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उत्तराखंड में लॉन्च हुआ प्रोजेक्ट री-हैब, हाथियों के आतंक से ग्रामीणों को ऐसे मिलेगा छुटकारा - प्रोजेक्ट री हैब से हाथियों से छुटकारा

खादी और ग्रामोद्योग आयोग भारत सरकार ने उत्तराखंड में भी री-हैब प्रोजेक्ट की शुरुआत कर दी है. नैनीताल के रामनगर हल्द्वानी बॉर्डर के पास फतेहपुर वन रेंज के चौसला में प्रोजेक्ट का ट्रायल लिया जा रहा है. इससे जरिए ग्रामीणों के हाथियों के आतंक से बचाया जाएगा.

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Published : Nov 30, 2022, 7:37 AM IST

Updated : Nov 30, 2022, 8:15 AM IST

हल्द्वानी: पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में वन्यजीव अक्सर ग्रामीणों और किसानों के लिए मुसीबत बनते रहे हैं. खासकर किसानों के लिए, जो दिनभर तो अपने खेतों में लगी फसल की सुरक्षा करते हैं. लेकिन रात के समय जंगली सुअर, हाथी या अन्य वन्यजीव फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं. जंगलों के किनारे बसे ग्रामीणों की फसलों को नुकसान पहुंचाने का कारण सबसे ज्यादा हाथी को माना जाता है.

ऐसे में ग्रामीणों को हाथी के आतंक से छुटकारा देने के लिए खादी और ग्रामोद्योग आयोग भारत सरकार (Khadi and Village Industries Commission) ने रास्ता ढूंढ निकाला है. आयोग ने नैनीताल के रामनगर हल्द्वानी बॉर्डर के पास फतेहपुर वन रेंज के चौसला में री-हैब (रिड्यूस इन ह्यूमन अटैक यूजिंग बाय हनी बी) (Re Hab Project at Chausala Fatehpur Forest Range) कार्यक्रम की शुरुआत की है, जो अभी ट्रायल पर है.

उत्तराखंड में लॉन्च हुआ प्रोजेक्ट री-हैब.

आयोग ने चौसला के ग्रामीणों को 330 बी बॉक्स (BEE BOX), शहद निष्कासन यंत्र (honey extractor) का निशुल्क वितरण किया है. देश में अब तक प्रोजेक्ट री-हैब (project RE HAB) का संचालन उड़ीसा, असम, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल में किया जा चुका है. इसमें मधुमक्खियों के बॉक्स को ऐसी जगह लगाया जाता है, जहां हाथियों का आवागमन मानव बस्ती और खेती की तरफ अक्सर रहता है. इस प्रोजेक्ट के तहत यदि हाथी ग्रामीणों और खेती की तरफ आने की कोशिश करता है तो मधुमक्खी हाथी के ऊपर मंडराते हुए हाथी को डंक मारते हैं और हाथी को वापस जंगल की ओर वापस लौटने में मजबूर करते हैं.
ये भी पढ़ेंः लक्सर में जाम के झाम से लोग परेशान, गन्ने से लदे वाहन बन रहे परेशानी का सबब

वैसे अभी तक हाथियों को रोकने के लिए सोलर फेंसिंग, या बड़े-बड़े गड्ढे खोदे जाते हैं. लेकिन इससे हाथियों को कई बार गंभीर शारीरिक क्षति भी पहुंचती है. लिहाजा बी बॉक्स की फेंसिंग लगाकर हाथी को बिना नुकसान पहुंचाए ग्रामीणों की तरफ आने से रोका जा सकता है. लिहाजा उत्तराखंड में भी खादी और ग्रामोद्योग आयोग द्वारा री-हैब प्रोजेक्ट का संचालन किया जा रहा है.

हल्द्वानी: पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में वन्यजीव अक्सर ग्रामीणों और किसानों के लिए मुसीबत बनते रहे हैं. खासकर किसानों के लिए, जो दिनभर तो अपने खेतों में लगी फसल की सुरक्षा करते हैं. लेकिन रात के समय जंगली सुअर, हाथी या अन्य वन्यजीव फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं. जंगलों के किनारे बसे ग्रामीणों की फसलों को नुकसान पहुंचाने का कारण सबसे ज्यादा हाथी को माना जाता है.

ऐसे में ग्रामीणों को हाथी के आतंक से छुटकारा देने के लिए खादी और ग्रामोद्योग आयोग भारत सरकार (Khadi and Village Industries Commission) ने रास्ता ढूंढ निकाला है. आयोग ने नैनीताल के रामनगर हल्द्वानी बॉर्डर के पास फतेहपुर वन रेंज के चौसला में री-हैब (रिड्यूस इन ह्यूमन अटैक यूजिंग बाय हनी बी) (Re Hab Project at Chausala Fatehpur Forest Range) कार्यक्रम की शुरुआत की है, जो अभी ट्रायल पर है.

उत्तराखंड में लॉन्च हुआ प्रोजेक्ट री-हैब.

आयोग ने चौसला के ग्रामीणों को 330 बी बॉक्स (BEE BOX), शहद निष्कासन यंत्र (honey extractor) का निशुल्क वितरण किया है. देश में अब तक प्रोजेक्ट री-हैब (project RE HAB) का संचालन उड़ीसा, असम, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल में किया जा चुका है. इसमें मधुमक्खियों के बॉक्स को ऐसी जगह लगाया जाता है, जहां हाथियों का आवागमन मानव बस्ती और खेती की तरफ अक्सर रहता है. इस प्रोजेक्ट के तहत यदि हाथी ग्रामीणों और खेती की तरफ आने की कोशिश करता है तो मधुमक्खी हाथी के ऊपर मंडराते हुए हाथी को डंक मारते हैं और हाथी को वापस जंगल की ओर वापस लौटने में मजबूर करते हैं.
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वैसे अभी तक हाथियों को रोकने के लिए सोलर फेंसिंग, या बड़े-बड़े गड्ढे खोदे जाते हैं. लेकिन इससे हाथियों को कई बार गंभीर शारीरिक क्षति भी पहुंचती है. लिहाजा बी बॉक्स की फेंसिंग लगाकर हाथी को बिना नुकसान पहुंचाए ग्रामीणों की तरफ आने से रोका जा सकता है. लिहाजा उत्तराखंड में भी खादी और ग्रामोद्योग आयोग द्वारा री-हैब प्रोजेक्ट का संचालन किया जा रहा है.

Last Updated : Nov 30, 2022, 8:15 AM IST
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