ETV Bharat / state

राज्य आंदोलनकारियों के क्षैतिज आरक्षण मामले में राज्य सरकार को झटका, HC ने निरस्त किया प्रार्थना पत्र

author img

By

Published : Apr 6, 2022, 3:36 PM IST

Updated : Apr 6, 2022, 4:38 PM IST

राज्य आंदोलनकारियों के मामले में राज्य सरकार को हाईकोर्ट में झटका लगा है. कोर्ट ने सरकार ने इस मामले में सरकार के प्रार्थना पत्र को निरस्त कर दिया है.

in-the-case-of-10-percent-horizontal-reservation-to-the-state-agitators-in-the-high-court-the-application-of-the-state-government-was-canceled
राज्य आंदोलनकारियों के क्षैतिज आरक्षण मामले में राज्य सरकार को झटका

नैनीताल: उत्तराखंड हाई कोर्ट ने राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी सेवाओं में 10 फीसदी क्षैतिज आरक्षण दिए जाने के मामले पर सुनवाई की. मामले को सुनने के बाद कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश संजय कुमार मिश्रा व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खण्डपीठ ने सरकार के प्रार्थना पत्र को यह कहकर निरस्त कर दिया है कि आदेश को 1403 दिन हो गए हैं. सरकार अब आदेश में संसोधन प्रार्थना पत्र पेश कर रही है. अब इसका कोई आधार नहीं रह गया है. न ही देर से पेश करने का कोई ठोस कारण बताया गया है. यह प्रार्थना पत्र लिमिटेशन एक्ट की परिधि से बाहर जाकर पेश किया गया है, जबकि आदेश होने के 30 दिन के भीतर पेश किया जाना था.

मामले के अनुसार राज्य आंदोलनकारियों को दस फीसदी क्षैतिज आरक्षण दिए जाने के दो शासनादेश एनडी तिवारी की सरकार 2004 में लाई. पहला शासनादेश लोक सेवा आयोग से भरे जाने वाले पदों के लिए दूसरा शासनादेश लोक सेवा परिधि के बाहर के पदों हेतु था. शासनादेश जारी होने के बाद राज्य आन्दोलनकारियों को दस फीसदी क्षैतिज आरक्षण दिया गया. 2011 में उच्च न्यायलय ने इस शासनादेश पर रोक लगा दी थी. बाद में उच्च न्यायलय ने इस मामले को जनहित याचिका में तब्दील करके 2015 में इस पर सुनवाई की.

पढ़ें- उत्तराखंड: जंगलों में लगी आग, लाखों की वन संपदा जलकर राख

खण्डपीठ की दोनों जजो ने आरक्षण दिए जाने व न दिए जाने को लेकर अपने अलग अलग निर्णय दिए. न्यायधीश न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने अपने निर्णय में कहा कि सरकारी सेवाओं में दस फीसदी क्षैतिज आरक्षण देना नियम विरुद्ध है जबकि न्यायमूर्ति यूसी ध्यानी ने अपने निर्णय में आरक्षण को संवैधानिक माना. फिर यह मामला सुनवाई के लिए दूसरी कोर्ट को भेजा गया. उसने भी आरक्षण को असंवैधानिक घोषित किया. साथ ही कहा संविधान के अनुच्छेद 16 में कहा गया कि सरकारी सेवा के लिए नागिरकों को समान अधिकार प्राप्त है. इसलिए आरक्षण दिया जाना असंवैधानिक है.

सरकार ने आज लोक सेवा की परिधि से बाहर वाले शासनादेश में पारित आदेश को संसोधन हेतु प्रार्थना पेश किया था. जिसको खण्डपीठ ने खारिज कर दिया. इस प्रार्थना पत्र का विरोध करते हुए राज्य आंदोलनकारी रमन शाह ने कोर्ट को बताया कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के एसएलपी विचाराधीन है.

पढ़ें- Lockdown Impact: प्रदेश में वनाग्नि से जुड़े मामलों में आई भारी कमी, यह है वजह

2015 में कांग्रेस सरकार ने विधान सभा में विधेयक पास कर राज्य आंदोलनकारियों को 10 फीसदी आरक्षण देने का विधेयक पास किया. इस विधेयक को राज्यपाल के हस्ताक्षरों के लिये भेजा, मगर राजभवन से यह विधेयक वापस नहीं हुआ. अभी तक आयोग की परिधि से बाहर 730 लोगों को नौकरी दी गयी है, जो अब खतरे में है.

नैनीताल: उत्तराखंड हाई कोर्ट ने राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी सेवाओं में 10 फीसदी क्षैतिज आरक्षण दिए जाने के मामले पर सुनवाई की. मामले को सुनने के बाद कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश संजय कुमार मिश्रा व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खण्डपीठ ने सरकार के प्रार्थना पत्र को यह कहकर निरस्त कर दिया है कि आदेश को 1403 दिन हो गए हैं. सरकार अब आदेश में संसोधन प्रार्थना पत्र पेश कर रही है. अब इसका कोई आधार नहीं रह गया है. न ही देर से पेश करने का कोई ठोस कारण बताया गया है. यह प्रार्थना पत्र लिमिटेशन एक्ट की परिधि से बाहर जाकर पेश किया गया है, जबकि आदेश होने के 30 दिन के भीतर पेश किया जाना था.

मामले के अनुसार राज्य आंदोलनकारियों को दस फीसदी क्षैतिज आरक्षण दिए जाने के दो शासनादेश एनडी तिवारी की सरकार 2004 में लाई. पहला शासनादेश लोक सेवा आयोग से भरे जाने वाले पदों के लिए दूसरा शासनादेश लोक सेवा परिधि के बाहर के पदों हेतु था. शासनादेश जारी होने के बाद राज्य आन्दोलनकारियों को दस फीसदी क्षैतिज आरक्षण दिया गया. 2011 में उच्च न्यायलय ने इस शासनादेश पर रोक लगा दी थी. बाद में उच्च न्यायलय ने इस मामले को जनहित याचिका में तब्दील करके 2015 में इस पर सुनवाई की.

पढ़ें- उत्तराखंड: जंगलों में लगी आग, लाखों की वन संपदा जलकर राख

खण्डपीठ की दोनों जजो ने आरक्षण दिए जाने व न दिए जाने को लेकर अपने अलग अलग निर्णय दिए. न्यायधीश न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने अपने निर्णय में कहा कि सरकारी सेवाओं में दस फीसदी क्षैतिज आरक्षण देना नियम विरुद्ध है जबकि न्यायमूर्ति यूसी ध्यानी ने अपने निर्णय में आरक्षण को संवैधानिक माना. फिर यह मामला सुनवाई के लिए दूसरी कोर्ट को भेजा गया. उसने भी आरक्षण को असंवैधानिक घोषित किया. साथ ही कहा संविधान के अनुच्छेद 16 में कहा गया कि सरकारी सेवा के लिए नागिरकों को समान अधिकार प्राप्त है. इसलिए आरक्षण दिया जाना असंवैधानिक है.

सरकार ने आज लोक सेवा की परिधि से बाहर वाले शासनादेश में पारित आदेश को संसोधन हेतु प्रार्थना पेश किया था. जिसको खण्डपीठ ने खारिज कर दिया. इस प्रार्थना पत्र का विरोध करते हुए राज्य आंदोलनकारी रमन शाह ने कोर्ट को बताया कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के एसएलपी विचाराधीन है.

पढ़ें- Lockdown Impact: प्रदेश में वनाग्नि से जुड़े मामलों में आई भारी कमी, यह है वजह

2015 में कांग्रेस सरकार ने विधान सभा में विधेयक पास कर राज्य आंदोलनकारियों को 10 फीसदी आरक्षण देने का विधेयक पास किया. इस विधेयक को राज्यपाल के हस्ताक्षरों के लिये भेजा, मगर राजभवन से यह विधेयक वापस नहीं हुआ. अभी तक आयोग की परिधि से बाहर 730 लोगों को नौकरी दी गयी है, जो अब खतरे में है.

Last Updated : Apr 6, 2022, 4:38 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.