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ताकुला में राष्ट्रपिता ने रखी थी गांधी भवन की नींव, शाह परिवार ने संजों कर रखी है विरासत

गांधी जी ताकुला दौरे के दौरान उन्होंने जिस बर्तन में खाना खाया था, वो आज भी नैनीताल के शाह परिवार के पास सुरक्षित है.

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शाह परिवार ने आज भी संजो कर रखी है विरासत
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Published : Aug 15, 2021, 3:43 PM IST

Updated : Aug 15, 2021, 10:58 PM IST

नैनीताल: आजादी की लड़ाई से कटे रहे कुमाऊं के पर्वतीय क्षेत्र के लोगों पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा था. 1929 और 1931 में महात्मा गांधी कुमाऊं की यात्रा पर पहुंचे थे. गांधी जी ने नैनीताल से लेकर बागेश्वर तक यात्रा कर पहाड़ के लोगों को आजादी की लड़ाई के लिये प्रेरित किया था. गांधी जी को नैनीताल के ताकुला से बेहद लगाव था. जिस वजह से गांधी जी ने ताकुला में खुद गांधीग्राम की नींव रखी और उसका शिलान्यास भी किया था.

आजादी की लड़ाई के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को जब भी शारीरिक और मानसिक अस्वस्थता ने घेरा तो उन्होंने कुमाऊं की शांत वादियों की ओर रुख किया. 11 जून 1929 को गांधी जी अहमदाबाद से हल्द्वानी के लिए रवाना हुए. 14 जून को हल्द्वानी पहुंचने के बाद उसी दिन गांधी जी काठगोदाम-नैनीताल मार्ग पर स्थित ताकुला गांव पहुंचे. महात्मा गांधी को ताकुला गांव बेहद पसंद आया. उन्होंने उसी वक्त वहां एक गांधी आश्रम की नींव रखी.

ताकुला में राष्ट्रपिता ने रखी थी गांधी भवन की नींव

पढ़ें- इतिहास के झरोखे से जश्‍न-ए-आजादी, लाहौरी एक्सप्रेस ने देखा था बंटवारे का मंजर

जब गांधी जी ताकुला दौरे के दौरान उन्होंने जिस बर्तन में खाना खाया था, वो आज भी नैनीताल के शाह परिवार के पास सुरक्षित. जिस चांदी की कन्नी से गांधीग्राम की नींव खोदी गई थी, उसे भी विरासत के तौर पर रखा गया है. इस दौरान गांधी जी ने यहां के लोगों को आजादी की लड़ाई के लिये प्रेरित किया. यह सिलसिला भवाली, रानीखेत, अल्मोड़ा और बागेश्वर तक जारी रहा.

पढ़ें- स्वतंत्रता दिवस पर CM धामी ने की कई घोषणाएं, सरकारी स्कूलों में बच्चों को मिलेगा मुफ्त टैबलेट

दूसरी बार गांधी जी 1931 में फिर से कुमाऊं दौरे पर पहुंचे. तब ताकुला स्थित गांधी आश्रम में वे कुछ दिनों तक रहे. गांधी जी की कुमाऊं यात्रा ने यहां के लोगों को आजादी की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाने के लिये नई चेतना दी. गांधी की कुमाऊं यात्रा के बाद यहां के लोगों ने आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर भाग लिया.

पढ़ें- राज्यपाल ने राजभवन में किया ध्वजारोहण, प्रदेशवासियों को दी शुभकामनाएं

ताकुला वो आश्रम है जहां 14 जून 1929 को महात्मा गांधी ने महिलाओं को संबोधित किया था, जिससे महिलाएं खासी प्रभावित हुई थी. तब महिलाओं ने आंदोलन के लिए अपने आभूषणों को स्वतंत्रता संग्राम के लिए दान दिया. महिलाओं के इस कदम से आम जनता भी प्रभावित हुई. परिणाम स्वरुप कुमाऊं के लोगों ने नमक सत्याग्रह आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई.

नैनीताल: आजादी की लड़ाई से कटे रहे कुमाऊं के पर्वतीय क्षेत्र के लोगों पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा था. 1929 और 1931 में महात्मा गांधी कुमाऊं की यात्रा पर पहुंचे थे. गांधी जी ने नैनीताल से लेकर बागेश्वर तक यात्रा कर पहाड़ के लोगों को आजादी की लड़ाई के लिये प्रेरित किया था. गांधी जी को नैनीताल के ताकुला से बेहद लगाव था. जिस वजह से गांधी जी ने ताकुला में खुद गांधीग्राम की नींव रखी और उसका शिलान्यास भी किया था.

आजादी की लड़ाई के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को जब भी शारीरिक और मानसिक अस्वस्थता ने घेरा तो उन्होंने कुमाऊं की शांत वादियों की ओर रुख किया. 11 जून 1929 को गांधी जी अहमदाबाद से हल्द्वानी के लिए रवाना हुए. 14 जून को हल्द्वानी पहुंचने के बाद उसी दिन गांधी जी काठगोदाम-नैनीताल मार्ग पर स्थित ताकुला गांव पहुंचे. महात्मा गांधी को ताकुला गांव बेहद पसंद आया. उन्होंने उसी वक्त वहां एक गांधी आश्रम की नींव रखी.

ताकुला में राष्ट्रपिता ने रखी थी गांधी भवन की नींव

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जब गांधी जी ताकुला दौरे के दौरान उन्होंने जिस बर्तन में खाना खाया था, वो आज भी नैनीताल के शाह परिवार के पास सुरक्षित. जिस चांदी की कन्नी से गांधीग्राम की नींव खोदी गई थी, उसे भी विरासत के तौर पर रखा गया है. इस दौरान गांधी जी ने यहां के लोगों को आजादी की लड़ाई के लिये प्रेरित किया. यह सिलसिला भवाली, रानीखेत, अल्मोड़ा और बागेश्वर तक जारी रहा.

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दूसरी बार गांधी जी 1931 में फिर से कुमाऊं दौरे पर पहुंचे. तब ताकुला स्थित गांधी आश्रम में वे कुछ दिनों तक रहे. गांधी जी की कुमाऊं यात्रा ने यहां के लोगों को आजादी की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाने के लिये नई चेतना दी. गांधी की कुमाऊं यात्रा के बाद यहां के लोगों ने आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर भाग लिया.

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ताकुला वो आश्रम है जहां 14 जून 1929 को महात्मा गांधी ने महिलाओं को संबोधित किया था, जिससे महिलाएं खासी प्रभावित हुई थी. तब महिलाओं ने आंदोलन के लिए अपने आभूषणों को स्वतंत्रता संग्राम के लिए दान दिया. महिलाओं के इस कदम से आम जनता भी प्रभावित हुई. परिणाम स्वरुप कुमाऊं के लोगों ने नमक सत्याग्रह आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई.

Last Updated : Aug 15, 2021, 10:58 PM IST
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