हल्द्वानी: उत्तराखंड में जानवरों पर लंपी वायरस लगातार कहर बरपा रहा है. प्रदेश में इस साल अब तक 780 पशुओं की मौत हुई है. मरने वाले जानवरों में सबसे ज्यादा गोवंशी शामिल हैं. मामलों की भयावह स्थिति को देखते हुए विभाग ने वैक्सीनेशन का कार्य तेज कर दिया है.
पशुपालन मंत्री सौरभ बहुगुणा ने कहा कि पिछले वर्ष लंपी बीमारी ने कहर बरपाया था, तब इस वायरस को मैदानी जिलों में पशुओं में देखा गया था. इस बार पहाड़ी क्षेत्रों में इस बीमारी को पशुओं में अधिक देखा जा रहा है. इस बीमारी को रोकने के लिए पशुपालन विभाग को निर्देशित किया गया है. साथ ही कर्मियों द्वारा घर-घर जाकर जानवरों में वैक्सीनेशन करने का काम किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि लंपी वायरस को रोकने के लिए पिछले साल से अभी तक करीब 18 लाख जानवरों का वैक्सीनेशन किया जा चुका है.
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साथ ही विभागीय जानकारी के अनुसार इस वर्ष अभी तक प्रदेश में करीब 780 पशुओं की इस वायरस से मौत हुई है. विभाग का प्रयास है कि इस वाइरस को पशुओं में फैलने से रोका जाए. इसके अलावा इस बीमारी को रोकने के लिए पशुपालकों में जन जागरूकता अभियान भी चलाया जा रहा है, जिससे इस बीमारी को रोका जा सके. साथ ही पशुपालन विभाग को भी निर्देशित किया गया है कि वैक्सीनेशन में तेजी लाई जाए, जिससे अन्य पशुओं में वायरस फैलने से रोका जाए. उन्होंने कहा कि स्किन डिजीज कुछ पहाड़ी जिलों में चुनौती बनी हुई है. विभाग इस पर लगातार नजर बनाए है. ब्लॉक स्तर पर डॉक्टरों की टीम भेजी गई हैं. संक्रमित क्षेत्रों पर ज्यादा फोकस किया जा रहा है. अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि पूरे क्षेत्र में वैक्सीनेशन करें व इसमें तेजी लाए.
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लंपी वायरस के लक्षण: लंपी वायरस पशुओं में तेजी से फैलने वाली बीमारी है. इसे पशुओं का त्वचा रोग वायरस भी कहा जाता है. यह संक्रामक बीमारी एक पशु से दूसरे पशु में तेजी से फैलती है. इसमें संक्रमित पशु के लक्षण की बात करें तो त्वचा पर बड़ी-बड़ी गांठ हो जाना, पशु को बुखार आना, वजन में कमी, आंखों से पानी टपकना, शरीर पर दाने, दूध कम देना, भूख ना लगना मुख्य लक्षण हैं. समय पर अगर पशु को इलाज नहीं मिला तो पशु की मौत भी हो सकती है.