नैनीतालः पूर्व मुख्यमंत्रियों की ओर से सरकारी आवास का किराया व अन्य भत्तों का बिल जमा न करने के मामले पर हाई कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है. हाई कोर्ट ने उत्तराखंड के एडिशनल सेक्रेटरी दीपेंद्र कुमार चौधरी को याचिका में पक्षकार बनाया है. साथ ही उन्हें कारण बताओ नोटिस भी जारी किया है.
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री व महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी समेत पूर्व सीएम रमेश पोखरियाल निशंक को नैनीताल हाई कोर्ट से अभी राहत मिलती नहीं दिख रही है. क्योंकि, बकाया मामले पर सुनवाई करते हुए आज हाई कोर्ट के न्यायाधीश शरद कुमार शर्मा की एकल पीठ ने राज्य संपत्ति विभाग के अपर सचिव दीपेंद्र कुमार चौधरी को कारण बताओ नोटिस जारी किया है. साथ ही सीजेएम देहरादून को नोटिस जारी करने की जिम्मेदारी देते हुए एक हफ्ते के भीतर जवाब पेश करने को कहा है.
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वहीं, याचिकाकर्ता की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री व महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को मामले में संविधान के अनुछेद-361 में नोटिस भेजा गया था. जिसके बाद आज भगत सिंह कोश्यारी को भी अवमानना मामले में सम्मिलित कर दिया गया है. जिस पर अब सुनवाई सोमवार को होगी. जबकि, पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा और भुवन चंद्र खंडूड़ी सुप्रीम कोर्ट से अवमानना नोटिस पर रोक लगवा चुके हैं.
बता दें कि हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने मई 2019 में सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों से सरकारी आवासों का किराया व अन्य सुविधाओं का भुगतान 6 महीने के भीतर जमा करने को कहा था, लेकिन अभी तक उन्होंने भुगतान नहीं किया है. इसलिए रूरल लिटेगेशन संस्था ने पूर्व मुख्यमंत्री समेत मुख्य सचिव के खिलाफ अवमानना याचिका दायर की है.
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केंद्रीय शिक्षा मंत्री निशंक ने जमा किए सिर्फ 17 हजार रुपये का बकाया
आज मामले में सुनवाई के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक' की ओर से कोर्ट में जवाब पेश किया गया. जिसमें बताया गया कि उन्होंने किराये के करीब 10 लाख 60 हजार 502 रुपये के एवज में 17 हजार 207 रुपये जमा कर दिए हैं. जिसका याचिकाकर्ता के अधिवक्ता की ओर से विरोध किया गया और बताया कि जो पैसा निशंक की ओर से जमा किया गया है, वो केवल बिजली और पानी के बिल का बकाया है. जिस पर कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए दीपेंद्र कुमार चौधरी को मामले में पक्षकार बनाते हुए जवाब पेश करने के आदेश दिए हैं.
गौर हो कि देहरादून की रूरल लिटिगेशन संस्था ने पूर्व मुख्यमंत्रियों से बाजार भाव से सरकारी घर का किराया वसूलने को लेकर जनहित याचिका दायर की थी, मामले में सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने सभी मुख्यमंत्रियों को बाजार भाव से किराया जमा करने के आदेश दिए थे. जिसके बाद राज्य सरकार की ओर से पूर्व मुख्यमंत्रियों के मामले में अध्यादेश जारी कर सरकारी घर समेत अन्य भक्तों को जमा न करने की छूट दी.
इस फैसले को याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में चुनौती दी. जिसके बाद मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने राज्य सरकार की ओर से बनाए गए एक्ट को असंवैधानिक करार देते हुए पूर्व मुख्यमंत्रियों बकाया जमा करने के आदेश दिए थे, लेकिन अब तक बकाया जमा न होने पर याचिकाकर्ता ने अवमानना याचिका दायर की है.