

याचिकाकर्ता का कहना है कि रोड के चौड़ीकरण होने से करीब 2700 पेड़ काटे जा रहे हैं. जिनकी उम्र करीब 100 से 150 साल है. इन वृक्षों को राष्ट्रीय धरोहर भी घोषित किया गया है. ऐसी परिस्थितियों में केंद्र सरकार को राज्य सरकार से अनुमति लेनी होती है और राज्य सरकार के मुख्य वन्य प्रतिपालक क्षेत्र का निरीक्षण कर अपनी सहमति देते हैं. लेकिन मुख्य वन प्रतिपालक ने क्षेत्र का निरीक्षण करें बिना ही सड़क निर्माण की अनुमति दे दी. लिहाजा, इस सड़क निर्माण पर रोक लगाई जाए. शुक्रवार को मामले में सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने राज्य सरकार और उत्तराखंड के मुख्य वन संरक्षक को 2 सप्ताह में शपथ-पत्र के माध्यम से अपना जवाब पेश करने को कहा है. मामले की अगली सुनवाई 18 मार्च को होगी.

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