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नैनीताल HC में वन गुर्जरों के मामले की सुनवाई, PCCF वाइल्ड लाइफ समेत 7 डीएम तलब

वन गुर्जरों के मामले में सुनवाई करते हुए आज नैनीताल हाई कोर्ट ने पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ और सात जिलों के जिलाधिकारियों को तलब किया है. मामले की अगली सुनवाई 24 नवम्बर को होगी.

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नैनीताल हाई कोर्ट
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Published : Nov 17, 2021, 5:38 PM IST

नैनीताल: उत्तराखंड हाइ कोर्ट ने उत्तरकाशी व प्रदेश के अन्य वनों में रह रहे वन गुर्जरों को वनों से हटाए जाने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर आज सुनवाई की. आज सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से दायर शपथ पत्र से कोर्ट सन्तुष्ट नहीं हुई. जिस पर कोर्ट ने नाराजगी जताई जताते हुए समाज कल्याण के प्रमुख सचिव, पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ, जिला अधिकारी नैनीताल, उधमसिंह नगर, हरिद्वार, देहरादून, पौड़ी, टिहरी और उत्तरकाशी को व्यग्तिगत रूप से पेश होने के को कहा है.

हाईकोर्ट ने सभी जिलाधिकारियों से मामले में विस्तृत रिपोर्ट के साथ लाने को भी कहा है. पूर्व में कोर्ट ने जिलाधिकारी उत्तरकाशी व सरकार को निर्देश दिये थे कि वन गुर्जरों के लिये आवास व खाने पीने की सुविधा के साथ साथ उनके मवेशियों के लिये भी चारे की व्यवस्था करें. साथ ही सरकार से उनके विस्थापन के लिए दोबारा से एक कमेटी का गठन कर उसकी रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने को कहा था.

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आज मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खण्डपीठ में हुई. मामले के अनुसार थिंक एक्ट राइज फाउंडेशन के सदस्य अर्जुन कसाना व हिलामयन युवा ग्रामीण रामनगर की ओर से इस मामले में जनहित याचिका दायर की गई है. जिसमें कहा गया है कि उत्तरकाशी जनपद में लगभग 150 वन गुर्जरों व उनके मवेशियों को गोविन्द पशु विहार राष्ट्रीय पार्क में प्रवेश नहीं करने दिया जा रहा है. जिसके कारण वन गुर्जरों को खुले आसमान के नीचे रात गुजारनी पड़ रही है. उनके मवेशी भूख से मर रहे हैं.

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कोर्ट ने पूर्व में इसे मौलिक अधिकारों का हनन बताते हुए उत्तरकाशी के जिलाधिकारी व उद्यान उप निदेशक कोमल सिंह को निर्देश दिये थे कि वह सभी वन गुर्जरों के लिये आवास, खाने पीने के साथ ही दवाई की व्यवस्था करें. उनके मवेशियों के लिये भी चारे की व्यवस्था कर उसकी रिपोर्ट कोर्ट में प्रस्तुत करने को कहा था.

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याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि उत्तराखंड के जंगलों में लगभग 10 हजार से अधिक वन गुर्जर पिछले 150 साल से निवास करते आये हैं. अब सरकार उनको वनों से हटा रही है. जिसके कारण उनके मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है. उनको अपने हक-हकूकों से भी वंचित होना पड़ रहा है. उनके हितों को ध्यान में रखते हुए उन्हें वनों से विस्थापित न किया जाये. आज इसी मामले में हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. जिसमें पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ और सात जिलों के जिलाधिकारियों को तलब किया गया है. इस मामले की अगली सुनवाई 24 नवम्बर को होगी.

नैनीताल: उत्तराखंड हाइ कोर्ट ने उत्तरकाशी व प्रदेश के अन्य वनों में रह रहे वन गुर्जरों को वनों से हटाए जाने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर आज सुनवाई की. आज सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से दायर शपथ पत्र से कोर्ट सन्तुष्ट नहीं हुई. जिस पर कोर्ट ने नाराजगी जताई जताते हुए समाज कल्याण के प्रमुख सचिव, पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ, जिला अधिकारी नैनीताल, उधमसिंह नगर, हरिद्वार, देहरादून, पौड़ी, टिहरी और उत्तरकाशी को व्यग्तिगत रूप से पेश होने के को कहा है.

हाईकोर्ट ने सभी जिलाधिकारियों से मामले में विस्तृत रिपोर्ट के साथ लाने को भी कहा है. पूर्व में कोर्ट ने जिलाधिकारी उत्तरकाशी व सरकार को निर्देश दिये थे कि वन गुर्जरों के लिये आवास व खाने पीने की सुविधा के साथ साथ उनके मवेशियों के लिये भी चारे की व्यवस्था करें. साथ ही सरकार से उनके विस्थापन के लिए दोबारा से एक कमेटी का गठन कर उसकी रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने को कहा था.

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आज मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खण्डपीठ में हुई. मामले के अनुसार थिंक एक्ट राइज फाउंडेशन के सदस्य अर्जुन कसाना व हिलामयन युवा ग्रामीण रामनगर की ओर से इस मामले में जनहित याचिका दायर की गई है. जिसमें कहा गया है कि उत्तरकाशी जनपद में लगभग 150 वन गुर्जरों व उनके मवेशियों को गोविन्द पशु विहार राष्ट्रीय पार्क में प्रवेश नहीं करने दिया जा रहा है. जिसके कारण वन गुर्जरों को खुले आसमान के नीचे रात गुजारनी पड़ रही है. उनके मवेशी भूख से मर रहे हैं.

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कोर्ट ने पूर्व में इसे मौलिक अधिकारों का हनन बताते हुए उत्तरकाशी के जिलाधिकारी व उद्यान उप निदेशक कोमल सिंह को निर्देश दिये थे कि वह सभी वन गुर्जरों के लिये आवास, खाने पीने के साथ ही दवाई की व्यवस्था करें. उनके मवेशियों के लिये भी चारे की व्यवस्था कर उसकी रिपोर्ट कोर्ट में प्रस्तुत करने को कहा था.

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याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि उत्तराखंड के जंगलों में लगभग 10 हजार से अधिक वन गुर्जर पिछले 150 साल से निवास करते आये हैं. अब सरकार उनको वनों से हटा रही है. जिसके कारण उनके मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है. उनको अपने हक-हकूकों से भी वंचित होना पड़ रहा है. उनके हितों को ध्यान में रखते हुए उन्हें वनों से विस्थापित न किया जाये. आज इसी मामले में हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. जिसमें पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ और सात जिलों के जिलाधिकारियों को तलब किया गया है. इस मामले की अगली सुनवाई 24 नवम्बर को होगी.

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