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सरकार की बेरुखी से बंद हुई फैक्ट्रियां, अधूरा रह गया एनडी तिवारी का सपना

नैनीताल के भीमताल में 80 के दशक में स्थापित सभी 18 फैक्ट्रियां सरकार की बेरुखी से बंद हो गई हैं. ऐसे में बेरोजगार युवाओं को रोजगार की तलाश में अन्य शहरों और राज्यों का रुख करना पड़ रहा है.

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फैक्ट्रियां बंद
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Published : Jan 17, 2020, 1:25 PM IST

नैनीतालः उत्तराखंड के पहाड़ी राज्यों में पलायन को रोकने और युवाओं को उनके घर में रोजगार देने के उद्देश्य से सरकार ने भीमताल में कई फैक्ट्रियां स्थापित की थी, लेकिन सरकार की उदासीनता के चलते करीब डेढ़ दर्जन फैक्ट्रियां बंद हो चुकी हैं. जिससे स्थानीय लोगों में सरकार के खिलाफ काफी रोष है.

गौर हो कि 80 के दशक में पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने भीमताल में करीब 18 अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय फैक्ट्रियां स्थापित करवाई थीं. जिससे पहाड़ी राज्यों का विकास हो सके और पहाड़ के युवाओं को घर बैठे ही रोजगार मिल सके. इतना ही नहीं उन्होंने भीमताल में मिनी सिडकुल स्थापित करने का संकल्प भी लिया था.

भीमताल में कई फैक्ट्रियां हुईं बंद.

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जिसे देखते हुए नारायण दत्त तिवारी ने भीमताल में उषा कंपनी, कार्बन, एक्वागार्ड, शैंपू, मार्चिस, गिलास, परफ्यूम समेत विभिन्न फैक्ट्रियों की स्थापना की, लेकिन सरकारों की उदासीनता के चलते ये सभी फैक्ट्रियां धीरे-धीरे बंद हो गई हैं. जिससे उनके पहाड़ों में फैक्ट्री लगाने का ड्रीम प्रोजेक्ट का सपना पूरी नहीं हो पाया है.

स्थानीय लोगों का कहना है कि इन फैक्ट्रियों से भीमताल, नैनीताल, ओखल कांडा, पिथौरागढ़, चंपावत समेत आसपास के हजारों बेरोजगार युवाओं को रोजगार मिला करता था, लेकिन आज ये सभी फैक्ट्रियां बंद हो चुकी हैं. जिसका लाभ स्थानीय लोगों को नहीं मिल पा रहा है. ऐसे में युवाओं को रोजगार के लिए दूसरे राज्यों की ओर रुख करना पड़ रहा है.

ये भी पढ़ेंः हीलाहवाली: अधर में लटका राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण कार्य, हादसों को दे रहा दावत

वहीं, स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार गिरीश रंजन तिवारी ने बताया कि उस समय उद्योगपतियों ने सरकार के द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी के लालच में भीमताल में फैक्ट्रियों को स्थापित किया. सब्सिडी मिलने के बाद अधिकांश लोग फैक्ट्रियां बंद कर गए. साथ ही उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में इन उद्योंगों को कच्चा माल नहीं मिल सका और जो सामान इन फैक्ट्री में बना वो बाजार के अभाव में बर्बाद हो गया. यही कारण है कि उत्तराखंड के पहाड़ी राज्यों में उद्योग विकसीत करने का सपना टूट गया. जिस ओर अब सरकार ध्यान नहीं दे रही है.

नैनीतालः उत्तराखंड के पहाड़ी राज्यों में पलायन को रोकने और युवाओं को उनके घर में रोजगार देने के उद्देश्य से सरकार ने भीमताल में कई फैक्ट्रियां स्थापित की थी, लेकिन सरकार की उदासीनता के चलते करीब डेढ़ दर्जन फैक्ट्रियां बंद हो चुकी हैं. जिससे स्थानीय लोगों में सरकार के खिलाफ काफी रोष है.

गौर हो कि 80 के दशक में पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने भीमताल में करीब 18 अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय फैक्ट्रियां स्थापित करवाई थीं. जिससे पहाड़ी राज्यों का विकास हो सके और पहाड़ के युवाओं को घर बैठे ही रोजगार मिल सके. इतना ही नहीं उन्होंने भीमताल में मिनी सिडकुल स्थापित करने का संकल्प भी लिया था.

भीमताल में कई फैक्ट्रियां हुईं बंद.

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जिसे देखते हुए नारायण दत्त तिवारी ने भीमताल में उषा कंपनी, कार्बन, एक्वागार्ड, शैंपू, मार्चिस, गिलास, परफ्यूम समेत विभिन्न फैक्ट्रियों की स्थापना की, लेकिन सरकारों की उदासीनता के चलते ये सभी फैक्ट्रियां धीरे-धीरे बंद हो गई हैं. जिससे उनके पहाड़ों में फैक्ट्री लगाने का ड्रीम प्रोजेक्ट का सपना पूरी नहीं हो पाया है.

स्थानीय लोगों का कहना है कि इन फैक्ट्रियों से भीमताल, नैनीताल, ओखल कांडा, पिथौरागढ़, चंपावत समेत आसपास के हजारों बेरोजगार युवाओं को रोजगार मिला करता था, लेकिन आज ये सभी फैक्ट्रियां बंद हो चुकी हैं. जिसका लाभ स्थानीय लोगों को नहीं मिल पा रहा है. ऐसे में युवाओं को रोजगार के लिए दूसरे राज्यों की ओर रुख करना पड़ रहा है.

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वहीं, स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार गिरीश रंजन तिवारी ने बताया कि उस समय उद्योगपतियों ने सरकार के द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी के लालच में भीमताल में फैक्ट्रियों को स्थापित किया. सब्सिडी मिलने के बाद अधिकांश लोग फैक्ट्रियां बंद कर गए. साथ ही उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में इन उद्योंगों को कच्चा माल नहीं मिल सका और जो सामान इन फैक्ट्री में बना वो बाजार के अभाव में बर्बाद हो गया. यही कारण है कि उत्तराखंड के पहाड़ी राज्यों में उद्योग विकसीत करने का सपना टूट गया. जिस ओर अब सरकार ध्यान नहीं दे रही है.

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नैनीताल के भीमताल में सभी 18 फैक्ट्रियां हुई सरकार की बेरुखी की वजह से बंद।

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उत्तराखंड के पहाड़ी राज्यों में पलायन को रोकने और पहाड़ के युवाओं को उनके घर में रोजगार देने के उद्देश्य से 80 के दशक में स्थापित की गई करीब डेढ़ दर्जन फैक्ट्रियां सरकार की उदासीनता के चलते आज बंद हो चुकी हैं जिससे स्थानीय लोगों में सरकार के खिलाफ रोष है।


Body:80 के दशक में नैनीताल के भीमताल में पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी उत्तराखंड के पहाड़ी राज्यों के विकास और उत्तराखंड के युवाओं को रोजगार देने के मकसद से करीब 18 अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय फैक्ट्रियां स्थापित की गई जो आज सरकार की बेरुखी के चलते बंद हो चुकी हैं, पहाड़ों में फैक्ट्री लगाने का ये सपना पूर्व मुख्यमंत्री पंडित नारायण दत्त तिवारी का ड्रीम प्रोजेक्ट था, जो आज पूरी तरह से टूट चुका है,,,
स्थानीय निवासी बताते हैं कि इन फैक्ट्रियों के द्वारा भीमताल, नैनीताल,ओखल कांडा, पिथौरागढ़,चंपावत समेत आसपास के हजारो बेरोजगार युवाओं को रोजगार मिला करता था लेकिन आज यह फैक्ट्रियां बंद हो चुकी है।


Conclusion:1980 में नैनीताल के भीमताल में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री और विकास पुरुष के नाम से जाने जाने वाले पंडित नारायण दत्त तिवारी के द्वारा उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र से पलायन को रोकने के लिए करीब 18 फैक्ट्रियों की स्थापना की गई ताकि युवाओं को घर बैठे बैठे रोजगार मिल सके और पहाड़ों का विकास हो इसको देखते हुए पंडित नारायण दत्त तिवारी के द्वारा भीमताल को मिनी सिडकुल स्थापित करने का संकल्प लिया गया और इसी को देखते हुए नारायण दत्त तिवारी द्वारा भीमताल में उषा कंपनी, कार्बन, एक्वागार्ड समेत शैंपू, मर्चिस, गिलास परफ्यूम समेत विभिन्न फैक्ट्रियों की स्थापना की गई लेकिन सरकारों की उदासीनता के चलते यह सभी फैक्ट्रियां धीरे-धीरे बंद हो गई है, जिससे पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गवासी पंडित नारायण दत्त तिवारी का सपना टूट कर चकनाचूर हो गया,,,
फैक्ट्रियों के बंद होने के पीछे वरिष्ठ पत्रकार गिरीश रंजन तिवारी बताते हैं कि उस समय उद्योगपतियों द्वारा सरकार के द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी के लालच में भीमताल में फैक्ट्रियों को स्थापित किया गया और जब सब्सिडी मिल गई उसमें से अधिकांश लोग फैक्ट्रियां बंद कर गए, वहीं उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में इन उधोगो को कच्चा माल नही मिल सका, और जो सामान इन फैक्टरी में बना वह बाजार के अभाव में बर्बाद हो गया यही कारण था कि उत्तराखंड के पहाड़ी राज्यों में उद्योग विकशित करने का सपना टूट गया।

बाईट- पान देव पांडेय, स्थानीय निवासी।
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