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नैनीताल के हर्बल रंगों की बाजार में भारी मांग, रसोई के सामान से तैयार होता है

नैनीताल में महिलाओं ने रसोई में प्रयोग होने वाले पदार्थों से हर्बल रंग तैयार किया है. होली के इन रंगों की पूरे देश में तेजी से मांग बढ़ रही है.

holi in nainital
दो महिलाएं सुरक्षित होली को दे रही बढ़ावा
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Published : Mar 7, 2020, 7:48 AM IST

नैनीताल: रंगों के पर्व होली का आगाज हो चुका है. सरोवर नगरी नैनीताल में भी इसकी तैयारियां प्रारंभ हो चुकी हैं. वर्तमान में होली पर केमिकल युक्त रंगों का धड़ल्ले से प्रयोग हो रहा है. इससे शरीर पर बुरा असर पड़ता है. यदि हर्बल रंगों से होली खेली जाए तो पर्व का आनंद कुछ और ही होता है. अभी भी अनेक जगह हर्बल रंगों का प्रयोग होता है.

नैनीताल के हर्बल रंगों की बाजार में भारी मांग.

इन दिनों सरोवर नगरी नैनीताल में भी महिलाएं इको फ्रेंडली, हर्बल रंग बनाने में जुटी हुई हैं, जिससे होली के दौरान इन रंगों का प्रयोग हो सके और लोगों को किसी प्रकार की त्वचा रोग या अन्य प्रकार की बीमारियों का सामना करना न पड़े. हर्बल रंग बना रही महिलाएं आटा, अरारोट, मक्के का आटा, खाने में प्रयोग होने वाला रंग और इत्र समेत फूलों को पीसकर तैयार करती हैं, जिससे इस होली को हर्बल और इको फ्रेंडली बनाया जा सके.

हर्बल रंग तैयार कर रही महिला किरन तिवारी का कहना है कि उन्हें अचानक रंग बनाने की तरकीब सूझी. उन्होंने एक किलो रंग बनाने के बाद अपनी तरकीब दूसरी महिला मित्र नायला खान से साझा की. इसके बाद दोनों ने मिलकर करीब 10 किलो रंग तैयार किया. रंग की गुणवत्ता और उसके औषधीय गुणों को देखकर उनका रंग तेजी से चर्चाओं में आने लगा. अब इन महिलाओं ने करीब 100 किलो से ज्यादा रंग तैयार कर लिया है, जिसकी मांग नैनीताल ही नहीं बल्कि हल्द्वानी, दिल्ली, चंडीगढ़, मुंबई समेत कई अन्य महानगरों में हो रही है.

ये भी पढ़ें: हल्द्वानी: पूरे शबाब पर होली, आप भी देखिए खड़ी और बैठकी होली के अनोखे रंग

जहां आज देश में एक ओर सीएए और एनआरसी को लेकर विवाद मचा हुआ है, वहीं दूसरी ओर नैनीताल में मुस्लिम परिवार ने सर्व धर्म एकता की अनूठी मिसाल पेश की है. नैनीताल के ये मुस्लिम परिवार होली के लिए हर्बल रंग तैयार कर रहा है, मुस्लिम महिला नायला का कहना है कि उनको उनकी दोस्त ने रंग बनाने की विधि के बारे में बताया. उन्होंने हर्बल रंग बनाने का बीड़ा उठाया और आज उनका रंग नैनीताल समेत पूरे देश में धूम मचा रहा है.

वहीं, नायला ने बताया कि वो नैनीताल में ही पली बढ़ी और उनको उत्तराखंड की लोक संस्कृति बेहद पसंद है. उत्तराखंड की लुप्त हो रही संस्कृति को बचाने का प्रयास कर रही है, जिससे आने वाली पीढ़ी को उत्तराखंड की संस्कृति से रूबरू कराया जा सके.

नैनीताल: रंगों के पर्व होली का आगाज हो चुका है. सरोवर नगरी नैनीताल में भी इसकी तैयारियां प्रारंभ हो चुकी हैं. वर्तमान में होली पर केमिकल युक्त रंगों का धड़ल्ले से प्रयोग हो रहा है. इससे शरीर पर बुरा असर पड़ता है. यदि हर्बल रंगों से होली खेली जाए तो पर्व का आनंद कुछ और ही होता है. अभी भी अनेक जगह हर्बल रंगों का प्रयोग होता है.

नैनीताल के हर्बल रंगों की बाजार में भारी मांग.

इन दिनों सरोवर नगरी नैनीताल में भी महिलाएं इको फ्रेंडली, हर्बल रंग बनाने में जुटी हुई हैं, जिससे होली के दौरान इन रंगों का प्रयोग हो सके और लोगों को किसी प्रकार की त्वचा रोग या अन्य प्रकार की बीमारियों का सामना करना न पड़े. हर्बल रंग बना रही महिलाएं आटा, अरारोट, मक्के का आटा, खाने में प्रयोग होने वाला रंग और इत्र समेत फूलों को पीसकर तैयार करती हैं, जिससे इस होली को हर्बल और इको फ्रेंडली बनाया जा सके.

हर्बल रंग तैयार कर रही महिला किरन तिवारी का कहना है कि उन्हें अचानक रंग बनाने की तरकीब सूझी. उन्होंने एक किलो रंग बनाने के बाद अपनी तरकीब दूसरी महिला मित्र नायला खान से साझा की. इसके बाद दोनों ने मिलकर करीब 10 किलो रंग तैयार किया. रंग की गुणवत्ता और उसके औषधीय गुणों को देखकर उनका रंग तेजी से चर्चाओं में आने लगा. अब इन महिलाओं ने करीब 100 किलो से ज्यादा रंग तैयार कर लिया है, जिसकी मांग नैनीताल ही नहीं बल्कि हल्द्वानी, दिल्ली, चंडीगढ़, मुंबई समेत कई अन्य महानगरों में हो रही है.

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जहां आज देश में एक ओर सीएए और एनआरसी को लेकर विवाद मचा हुआ है, वहीं दूसरी ओर नैनीताल में मुस्लिम परिवार ने सर्व धर्म एकता की अनूठी मिसाल पेश की है. नैनीताल के ये मुस्लिम परिवार होली के लिए हर्बल रंग तैयार कर रहा है, मुस्लिम महिला नायला का कहना है कि उनको उनकी दोस्त ने रंग बनाने की विधि के बारे में बताया. उन्होंने हर्बल रंग बनाने का बीड़ा उठाया और आज उनका रंग नैनीताल समेत पूरे देश में धूम मचा रहा है.

वहीं, नायला ने बताया कि वो नैनीताल में ही पली बढ़ी और उनको उत्तराखंड की लोक संस्कृति बेहद पसंद है. उत्तराखंड की लुप्त हो रही संस्कृति को बचाने का प्रयास कर रही है, जिससे आने वाली पीढ़ी को उत्तराखंड की संस्कृति से रूबरू कराया जा सके.

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