हल्द्वानी: हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व होता है. इस पखवाड़े के पीछे ऐसी मान्यता है कि इस दौरान हमारे मृतक पूर्वज धरती पर आते हैं और आशीर्वाद देते हैं. हिंदू धर्म में पितरों के मोक्ष की कामना के लिए पितृपक्ष में श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान आदि करने की परंपरा प्राचीन काल चली आ रही है. पितृ पक्ष के 16 दिनों में मातृ नवमी तिथि पर किया जाने वाला श्राद्ध काफी विशेष माना जाता है.
पितृ पक्ष में नवमी श्राद्ध तिथि को मातृ नवमी कहा जाता है, जिसका विशेष महत्व है. जिनकी मां, बहन या पत्नी का निधन हो गया है, उन्हें उनके लिए इस दिन श्राद्ध करना पड़ता है. इस बार मातृ नवमी 19 सितंबर यानी सोमवार को पड़ रही है.
मातृ नवमी श्राद्ध के लिए शुभ मुहूर्त: ज्योतिषाचार्य डॉ. नवीन चंद्र जोशी के मुताबिक आश्विन मास की मातृ नवमी 19 सितंबर सोमवार को पड़ रही है. पंचांग के अनुसार नवमी तिथि 18 सितंबर को शाम 4 बजकर 30 मिनट से शुरू होकर 19 सितंबर को शाम 6 बजकर 30 मिनट पर नवमी तिथि का समापन होगा. ऐसे में उदया तिथि के मुताबिक मातृ नवमी का श्राद्ध 19 सितंबर को किया जाएगा.
मातृ नवमी श्राद्ध का महत्व: हिंदू धर्म में पितृ पक्ष में पड़ने वाली मातृ नवमी के दिन परिवर से जुड़ी उन दिवंगत महिलाओं जैसे दादी, मां, बहन, बेटी आदि के लिए विशेष रूप से श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु सुहागिन के रूप में होती है, जिसे अविधवा श्राद्ध भी कहते हैं. विधि-विधान से श्राद्ध करने पर उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. इससे पितृ प्रसन्न होकर आपको आशीर्वाद देते हैं.
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मातृ नवमी के दिन सुबह जल्दी स्नान करने के बाद सफेद कपड़े पहनना शुभ होता है. नवमी श्राद्ध के दिन घर की दक्षिण दिशा में एक चौकी पर सफेद आसन के ऊपर दिवंगत परिजन की फोटो रख काले तिल का दीपक जलाएं. मृत परिजन को गंगाजल और तुलसी दल अर्पित करें. साथ ही इस दिन गरुड़ पुराण या श्रीमद्भागवत गीता का पाठ करें. मातृ नवमी के दिन सुहागिन महिलाओं को भोजन कराएं. इसके साथ ही उन्हें सुहाग की सामग्री भी अर्पित करें. मातृ नवमी के मौके पर गाय, कौआ, चींटी, चिड़िया और ब्राह्मण के लिए भी भोजन निकालें या कराएं. मान्यता है कि ऐसा करने पर ही नवमी का श्राद्ध पूरा होता है और पूर्वज खुश होते हैं. परिवार की सभी सभी मनोकामना पूर्ण होती है.