हल्द्वानी: उत्तराखंड अपनी संस्कृति के साथ-साथ जड़ी बूटी और औषधियों के लिए भी जाना जाता है. पहाड़ में अधिक ठंड होने के चलते प्रकृति ने यहां पर कई तरह के अनाज भी दिए हैं. जिससे की पहाड़ के लोग इनका सेवन कर अपने आपको फिट रखने के साथ ठंड से भी बच सके. ठंड शुरू होते ही पहाड़ के लोग अपने शरीर को गर्म रखने के लिए कई परंपरागत दालों और अनाजों का सेवन करते हैं. जिससे की ठंड से राहत मिलने के साथ-साथ उनके शरीर को सही मात्रा में प्रोटीन भी मिल सके.
बताया जाता है कि गहथ के साथ-साथ दालों का मिश्रण कर इसका रस पीने से सर्दी में यह काफी फायदेमंद होती है. इसके अलावा पथरी के इलाज में भी यह दाल रामबाण इलाज है. इस दाल में कार्बोहाइड्रेट, वसा, रेशा और खनिज के साथ-साथ कैल्शियम भी भरपूर होता है. वहीं, तुअर दाल में कार्बोहाइड्रेट और वसा से भरपूर होती हैं और जाड़ों में इसका सूप पीने से शरीर में गर्मी रहती है.
भट्ट की दाल पहाड़ में अलग ही पहचान है. पहाड़ में दो तरह की भट्ट की दाल उपलब्ध है. काला भट्ट और सफेद भट्ट लेकिन पहाड़ की भट्ट दाल की डुबके और चुड़कानी की बात ही अलग है. पहाड़ी उड़द (मास की दाल) में कई तरह की प्रोटीन पाये जाते हैं.
स्थानीय भाषा में इसे मास की दाल कहते हैं. इसमें कई अन्य दाल पीसकर, इसके रस का सेवन करने से शरीर में ताजगी आती है. इसके अलावा पहाड़ की कई दालें असाध्य रोगों के इलाज में भी कारगर साबित होती हैं. इसके अलावा पहाड़ की मंडुवे और झंगोरा का भी अपना अलग महत्व है, जो जाड़ों में विशेष रूप से खाया जाता है.
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पहाड़ के पारंपरिक खानपान के जानकार रवि प्रभात जोशी के मुताबिक, पहाड़ की परंपरिक दालों को कई तरीके से बनाया जाता है. इसमें बनाने के लिए विशेष तौर से पारंपरिक मसाले का भी ख्याल रखा जाता है. जिससे की दाल पौष्टिक और गुणकारी बन सके.
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वहीं, आयुर्वेद चिकित्सक मीरा जोशी के मुताबिक, गहथ और भट्ट की दालों का सेवन करने से कई तरह की बीमारियों दूर होती हैं. गहथ की दाल जहां पथरी के लिए रामबाण है तो वहीं, भट्ट की दाल महिलाओं ने अमीनिया की बीमारी, खून की कमी को दूर करती है, काले भट्ट में आयरन की मात्रा ज्यादा होती है. ऐसे में भट्ट की दाल के सेवन से शरीर में आयरन की कमी दूर होती है.