हल्द्वानी: देवभूमि में देवी देवताओं के विश्व प्रसिद्ध मंदिर होने के साथ ही सिद्ध पीठ धाम और शक्तिपीठ भी मौजूद हैं. आज भी इन मंदिरों में लोगों की इतनी आस्था है कि दूर-दूर से श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद मांगने के लिए आते हैं. इन्हीं सिद्ध पीठों में मां काली का कालीचौड़ मंदिर बेहद प्रसिद्ध है, जो नैनीताल जिले के काठगोदाम रेलवे स्टेशन से महज 5 किलोमीटर दूर सुंदर और घने जंगलों के भीतर है. वहीं, आज भड़ली नवमी है, हिंदू धर्म में इस नवमी विशेष महत्व होता है और कई क्षेत्रों में इसे भड़रिया नवमी या भड़ल्या नवमी के नाम से भी जाना जाता है. यह आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को होती है और विवाह के लिए यह एक शुभ समय व मुहूर्त होता है. खास बात है कि इस दिन शादी करने के लिए किसी प्रकार के पंचांग या शुभ मुहूर्त को देखने की जरूरत नहीं है क्यों कि यह एक अबूझ साया होता है. इस दिन आप बिना मुहूर्त के विवाह कर सकते हैं.
मंदिर की स्थापना: कालीचौड़ मंदिर में मां काली का सिद्ध पीठ है, जिसके पीछे बड़ी लंबी कहानी है. मान्यता है कि इस मंदिर की स्थापना 1930 के दशक में कोलकाता पश्चिमी बंगाल के एक भक्त ने की थी. बताया जाता है कि भक्त के सपने में आकर मां काली ने इस गुमनाम स्थल के बारे में उसे बताया, जिसके बाद भक्त पश्चिमी बंगाल से श्रद्धालुओं के जत्थे के साथ काठगोदाम गौलापार पहुंचा. जहां उन्होंने स्वप्न में दिखे उस स्थान को ढूंढ निकाला.
खुदाई में मिली देवी देवाओं की मूर्ति: इस स्थान पर मां काली के साथ अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां पाई गई .उस वक्त यहां खुदाई में मिली मूर्तियां आज भी पौराणिक मंदिर खंड में संरक्षित रखी गई है. ज्यादातर मूर्तियां आंशिक रूप से खंडित हैं. इसके अलावा यह पवित्र स्थल कई ऋषि-मुनियों की तपोस्थली भी रही है.
सप्त ऋषियों ने की मां काली की आराधना: मान्यता है कि कालीचौड़ की इस पवित्र भूमि पर सतयुग में सप्त ऋषियों ने मां काली की आराधना कर अलौकिक सिद्धियां प्राप्त की थी. मार्कंडेय ऋषि ने भी यहां तपस्या कर काली से वरदान प्राप्त किया. इसके अलावा पुलस्त्य ऋषि के साथ अत्रि व पुहल ऋषि ने भी इसी स्थल पर तपस्या की थी. इसके अलावा गुरु गोरखनाथ, बाबा महेंद्र नाथ, सोमवारी बाबा, नानतीं बाबा, खेड़ा खान बाबा सहित अनेक संतों ने अपने आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत मां काली के इस मंदिर से शुरू की.
ये भी पढ़ें: Nupur Sharma Case: स्वामी आनंद स्वरूप को मिल रही धमकियां, CM धामी से लगाई सुरक्षा की गुहार
गुरु शंकराचार्य का उत्तराखंड आगमन: मंदिर के पुजारी के अनुसार पायलट बाबा ने अपनी पुस्तक हिमालय कह रहा है, में भी इसका उल्लेख किया है. इसके अलावा तराई भाबर के गजेटियर के अनुसार भी लगभग 8वीं सदी में गुरु शंकराचार्य अपने उत्तराखंड आगमन के दौरान सबसे पहले उसी स्थान पर आए थे. यही उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हुआ था. मां काली के अनेक कथाओं में यह भी मान्यता है कि यहां महाकाली के साथ ही भक्त प्रह्लाद, शिव, हनुमान, वेद व्यास और श्रवण कुमार के मंदिरों का एक समूह अस्तित्वमान है, जो 7 दशक पहले एक पेड़ के नीचे खुदाई के दौरान निकली मूर्तियों से बनाया गया है.
अगर आप भी मां काली के दर्शन के लिए कालीचौड़ आएंगे तो, यहां आपको पहाड़ पर घने सुंदर जंगल के बीच मां कालीचौड़ का यह भव्य सिद्ध पीठ मिलेगा. यह सिद्ध पीठ बेहद आकर्षक सुंदर और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है. जहां नवरात्रि से लेकर पूरे साल श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. मां की महिमा के चलते लोग दूर-दराज से यहां अपनी मनोकामना मांगने आते हैं. यदि आप भी कालीचौड़ मंदिर आना चाहें तो काठगोदाम रेलवे स्टेशन से स्थानीय ट्रांसपोर्ट के जरिए 5 किलोमीटर दूर मां काली के दरबार तक पहुंच सकते हैं.
भड़ली नवमी 2022 तिथि: हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 07 जुलाई, गुरुवार को शाम 07:28 बजे शुरू होगी. जो कि अगले दिन 08 जुलाई, शुक्रवार को शाम 06:25 पर समाप्त होगी. उदया तिथि के अनुसार भड़ली नवमी 08 जुलाई को मनाई जाएगी. इस साल भड़ली नवमी पर 3 शुभ योग बन रहे हैं जो कि इस दिन के महत्व को और भी बढ़ा देते हैं. इसमें शिव योग, सिद्ध योग और रवि योग शामिल हैं. ऐसे में शिव योग सुबह 09:01 बजे तक रहेगा. वहीं, सिद्ध योग सुबह 09: 01 बजे शुरू होगा और पूरे दिन रहेगा. जबकि, रवि योग 8 जुलाई को दोपहर 12:14 पर शुरू होगा और 9 जुलाई को शाम 05:30 बजे तक रहेगा.
भड़ली नवमी का महत्व: हिंदू धर्म में भड़ली नवमी को अबूझ मुहूर्त व अबूझ साया भी कहा जाता है. इस दिन कोई भी शुभ कार्य करने के लिए पंचांग देखने की जरूरत नहीं होती. यदि आप कोई मांगलिक कार्य करना चाहते हैं इस दिन कर सकते हैं. कई बार शादी के लिए शुभ मुहूर्त नहीं मिलता और यदि मिलता है तो उसके लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है. ऐसे में अबूझ मुहूर्त में विवाह किया जा सकता है. बता दें कि भड़ली नवमी के बाद 10 जुलाई से चातुर्मास शुरू हो रहा है जिसके बाद अगले चार महीने तक कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह, सगाई, मुंडन या गृह प्रवेश नहीं किया जाता.