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रामनगर में कोसी का कोप, 1993-2010 में दिखा था रौद्र रूप

225 किमी बहने वाली कोसी नदी उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र की प्रमुख नदी है. लेकिन कोसी के रौद्र रूप के चलते रामनगर के लोग बारिश के मौसम में खौफजदा रहते हैं.

Kosi River
रामनगर में कोसी नदी का कोप
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Published : Aug 7, 2020, 5:09 PM IST

Updated : Aug 7, 2020, 11:59 PM IST

रामनगर: उत्तराखंड समेत देश के कई हिस्सों में बारिश और बाढ़ का कहर देखने को मिल रहा है. पहाड़ से लेकर मैदान तक जलप्रलय देखने को मिल रही है. बारिश के चलते पहाड़ दरक रहे और भूस्खलन हो रहा है. पहाड़ों पर हो रही बारिश से अब नदियों का जलस्तर भी बढ़ने लगा है. पहाड़ों में हुई तेज बारिश के चलते रामनगर में कोसी नदी का जलस्तर भी बढ़ गया है. स्थानीय लोगों के मुताबिक रामनगर में कोसी नदी अगस्त और सितंबर में ज्यादा कहर बरपाती है. 2010 की बाढ़ में कोसी नदी का उच्चतम जलस्तर 16,1000 क्यूसेक दर्ज किया गया था.

उत्तराखंड में कोसी नदी का सफर

बागेश्वर जिले के कौसानी के पास धारपानी से निकलते हुए कोसी नदी अल्मोड़ा में कोशी घाटी का निर्माण करते हुए आगे बढ़ती है. नैनीताल जिले के रामनगर से होते हुए यह उत्तर प्रदेश में प्रवेश करती है और रामगंगा में मिल जाती है. 225 किमी बहने वाली कोसी नदी उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र की एक प्रमुख नदी है. कौसानी के निकट धारपानी धार से निकलने के बाद उत्तराखंड में इसकी 21 सहायक नदियां और 97 अन्य जलधार हैं. ऐसे में बारिश के सीजन में हुई बारिश की वजह से रामनगर में कोसी नदी का जलस्तर बढ़ जाता है, जिसकी वजह से राननगर में बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है.

रामनगर में कोसी नदी का कोप.

रामनगर के पर्यावरणविद् राजेश भट्ट का कहना है कि कोसी नदी जीवनदायिनी नदी है. नदी के जरिए उत्तराखंड के दो महत्वपूर्ण दो संरक्षित क्षेत्र लाभान्वित होते हैं. जिसमें फॉरेस्ट और कॉर्बेट पार्क का इलाका शामिल है. राजेश भट्ट का कहना है कि कोसी नदी हर चार-पांच साल बाद अपना रौद्र रूप दिखाती है. इसीलिए जब नदी रौद्र रूप दिखाती है तो फिर किसी को छोड़ती नहीं.

ये भी पढ़ें: CORONA: बॉर्डर एरिया में पैदल चलने को मजबूर यात्री, देखिए ग्राउंड जीरो की रिपोर्ट

रामनगर के बीएस डंगवाल बताते हैं कि कोसी नदी ने 1993 और 2010 में जब रौद्र रूप दिखाया था तो पूरा ढिकुली, रामनगर का भरतपुरी, पंपापुरी का क्षेत्र जलमग्न हो गया था. जिसकी वजह से करोड़ों रुपए का नुकसान भी हुआ था. वहीं, इस मामले में जानकारी देते हुए सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता कैलाश उनियाल ने बताया कि कोसी बैराज का निर्माण के बाद सितंबर 1993 में बाढ़ आई थी. जिसकी वजह से नदी में 1लाख 60 हजार क्यूसेक पानी आया था. जिसकी वजह से रामनगर में भयंकर तबाही मची थी. हजारों मकान क्षतिग्रस्त हो गए थे और सैकडों हेक्टेयर भूमि का कटाव हुआ था. बाढ़ की आशंका को देखते हुए सिंचाई विभाग ने कटाव वाली जगह पर पत्थर इकट्ठे किए हैं और मिट्टी के बैग्स के जरिए पकड़ को मजबूत बनाई जा रही है.

बारिश में डराती है कोसी नदी

रामनगर के नगर के उत्तरी किनारे पर बसे लोगों को बरसात में कोसी नदी का विकराल रूप डराता है. 1993 और 2010 की बाढ़ में करोड़ों रुपए का नुकसान और सैकड़ों एकड़ जमीन का कटाव हुआ था. इसके साथ ही कई मकान और रिजॉर्ट पानी में बह गए थे. बाढ़ से रामनगर के पंपापुरी और भरतपुरी काफी तबाही हुई थी. वर्ष 2005 में तत्कालीन सीएम एनडी तिवारी की कोसी बैराज से पंपापुरी होकर आमडंडा तक तटबंध-बाईपास बनाने की.

रामनगर: उत्तराखंड समेत देश के कई हिस्सों में बारिश और बाढ़ का कहर देखने को मिल रहा है. पहाड़ से लेकर मैदान तक जलप्रलय देखने को मिल रही है. बारिश के चलते पहाड़ दरक रहे और भूस्खलन हो रहा है. पहाड़ों पर हो रही बारिश से अब नदियों का जलस्तर भी बढ़ने लगा है. पहाड़ों में हुई तेज बारिश के चलते रामनगर में कोसी नदी का जलस्तर भी बढ़ गया है. स्थानीय लोगों के मुताबिक रामनगर में कोसी नदी अगस्त और सितंबर में ज्यादा कहर बरपाती है. 2010 की बाढ़ में कोसी नदी का उच्चतम जलस्तर 16,1000 क्यूसेक दर्ज किया गया था.

उत्तराखंड में कोसी नदी का सफर

बागेश्वर जिले के कौसानी के पास धारपानी से निकलते हुए कोसी नदी अल्मोड़ा में कोशी घाटी का निर्माण करते हुए आगे बढ़ती है. नैनीताल जिले के रामनगर से होते हुए यह उत्तर प्रदेश में प्रवेश करती है और रामगंगा में मिल जाती है. 225 किमी बहने वाली कोसी नदी उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र की एक प्रमुख नदी है. कौसानी के निकट धारपानी धार से निकलने के बाद उत्तराखंड में इसकी 21 सहायक नदियां और 97 अन्य जलधार हैं. ऐसे में बारिश के सीजन में हुई बारिश की वजह से रामनगर में कोसी नदी का जलस्तर बढ़ जाता है, जिसकी वजह से राननगर में बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है.

रामनगर में कोसी नदी का कोप.

रामनगर के पर्यावरणविद् राजेश भट्ट का कहना है कि कोसी नदी जीवनदायिनी नदी है. नदी के जरिए उत्तराखंड के दो महत्वपूर्ण दो संरक्षित क्षेत्र लाभान्वित होते हैं. जिसमें फॉरेस्ट और कॉर्बेट पार्क का इलाका शामिल है. राजेश भट्ट का कहना है कि कोसी नदी हर चार-पांच साल बाद अपना रौद्र रूप दिखाती है. इसीलिए जब नदी रौद्र रूप दिखाती है तो फिर किसी को छोड़ती नहीं.

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रामनगर के बीएस डंगवाल बताते हैं कि कोसी नदी ने 1993 और 2010 में जब रौद्र रूप दिखाया था तो पूरा ढिकुली, रामनगर का भरतपुरी, पंपापुरी का क्षेत्र जलमग्न हो गया था. जिसकी वजह से करोड़ों रुपए का नुकसान भी हुआ था. वहीं, इस मामले में जानकारी देते हुए सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता कैलाश उनियाल ने बताया कि कोसी बैराज का निर्माण के बाद सितंबर 1993 में बाढ़ आई थी. जिसकी वजह से नदी में 1लाख 60 हजार क्यूसेक पानी आया था. जिसकी वजह से रामनगर में भयंकर तबाही मची थी. हजारों मकान क्षतिग्रस्त हो गए थे और सैकडों हेक्टेयर भूमि का कटाव हुआ था. बाढ़ की आशंका को देखते हुए सिंचाई विभाग ने कटाव वाली जगह पर पत्थर इकट्ठे किए हैं और मिट्टी के बैग्स के जरिए पकड़ को मजबूत बनाई जा रही है.

बारिश में डराती है कोसी नदी

रामनगर के नगर के उत्तरी किनारे पर बसे लोगों को बरसात में कोसी नदी का विकराल रूप डराता है. 1993 और 2010 की बाढ़ में करोड़ों रुपए का नुकसान और सैकड़ों एकड़ जमीन का कटाव हुआ था. इसके साथ ही कई मकान और रिजॉर्ट पानी में बह गए थे. बाढ़ से रामनगर के पंपापुरी और भरतपुरी काफी तबाही हुई थी. वर्ष 2005 में तत्कालीन सीएम एनडी तिवारी की कोसी बैराज से पंपापुरी होकर आमडंडा तक तटबंध-बाईपास बनाने की.

Last Updated : Aug 7, 2020, 11:59 PM IST
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