हल्द्वानी: गौरा महेश की पूजा का लोक पर्व सातू-आठू आज और कल मनाया जाएगा. भाद्रपद यानी भादो मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी और अष्टमी को मनाया जाने वाला सातू आठू 18 और 19 अगस्त को मनाया जाएगा. कहा जाता है कि मां गौरी ससुराल से रूठ कर जब अपने मायके को जाती हैं तो उन्हें लेने के लिए अष्टमी को भगवान महेश यानी शिव लेने जाते हैं.
सातू आठू पर सप्तमी के दिन मां गौरी और अष्टमी को भगवान शिव की मूर्ति बनाई जाती है, जहां उनकी विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है. इस दिन व्रत करने से संतान प्राप्ति, परिवार की सुख शांति के साथ-साथ अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है. सप्तमी और अष्टमी को महिलाएं 2 दिन तक उपवास रखती हैं. इस दिन गौरा महेश को बिरुड़ यानी दुर्बा चढ़ाने का विशेष महत्व है.
ज्योतिषाचार्य डॉ नवीन चंद्र जोशी के के मुताबिक सातू आठू की शुरुआत 2 दिन पहले हो जाती है. भादो मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को बिरुड़ पंचमी कहा जाता है. इस दिन तांबे के बर्तन में पांच प्रकार के अनाज और दुर्बा आदि से माता गौरी और महेश का प्रतिमा बनाकर पूजा अर्चना की जाती है. साथ साथ लोकगीत गाने की परंपरा भी है. सप्तमी अष्टमी को व्रत धारण करने का महत्व है. सातू के दिन महिलाएं बाह में डोर बांध व्रत को धारण करती है जबकि-आठू के दिन गले में दुबड़ा (लाल धागा) धारण करती है. मान्यता है कि जो भी महिलाएं या कुंवारी कन्या है इस व्रत को विधि विधान से करती हैं उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. सातू आठू का कुंवारी कन्या व्रत करती हैं. सुहागिन महिलाओं को इस व्रत से संतान प्राप्ति और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है.
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ज्योतिषाचार्य डॉ नवीन चंद्र जोशी के मुताबिक इस व्रत के दिन महिलाओं को आग पर पका हुआ भोजन नहीं ग्रहण करना चाहिए. सातू आठू का व्रत 24 घंटे का होता है. 18 अगस्त सप्तमी को व्रत का संकल्प लेने दोपहर 12 से 2 बजे तक दुबड़ा धारण का शुभ मुहूर्त है. 19 अगस्त अष्टमी को माता गौरी शिव का विधि विधान से पूजा करने का महत्व है. जिससे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होगी.