नैनीताल: प्रदेश के फौजदारी के मामले में जो गवाह कोर्ट में पेश किए जाते हैं, वो किसी भी मामले में कोर्ट की आंख और कान होते हैं. लंबे समय से अपराधिक मामलों के ट्रायल होने के दौरान आने वाली दिक्कतों को दूर करने के लिए गवाह सुरक्षा समिति के गठन की मांग की गई थी. जिस पर अब हाई कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है.
दरअसल, हरिद्वार निवासी रूहानी ने नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि 2018 में केंद्र सरकार द्वारा महेंद्र चावला के मामले में फैसला सुनाते हुए देश भर की सभी राज्य सरकार को आदेश दिए थे कि सभी राज्य सरकार अपने प्रदेश के हर जिले में गवाह सुरक्षा समिति का गठन करें. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के द्वारा दिए गए फैसले के बाद भी उत्तराखंड राज्य सरकार ने आज तक कोर्ट के इस आदेश पर अमल नहीं किया. याचिकाकर्ता रूहानी का कहना है कि उनके पति द्वारा उन पर जानलेवा हमला कराया गया था और वह उस हमले की खुद गवाह हैं. उन पर गवाही न देने का दबाव बनाया जा रहा था, यहां तक की जान से मारने की धमकी भी दी गई. इसे लेकर उन्होंने कई बार जिले के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों समेत प्रदेश के बड़े अधिकारियों के पास अपनी शिकायत दर्ज कराई, लेकिन उनकी किसी ने भी मदद नहीं की.
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जिसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की और कहा कि महिलाएं हाईकोर्ट से पुलिस सुरक्षा लेने में असक्षम रहती है या उनके लिए हाईकोर्ट आकर सुरक्षा मांगना बहुत महंगा पड़ता है. इसीलिए उत्तराखंड के हर जिले में जिला जज की अध्यक्षता में गवाह सुरक्षा समिति का गठन किया जाए. मामले की सुनवाई करते हुए नैनीताल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायाधीश आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने राज्य सरकार, डीजीपी समेत गृह सचिव को नोटिस जारी कर 18 नवंबर से पहले जवाब पेश करने के आदेश दिए हैं.