नैनीताल: राज्य सरकार द्वारा बदरी-केदारनाथ मंदिर समेत 51 अन्य मंदिरों को देवस्थानम बोर्ड के तहत शामिल करने के मामले में नैनीताल हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. अब मामले में कभी भी बड़ा फैसला आ सकता है.
मामले में सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि सरकार के द्वारा आर्टिकल 25-26 और 31A के तहत देवस्थानम बोर्ड बनाया गया है, जो बिल्कुल सही है. इसमें किसी भी प्रकार की अनियमितता या गड़बड़ी नहीं है. साल 1899 में कुमाऊं हाई कोर्ट ने बदरीनाथ और केदारनाथ मंदिरों के प्रबंधन को अलग-अलग कर दिया था, जिसका वित्तीय प्रबंधन शहरी स्टेट और पूजा पद्धति तीर्थ पुरोहितों को दिया गया था और इसी आधार पर एक बार फिर से राज्य सरकार के द्वारा देवस्थानम बोर्ड गठित किया गया है.
साल 1933 में पंडित मदन मोहन मालवीय ने बदरीनाथ और केदारनाथ में भ्रष्टाचार का मामला उठाया था और इसके लिए आंदोलन भी किया गया, जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने 1939 में बीकेटीसी एक्ट बनाया. जिसमें साफ लिखा है कि बदरीनाथ और केदारनाथ मंदिर में हो रहे भ्रष्टाचार को खत्म करने और भक्तों को बेहतर सुविधा देने के लिए यह एक्ट बनाया गया, जो आज भी वजूद में है और उसी एक्ट को अपग्रेड कर देवस्थानम बोर्ड बनाया गया है.
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बता दें, राज्यसभा सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी ने नैनीताल हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि उत्तराखंड सरकार द्वारा बदरी-केदारनाथ मंदिर समिति समेत 51 अन्य मंदिरों के संचालन के लिए देवस्थानम बोर्ड बनाया गया है, जो पूर्ण रूप से असंवैधानिक है. याचिका में कहा गया है कि देवस्थानम बोर्ड के माध्यम से सरकार द्वारा चारधाम समेत करीब 51 अन्य मंदिरों का प्रबंधन अपने हाथ में लेना चाहती है, जो संविधान के अनुच्छेद 25 व 26 का उल्लंघन है.
वहीं, सुब्रह्मण्यम स्वामी की याचिका के खिलाफ देहरादून की रूलर लिटिगेशन संस्था ने हाई कोर्ट में इंटरवेंशन एप्लीकेशन दायर कर कहा है कि राज्य सरकार द्वारा बदरी-केदारनाथ मंदिर समिति को देवस्थानम बोर्ड के तहत लाना बिल्कुल सही है. सरकार के फैसले से किसी भी आस्था को नुकसान नहीं पहुंचता. लिहाजा, सुब्रह्मण्यम स्वामी की याचिका को खारिज किया जाए.