नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने खटीमा कोतवाली प्रभारी निरीक्षक नरेश चौहान और अध्यक्ष झनकया दिनेश सिंह फर्त्याल का स्थानांतरण नहीं करने और चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करने को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई की. वहीं, मामले में चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करने संबंधी कोई लिखित तथ्य पेश नहीं करने पर कोर्ट ने याचिका निरस्त कर दी.
वेकेशन जज न्यायमूर्ति रविंद्र मैठाणी की एकलपीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मामले को सुना. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता भुवन कापड़ी ने कहा कि नरेश चौहान और दिनेश सिंह फर्त्याल चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए क्षेत्र में लोगों को कंबल और अन्य समान वितरण किया जा रहा है. इसलिए इनका स्थानांतरण किया जाए.
मामले में भुवन कापड़ी कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष कांग्रेस ने हाईकोर्ट में दोबारा याचिका दायर कर कहा कि नरेश चौहान और दिनेश सिंह फर्त्याल बीते 9 वर्ष से जनपद उधम सिंह नगर में ही सेवारत हैं. जबकि विभागीय नियमावली के अनुसार उपनिरीक्षक स्तर का अधिकारी 8 वर्ष से अधिक एक जनपद में सेवारत नहीं रह सकता.
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विभाग ने 23 जून 2021 को नरेश चौहान का अल्मोड़ा व दिनेश सिंह फर्त्याल का पिथौरागढ़ स्थानांतरण कर दिया था. उसके बाद विभाग ने दोनों अधिकारियों का स्थानांतरण स्थगित कर दिया. याचिकाकर्ता का यह भी कहना है दोनों अधिकारी लोकसभा चुनाव में भी यहीं सेवारत थे और वर्तमान समय में भारतीय जनता पार्टी के सक्रिय एजेंट के रूप में कार्य कर रहे हैं और ये लोग विधानसभा चुनाव को भी प्रभावित कर रहे हैं. इसलिए इनका स्थानांतरण किया जाए.
पूर्व में भी कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिए थे कि याचिकाकर्ता के प्रत्यावेदन 10 दिन के भीतर निस्तारित करें. जिसे चुनाव आयोग ने बिना जांच के निस्तारित कर दिया. इसका विरोध करते हुए मुख्य स्थायी अधिवक्ता सीएस रावत ने कोर्ट को बताया कि जो आरोप याचिका में लगाये गए हैं. वे सब निराधार हैं, स्टेट इलेक्शन कमीशन ने आईजी पर्सनल व आरओ से व्यक्तिगत रिपोर्ट मांगकर इनका प्रत्यावेदन तय सीमा के भीतर निस्तारित कर, उसकी रिपोर्ट याचिकाकर्ता को 7 फरवरी को दे दी.
उन्होंने कहा कि सरकार पूरी तरह से इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया द्वारा जारी गाइडलाइन का पालन कर रही है. दोनों अधिकारियों के खिलाफ किसी भी तरह की गड़बड़ी सामने अभी तक नहीं आई है. याचिका में जो आरोप लगाए गए हैं, वो बिना सबूतों के हैं. वहीं, याचिकाकर्ता की तरफ से चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करने संबंधी कोई लिखित तथ्य पेश नहीं करने पर हाईकोर्ट ने याचिका को निरस्त कर दिया.