नैनीताल: कुमाऊं विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर एनके जोशी की नियुक्ति मामले में दायर जनहित याचिका पर अब नैनीताल हाईकोर्ट की दूसरी बेंच सुनवाई करेगी. क्योंकि हाईकोर्ट के न्यायाधीश आलोक कुमार वर्मा ने अपने आप को खुद इस सुनवाई के अलग कर लिया है. उन्होंने कहा कि कुलपति की नियुक्ति वाली कमेटी के वे खुद सदस्य रहे है. इसीलिए उनके सामेन इस मामले पर विचार नहीं किया जा सकता है.
न्यायाधीश आलोक कुमार वर्मा के इस सुनवाई से अलग होने के बाद अब मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने याचिका को किसी दूसरी बेंच को हस्तांतरित कर दिया है. इसके बाद अब जल्द ही इस मामले पर सुनवाई होगी. बता दें कि देहरादून निवासी राज्य आंदोलनकारी रविंद्र जुगराज ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी.
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दायर जनहित याचिका में रविंद्र जुगराज ने कहा था कि कुमाऊं विश्वविद्यालय के कुलपति एनके जोशी कुलपति पद के योग्य नहीं है. एनके जोशी ने कुलपति बनने के लिए अपने बायोडाटा में अधिकांश जानकारियां गलत दी हैं. कुलपति की नियुक्ति में यूजीसी के नियमों समेत यूपी यूनिवर्सिटी एक्ट का भी उल्लंघन किया गया है.
रविंद्र जुगराज ने बताया कि विश्वविद्यालय का कुलपति बनने के लिए उम्मीदवार को कम से कम 10 साल प्रोफेसर के पद पर या किसी रिसर्च इंस्टीट्यूट या एकेडमिक प्रशासनिक संस्थान में सामान पद पर होना जरूरी है. इसके बाद ही कोई व्यक्ति कुलपति पद के लिए आवेदन कर सकता है, लेकिन एनके जोशी ने नियमों को ताक पर रखते हुए आवेदन किया.
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प्रोफेसर एनके जोशी के आयोग्य होने के बावजूद कुलपति का चयन करने वाली कमेटी ने उनका नाम राज्यपाल के पास भेज दिया. याचिकाकर्ता रविंद्र जुगराज ने कोर्ट को बताया कि प्रोफेसर एनके जोशी के शैक्षणिक दस्तावेजों में भी कई अनियमितता है. प्रोफेसर एनके जोशी ने भौतिक विज्ञान में एमएससी, वन विज्ञान में पीएचडी व कुलपति के पद हेतु अपने आप को कंप्यूटर विज्ञान का प्रोफेसर बताया है जो गलत है. .
रविंद्र जुगराज ने कोर्ट को बताया कि एनके जोशी किसी भी सरकारी विश्वविद्यालय या कॉलेज में किसी प्रोफेसर के पद पर नियुक्त नहीं रहे हैं. उन्होंने कुलपति का पद गलत जानकारी देकर प्राप्त किया गया है, लिहाजा उन्हें तत्काल पद से हटाया जाए.