नैनीताल: उत्तराखंड में नदी किनारे लगी निजी भूमि पर राज्य सरकार के द्वारा खनन पट्टा आवंटित करने का मामला नैनीताल हाईकोर्ट की शरण में पहुंच गया है. मामले में सुनवाई करते हुए नैनीताल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चौहान की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को सरकार के जवाब का प्रति शपथ पत्र कोर्ट में पेश करने के आदेश दिए हैं.
बता दें कि बाजपुर के रहने वाले रमेश लालवानी ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि राज्य सरकार ने खनन नीति 2001 को 5 मई 2020 में संशोधित कर दिया है. जिसके तहत नदी तट से लगी भूमि पर खनन की अनुमति निजी लोगों को दे दी गई है. जबकि हाईकोर्ट ने उत्तराखंड में नदी के किनारे पट्टे आवंटित करने और खनन पर रोक लगाई है. लिहाजा राज्य सरकार कोर्ट के आदेशों की अवहेलना कर 2001 खनन नीति में संशोधन कर नदी किनारे खनन की अनुमति दे रही है. जिस पर रोक लगाई जाये.
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मामले में सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने सरकार के आदेश पर रोक लगा दी थी. तब राज्य सरकार को अपना जवाब कोर्ट में पेश करने को कहा था. आज राज्य सरकार ने इस मामले में अपना जवाब पेश किया. जिसमें बताया गया कि उत्तराखंड में आपदा के दौरान अधिकांश भूमि भूस्खलन में बह जाती है. जिसके कारण किसान जो नदी के किनारों के पास खेती करते हैं उन्हें नुकसान होता है. यही है वजह है कि राज्य सरकार के द्वारा 2001 की खनन नीति में संशोधन किया जा रहा है, ताकि नदी किनारे रहने वाले लोगों की भूमि को बचाया जा सके.
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वहीं, कोर्ट ने मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि नदी सरकार की संपत्ति है. उसके किनारे लगी भूमि पर भी सरकार का अधिकार है. लिहाजा नदी किनारे किसी भी प्रकार से निजी लोगों को खनन की अनुमति नहीं दी जा सकती है.