हल्द्वानी: बारिश और ओलावृष्टि ने पहले ही पहाड़ के किसानों की आड़ू, पुलम और खुबानी की फसलें बर्बाद कर दी हैं. ऐसे में कोरोना की दूसरी लहर पहाड़ के किसानों की मुश्किलें बढ़ा रही है. कोरोना के चलते प्रदेश की कई मंडिया बंद पड़ी हुई हैं. कर्फ्यू और लॉकडाउन के चलते बजारे बंद हैं. ऐसे में अन्य दिनों में देश की मंडियों में बिकने वाले पहाड़ के आड़ू, पुलम और खुबानी इस बार मंडियों और बाजारों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं. इसके चलते पहाड़ के किसानों को काफी नुकसान हो रहा है.
आड़ू, पुलम, खुबानी है तैयार
पहाड़ में इन दिनों आड़ू, पुलम, खुबानी की फसल पककर तैयार है. काश्तकार अपने उत्पादन को कुमाऊं की सबसे बड़े फल-सब्जी मंडी हल्द्वानी में ला रहे हैं. लेकिन किसानों को उनकी फसल का उचित दाम नहीं मिल पा रहा है. लॉकडाउन कर्फ्यू और बाजार बंद होने के चलते बाहर से आने वाले व्यापारी हल्द्वानी मंडी तक नहीं पहुंच पा रहे हैं. इसके चलते पहाड़ के इन रसीले फलों को मंडियों में उचित दाम नहीं मिल पा रहे हैं.
लॉकडाउन में बंद हैं मंडियां और बाजार
पहाड़ी फल के कारोबारी रमेश चंद्र के मुताबिक लॉकडाउन कर्फ्यू के चलते बाहर की कई मंडियां और बाजार बंद हैं. बाहरी मंडी के व्यापारी हल्द्वानी मंडी तक नहीं पहुंच पा रहे हैं. यहां तक कि लोकल बाजार के खुलने की समय अवधि सुबह 10:00 तक होने के चलते छोटे व्यापारी अपने फलों के दुकानों को बंद कर रखे हैं.
मंडियों में नहीं फलों की डिमांड
इसके चलते पहाड़ों से आने वाले फलों की डिमांड मंडियों में नहीं हो पा रही है. इसका सीधा असर पहाड़ के काश्तकारों पर पड़ रहा है. काश्तकार अपने उत्पादन को मंडी तक ला तो रहे हैं, लेकिन मंडी में माल बिक्री नहीं होने के चलते उनको उचित दाम नहीं मिल पा रहे हैं. आड़ू और पुलम की 10 किलो की पेटी जहां अन्य सालों में ₹300 से लेकर ₹400 तक बिकती थी जो इस समय 250 से लेकर ₹300 तक बिक रही है.
व्यापारी नितिन पाठक का कहना है कि पिछले साल से इस साल हालात और बुरे हैं. पिछले साल जहां मंडियों तक बाहर के व्यापारी आ रहे थे लेकिन इस बार बाहर के व्यापारी भी मंडी तक नहीं पहुंच पा रहे हैं. अगर इसी तरह के हालात रहे तो पहाड़ के किसानों के साथ-साथ फल कारोबारियों को भी काफी नुकसान उठाना पड़ेगा.
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हल्द्वानी फल-सब्जी एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष जीवन सिंह कार्की का कहना है कि ओलावृष्टि और बरसात ने पहाड़ के फल उत्पादन करने वाले किसानों की पहले ही कमर तोड़ दी है. पहाड़ के काश्तकारों के फल मंडी तक पहुंच तो रहे हैं, लेकिन उनके दाम उचित नहीं मिल पा रहे हैं.