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नैनीतालः कुमाऊं की पारंपरिक बैठकी होली का शुभारंभ, गूंज रहे हैं श्रृंगार रस के तराने

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Published : Dec 23, 2019, 1:13 PM IST

Updated : Dec 23, 2019, 2:22 PM IST

कुमाऊं में पौष महीने के पहले रविवार से होली का शुभारंभ हो गया है. परंपरा के अनुसार यहां होली की शुरुआत तीन चरणों में होती है, जिसमें पहले चरण की शुरुआत बैठकी के रूप में होता है.

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कुमाउं में बैठकिया होली का शुभारंभ

नैनीताल: कुमाऊं में होली का आगाज हो गया है. यहां पर होली की शुरुआत पौष महीने के पहले रविवार से हो जाती है. होली की यह अनोखी परंपरा पिछले काफी समय से चली आ रही है. यहां के बुजुर्गों का कहना है कि लुप्त हो रही सांस्कृतिक विरासत को बचाने की ये एक अच्छी पहल है, जिससे आने वाली पीढ़ी को लुप्त हो रही विरासत से रूबरू किया जा सके. साथ ही यहां की होली धार्मिक एकता को भी दर्शाती है.

कुमाऊं में बैठकिया होली का शुभारंभ.

जानकारी के मुताबिक यहां पर पौष महीने के पहले रविवार के साथ ही कुमाऊं होली का शुभारम्भ हो जाता है. इस अनूठी परंपरा के अनुसार होली तीन चरणों में मनाई जाती है, जिसमें पहले चरण की शुरुआत बैठकी होली के रूप में हो चुकी है, जिसमें विरह की होली गायी जाती है.

वहीं, बसंत पंचमी के आने के बाद से होली गायन में श्रृंगार रस घुल जाता है. इस दौरान इसमें युवा बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं. ये बैठकी देर शाम तक चलती है. वहीं, बसंत पंचमी के प्रारंभ होने के साथ ही यहां श्रृंगार रसों की होली गायन का शुभारम्भ हो चुका है.

ये भी पढ़ें: भारत में पहली बार हुआ स्नो-शूइंग गेम्स का आयोजन, औली में व्यवसायियों के खिले चेहरे

कुमाऊं में होली का इतिहास सदियों पुराना रहा है. करीब डेढ़ दशक पहले रामपुर के उस्ताद अमानत हुसैन ने यहां पर होली गीतों की शुरूआत की थी और तब से लेकर आज तक बैठकी और खड़ी होली इसी अंदाज में मनाई जा रही है.

यहां की होली का एक और खास विशेषता है कि यहां की होली किसी धर्म या समुदाय तक ही सीमित नहीं है बल्कि सभी समुदाय के लोग इस त्योहार को आपस में मिलकर मनाते हैं.

नैनीताल: कुमाऊं में होली का आगाज हो गया है. यहां पर होली की शुरुआत पौष महीने के पहले रविवार से हो जाती है. होली की यह अनोखी परंपरा पिछले काफी समय से चली आ रही है. यहां के बुजुर्गों का कहना है कि लुप्त हो रही सांस्कृतिक विरासत को बचाने की ये एक अच्छी पहल है, जिससे आने वाली पीढ़ी को लुप्त हो रही विरासत से रूबरू किया जा सके. साथ ही यहां की होली धार्मिक एकता को भी दर्शाती है.

कुमाऊं में बैठकिया होली का शुभारंभ.

जानकारी के मुताबिक यहां पर पौष महीने के पहले रविवार के साथ ही कुमाऊं होली का शुभारम्भ हो जाता है. इस अनूठी परंपरा के अनुसार होली तीन चरणों में मनाई जाती है, जिसमें पहले चरण की शुरुआत बैठकी होली के रूप में हो चुकी है, जिसमें विरह की होली गायी जाती है.

वहीं, बसंत पंचमी के आने के बाद से होली गायन में श्रृंगार रस घुल जाता है. इस दौरान इसमें युवा बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं. ये बैठकी देर शाम तक चलती है. वहीं, बसंत पंचमी के प्रारंभ होने के साथ ही यहां श्रृंगार रसों की होली गायन का शुभारम्भ हो चुका है.

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कुमाऊं में होली का इतिहास सदियों पुराना रहा है. करीब डेढ़ दशक पहले रामपुर के उस्ताद अमानत हुसैन ने यहां पर होली गीतों की शुरूआत की थी और तब से लेकर आज तक बैठकी और खड़ी होली इसी अंदाज में मनाई जा रही है.

यहां की होली का एक और खास विशेषता है कि यहां की होली किसी धर्म या समुदाय तक ही सीमित नहीं है बल्कि सभी समुदाय के लोग इस त्योहार को आपस में मिलकर मनाते हैं.

Intro:Summry

कुमाऊं में पोष के पहले रविवार से सुरु हुई कुमाउनी होली, कुमाउनी होली का अपना है इतिहास।

Intro

कुमाउं में होली का आगाज हो गया है। कुमाउं का इलाका एक ऐसा इलाका है जहां होली पौष माह के पहले रविवार से शुरूआत हो जाती है। होली की यह अनौखी परंपरा कुमाउं में सदियों से चली आ रही है। कुमाउ क्षेत्र मंे बुर्जग लोगो के द्धारा लुप्त हो रही सास्कृतीक विरासत को बचाने की एक अच्धी पहल है जिस्से आने वाली नई पीडी को लुप्त हो रही विरासत से जोडा जा सके। नैनीताल की होली धार्मीक एकता को भी दर्शाती हैंBody:पौष माह के पहले रविवार के साथ ही कुमाउं की धरती में होली का शुभारम्भ हो जाता है। इस अनूठी परंपरा में होली तीन चरणों में मनाई जाती है। बैठकी होली के माध्यम से पहले चरण में विरह की हाली गाई जाती है और बसंत पंचमी के आ जाने से होली गायन में श्रृंगार रस घुल जाता है और युवाओ की भागेदारी भी बड चड कर होने लगती है। होली गायन में बैठकी होली का ये दौर देर साय तक चलता रहता है। बसंत पंचमी के प्रारम्भ होने के साथ ही नैनीताल में श्रगार रसो की होली का गायन शुभारम्भ हो गया है। बैठकीय होली राग-रागनीयो पर आधारीत होती है जिसमें राग यमन, बादरू काफी, जंगला काफी, खम्माज, देश राग, पीलु, रागभैरवी आदी रागो के साथ ही होली गाया जाता है। महा शिवरात्री से बैठकीय होली खुले और रंग में आ जाएगी। जिसके बाद होली के टीके तक राधा-कृष्ण और छेड़खानी-ठिठोली युक्त होली गायन चलेगा। अंत में होली अपने पूरे रंग में पहुंच जाती है और रंगों के साथ खुलकर मनाई जाती है।

बाइट- जहर आलम, होलियार।Conclusion: कुमाउं में होली का इतिहास सदियों पुराना रहा है। करीब डेढ़ दसक पहले रामपुर के उस्ताद अमानत हुसैन ने कुमाउं में होली गीतों की शुरूआत की थी और तब से लेकर आज तक कुमाउं में बैठकी और खड़ी होली इसी अंदाज में मनाई जाती है कुमाउ की होली का एक और पक्ष है जो कुमाउं की होली को विशेष बनाता है और वह है कि यहां होली किसी धर्म या समुदाय तक सीमित नहीं है यहा सभी समुदाय के लोग आपस में मील जुल कर होली मनाते है। नैनीताल में पिछले कई सालों से होली की अनूठी परंपरा को मुस्लिम समुदाय के लोग निभाते आ रहे हैं। इस लुप्त होती होली की परम्परा को बचाने के लिए होली महोत्शव का आयोजन करा जाता है जिसमें जिले भर के होलीयार सीरकत करते है साथ ही नई पीढी को होली गायन से रूबरू कराने के लिए कार्यशाला का भी आयोजन करा जारहा है।

बाइट- ललित तिवारी, होलियार।
Last Updated : Dec 23, 2019, 2:22 PM IST
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