नैनीताल: चमोली में ग्लेशियर फटने के दौरान घायल हुए मजदूरों और मृतकों के परिजनों को मुआवजा वितरित करने का मामला नैनीताल हाईकोर्ट पहुंच गया है. हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चौहान की खंडपीठ ने केंद्र सरकार समेत राज्य सरकार से जवाब मांगा है. चमोली के रैणी गांव में बीती 7 फरवरी को ग्लेशियर फटने के दौरान आई आपदा के दौरान घायल और मृतकों को अबतक मुआवजा न देने के मामले में नैनीताल हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अख्तियार किया है.
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मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चौहान की खंडपीठ ने सख्त रुख अपनाते हुए केंद्र सरकार समेत राज्य सरकार को अपना 2 सप्ताह के भीतर जवाब कोर्ट में पेश करने के आदेश दिए हैं. साथ ही कोर्ट ने केंद्रीय सचिव एनवायरमेंट फॉरेस्ट एंड क्लाइमेट, नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन (NTPC), मौसम विभाग, ऋषि गंगा प्रोजेक्ट का काम कर रहे कुंदन ग्रुप, डीएम चमोली समेत नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (NDMA) को भी नोटिस जारी कर याचिका में बनाया पक्षकार बनाया है.
अल्मोड़ा निवासी राज्य आंदोलनकारी पीसी तिवारी के द्वारा नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि उत्तराखंड के चमोली के रैणी गांव में बीते 7 फरवरी को ग्लेशियर फटने के बाद आपदा जैसी स्थिति हो गई थी. हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता ने कहा कि राज्य सरकार के द्वारा अब तक न तो किसी भी घायल और मृतक परिवारों को मुआवजा दिया गया है और न ही मुआवजा वितरित करने के लिए मानक बनाए गए हैं.
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याचिकाकर्ता का कहना है कि राज्य सरकार के द्वारा क्षेत्र में काम कर रहे नेपाली मूल के श्रमिकों समेत गांव के श्रमिकों को मुआवजा देने के लिए कोई नियम नहीं बनाए गए हैं और राज्य सरकार के द्वारा अब तक मृत्यु प्रमाण पत्र भी जारी नहीं किए गए हैं और न ही मौत के आंकड़ों की पुष्टि की है. याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार की आपदा से निपटने के लिए सभी तैयारियां अधूरी है और सरकार के पास अब तक कोई ऐसा सिस्टम नहीं है, जो आपदा के आने से पहले उसकी सूचना के संकेत दे.
राज्य सरकार के द्वारा अब तक उच्च हिमालयी क्षेत्रों की मॉनिटरिंग के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई है और 2014 में रवि चोपड़ा की कमेटी द्वारा अपनी रिपोर्ट में बताया गया था की उत्तराखंड में आपदा से निपटने के मामले में कई अनियमितताएं है और राज्य सरकार के द्वारा 2014 से इन अनियमितताओं की तरफ कभी ध्यान नहीं दिया गया जिस वजह से चमोली के रेणी गांव में इतनी बड़ी आपदा आई.
वहीं, उत्तराखंड में 5600 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में मौसम का पूर्वानुमान लगाने वाले यंत्र नहीं लगे हैं और उत्तराखंड के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में रिमोट सेंसिंग इंस्टिट्यूट भी अब तक कार्य नहीं कर रहे हैं. हाइड्रो प्रोजेक्ट डैम में कर्मचारियों के सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं है. कर्मचारी को केवल हेलमेट और बूट्स दिए जाते हैं और कर्मचारियों को आपदा से लड़ने के लिए कोई ट्रेनिंग नहीं दी गई है और न ही कर्मचारियों के लिए कोई उपकरण मौजूद है ताकि आपदा के समय में कर्मचारी अपनी जान बचा सके.
याचिकाकर्ता ने कोर्ट से मांग की है कि एनटीपीसी और कुंदन ग्रुप के ऋषि गंगा प्रोजेक्ट का नक्शा कंपनी के द्वारा आपदा के बाद उपलब्ध नहीं कराया गया जिस वजह से राहत व बचाव कार्य में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा, लिहाजा इन सभी के खिलाफ अपराधिक कार्यवाही भी होनी चाहिए.