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जेलों में सीसीटीवी कैमरे और सुविधाओं पर HC में सुनवाई, डीजी जेल से मांगा शपथ पत्र - नैनीताल हाईकोर्ट

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने प्रदेश की जेलों सीसीटीवी कैमरे और अन्य सुविधाओं को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. अब इस मामले की अगली सुनवाई 5 अक्टूबर को होगी.

उत्तराखंड हाईकोर्ट
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Published : Sep 23, 2021, 5:15 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने प्रदेश की जेलों सीसीटीवी कैमरे और अन्य सुविधाओं को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में हुई. पूर्व में कोर्ट ने जेल महानिदेशक से पूछा था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का कितना पालन किया गया. राज्य के जेलों में कितने सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं, कैदियों के लिए जेल में रहने की क्या व्यवस्था है?

इसके अलावा कोर्ट ने जेल महानिदेशक से सवाल किया था कि जेल में कैदियों का क्या शिक्षा एवं रोजगार दिया जा रहा है. जेल मैनुअल में संशोधन किया गया है या नहीं. इसके साथ जेलों की क्षमता की जानकारी मांगी थी. कोर्ट ने इस सभी सवालों पर जेल महानिदेशक को स्पष्ट शपथपत्र पेश करने को कहा था.

पढ़ें- 'शक्तिमान' मौत मामले में मंत्री गणेश जोशी को बड़ी राहत, CJM कोर्ट ने किया बरी

इस पर जेल निदेशक ने शपथ पत्र पेश कर कहा गया था कि प्रथम चरण में देहरादून, हरिद्वार और सब जेल हल्द्वानी में सीसीटीवी कैमरे लगाने का निर्णय लिया गया है. दूसरे चरण में राज्य के सभी जेलों में सीसीटीवी कैमरे लगाने का निर्णय लिया गया है. कैदियों के रोजगार के लिए कौशल विकास योजना का सहयोग लिया जा रहा है.

इसके अलावा उन्होंने बताया कि कैदियों के जीवन सुधार हेतु आर्ट ऑफ लिविंग का सहारा लिया जा रहा है. जेलों में कैदियो के रहने के लिए आवासों के निर्माण हेतु टेंडर निकाला गया है और तीन नई जेल पिथौरागढ़, चंपावत व उधमसिंह नगर में बनाने का प्रस्ताव सरकार को भेजा है, जिनके बनने से इन जेलों से कैदियों को वहां शिफ्ट किया जाएगा.

पढ़ें- ... जब एकाएक देहरादून ISBT पहुंच गए CM धामी, अफसरों के छूटे पसीने

वर्तमान समय में इन जेलों में इनकी क्षमता से अधिक कैदी है. मामले के अनुसार सन्तोष उपाध्याय और अन्य ने अलग-अलग जनहित याचिकाएं दायर कर कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में एक आदेश जारी कर सभी राज्यों से कहा था कि वे अपने राज्य की जेलों में सीसीटीवी कैमरे लगाएं और जेलों को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराएं.

इसके साथ ही राज्य में खाली पड़े मानवाधिकार आयोग के पदों को भरने के आदेश भी जारी किए थे. लेकिन पांच साल बीत जाने के बाद भी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया. याचिकर्ताओं का कहना है कि सरकार को निर्देश दीए जाए कि वह सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देश का पालन करे. मामले में अगली सुनवाई 5 अक्टूबर को होगी.

देहरादून: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने प्रदेश की जेलों सीसीटीवी कैमरे और अन्य सुविधाओं को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में हुई. पूर्व में कोर्ट ने जेल महानिदेशक से पूछा था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का कितना पालन किया गया. राज्य के जेलों में कितने सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं, कैदियों के लिए जेल में रहने की क्या व्यवस्था है?

इसके अलावा कोर्ट ने जेल महानिदेशक से सवाल किया था कि जेल में कैदियों का क्या शिक्षा एवं रोजगार दिया जा रहा है. जेल मैनुअल में संशोधन किया गया है या नहीं. इसके साथ जेलों की क्षमता की जानकारी मांगी थी. कोर्ट ने इस सभी सवालों पर जेल महानिदेशक को स्पष्ट शपथपत्र पेश करने को कहा था.

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इस पर जेल निदेशक ने शपथ पत्र पेश कर कहा गया था कि प्रथम चरण में देहरादून, हरिद्वार और सब जेल हल्द्वानी में सीसीटीवी कैमरे लगाने का निर्णय लिया गया है. दूसरे चरण में राज्य के सभी जेलों में सीसीटीवी कैमरे लगाने का निर्णय लिया गया है. कैदियों के रोजगार के लिए कौशल विकास योजना का सहयोग लिया जा रहा है.

इसके अलावा उन्होंने बताया कि कैदियों के जीवन सुधार हेतु आर्ट ऑफ लिविंग का सहारा लिया जा रहा है. जेलों में कैदियो के रहने के लिए आवासों के निर्माण हेतु टेंडर निकाला गया है और तीन नई जेल पिथौरागढ़, चंपावत व उधमसिंह नगर में बनाने का प्रस्ताव सरकार को भेजा है, जिनके बनने से इन जेलों से कैदियों को वहां शिफ्ट किया जाएगा.

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वर्तमान समय में इन जेलों में इनकी क्षमता से अधिक कैदी है. मामले के अनुसार सन्तोष उपाध्याय और अन्य ने अलग-अलग जनहित याचिकाएं दायर कर कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में एक आदेश जारी कर सभी राज्यों से कहा था कि वे अपने राज्य की जेलों में सीसीटीवी कैमरे लगाएं और जेलों को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराएं.

इसके साथ ही राज्य में खाली पड़े मानवाधिकार आयोग के पदों को भरने के आदेश भी जारी किए थे. लेकिन पांच साल बीत जाने के बाद भी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया. याचिकर्ताओं का कहना है कि सरकार को निर्देश दीए जाए कि वह सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देश का पालन करे. मामले में अगली सुनवाई 5 अक्टूबर को होगी.

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