नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने प्रदेश के सांसदों और विधायकों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमों की त्वरित सुनवाई हेतु सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी दिशा निर्देशों पर खुद संज्ञान लेकर सुनवाई की. कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश मनोज कुमार तिवारी और न्यायमूर्ति विवेक भारती शर्मा की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को फिर से निर्देश दिए हैं कि प्रदेश में सांसदों व विधायकों के खिलाफ कितने आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं और कितने अभी विचाराधीन है इनकी जानकारी दो सप्ताह में कोर्ट को दें.
कोर्ट ने पहले भी SC के निर्देशों पर लिया था संज्ञान: कोर्ट ने पहले भी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देश पर संज्ञान लिया था, लेकिन अभी तक सरकार ने विधायकों और सांसदों के खिलाफ विचाराधीन केसों की सूची कोर्ट में उपलब्ध नहीं कराई थी. जिस पर कोर्ट ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का अनुपालन करते हुए इस मामले में आज फिर से संज्ञान लिया है.
मामले के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2021 में सभी राज्यों के उच्च न्यायालयों को निर्देश दिए थे कि उनके वहां सांसदों और विधायकों के खिलाफ कितने मुकदमें विचाराधीन है, उनकी त्वरित सुनवाई कराएं.
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आईपीसी की धारा 321 का किया जा रहा गलत प्रयोग: राज्य सरकारें आईपीसी की धारा 321 का गलत उपयोग कर अपने सांसदों और विधायकों के मुकदमे वापस ले रही है. जैसे मुजफ्फरनगर दंगे के आरोपी साध्वी प्राची, संगीत सोम और सुरेश राणा का केस उत्तर प्रदेश सरकार ने वापस लिया. सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालयों को यह भी निर्देश दिए है कि राज्य सरकारें बिना उच्च न्यायलय की अनुमति के इनके केस वापस नहीं ले सकती. इनके केसों की शीघ्र निस्तारण हेतु स्पेशल कोर्ट का गठन करें.
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