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ग्रामीण महिला दिवस: दिव्यांग सुमनलता दूसरों के लिए बनी मिसाल, स्वरोजगार की जगाई अलख

हल्द्वानी के डहरिया निवासी सुमनलता ने दिव्यांग होने के बावजूद खुद स्वरोजगार अपनाते हुए दूसरे को रोजगार से जोड़कर मिसाल कायम कर रही हैं. सुमनलता ने अभी तक पांच हजार से अधिक महिलाओं को सिलाई, बुनाई, कढ़ाई का प्रशिक्षण देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाया है. साथ ही सुमनलता गरीब बच्चों को ट्यूशन के माध्यम से शिक्षित भी कर रही हैं

दिव्यांग सुमनलता दूसरों के लिए बन रही है मिसाल.
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Published : Oct 15, 2019, 3:49 PM IST

Updated : Oct 15, 2019, 4:05 PM IST

हल्द्वानी: मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो मंजिल मिल ही जाती है. इच्छा शक्ति से लिया आपका एक फैसला आपकी ही नहीं, दूसरों की जिंदगी भी बदल सकता है. जी हां कुछ ऐसा ही कर दिखाया है, हल्द्वानी के डहरिया निवासी सुमनलता ने दिव्यांग होने के बावजूद स्वरोजगार अपनाते हुए दूसरे को रोजगार से जोड़कर मिसाल कायम कर रही हैं.

दिव्यांग सुमनलता दूसरों के लिए बनी मिसाल.

बता दें कि सुमनलता कश्यप का शरीर बचपन से विकलांग है. इन विपरीत परिस्थितियों में हिम्मत हारने के बजाय सुमनलता ने ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई की. जिसके बाद से वो स्वरोजगार के जरिये सैकड़ों महिलाओं को रोजगार दिलाकर उनके आर्थिक उत्थान में अहम भूमिका निभा रही है. सुमनलता इन दिनों सैकड़ों महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बनी हैं. एक संस्था के सहयोग से अपना स्वरोजगार प्रशिक्षण खोला है, जहां वो सुमनलता ने अभी तक पांच हजार से अधिक महिलाओं को सिलाई, बुनाई, कढ़ाई का प्रशिक्षण देकर उन्हें आत्मनिर्भर बना चुकी है. साथ ही सुमनलता गरीब बच्चों को ट्यूशन के माध्यम से शिक्षित भी कर रही हैं

सुमन लाता ने बताया कि दिव्यांग बेटी के रूप में वो मां-बाप पर बोझ नहीं बनना चाहती थी. बचपन से ही उनके मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा था. जिसके चलते उन्होंने आत्मनिर्भर बनने की ठानी और सिलाई-कढ़ाई के लिए लगाए गए कैंप में उन्होंने प्रशिक्षण लिया. जहां से उन्होंने अपने नई जिंदगी की शुरुआत की और एक पुरानी सिलाई मशीन खरीद कर सिलाई कढ़ाई का काम शुरू किया, और घर का खर्चा चलाने लगी. जिसके बाद से सुमनलता ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और दिव्यांग होने के बावजूद दूसरों के लिए मिसाल बनते हुए सैकड़ों महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ा है. साथ ही बताया कि सिलाई-कढ़ाई से समय निकालने के बाद वो करीब 50 बच्चों को किताबी शिक्षा भी देती हैं.

ये भी पढ़े: कॉलेज प्रबंधन को सद्बुद्धि प्रदान करने के लिए छात्रों ने आयोजन किया बुद्धि शुद्धि यज्ञ

सुमनलता ने बताया कि दिव्यांग होने के बावजूद आज तक उन्होंने किसी के आगे के कोई भी सहायता लिए हाथ नहीं फैलाया और ना ही सरकार और समाज कल्याण विभाग से उन्हें आज तक कोई मदद नहीं मिली. उन्होंने बताया कि ग्रेजुएशन के बाद अगर वो चाहती तो नौकरी भी कर सकती थी. लेकिन आत्म सम्मान और दूसरे महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्होंने स्वरोजगार चुना.

हल्द्वानी: मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो मंजिल मिल ही जाती है. इच्छा शक्ति से लिया आपका एक फैसला आपकी ही नहीं, दूसरों की जिंदगी भी बदल सकता है. जी हां कुछ ऐसा ही कर दिखाया है, हल्द्वानी के डहरिया निवासी सुमनलता ने दिव्यांग होने के बावजूद स्वरोजगार अपनाते हुए दूसरे को रोजगार से जोड़कर मिसाल कायम कर रही हैं.

दिव्यांग सुमनलता दूसरों के लिए बनी मिसाल.

बता दें कि सुमनलता कश्यप का शरीर बचपन से विकलांग है. इन विपरीत परिस्थितियों में हिम्मत हारने के बजाय सुमनलता ने ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई की. जिसके बाद से वो स्वरोजगार के जरिये सैकड़ों महिलाओं को रोजगार दिलाकर उनके आर्थिक उत्थान में अहम भूमिका निभा रही है. सुमनलता इन दिनों सैकड़ों महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बनी हैं. एक संस्था के सहयोग से अपना स्वरोजगार प्रशिक्षण खोला है, जहां वो सुमनलता ने अभी तक पांच हजार से अधिक महिलाओं को सिलाई, बुनाई, कढ़ाई का प्रशिक्षण देकर उन्हें आत्मनिर्भर बना चुकी है. साथ ही सुमनलता गरीब बच्चों को ट्यूशन के माध्यम से शिक्षित भी कर रही हैं

सुमन लाता ने बताया कि दिव्यांग बेटी के रूप में वो मां-बाप पर बोझ नहीं बनना चाहती थी. बचपन से ही उनके मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा था. जिसके चलते उन्होंने आत्मनिर्भर बनने की ठानी और सिलाई-कढ़ाई के लिए लगाए गए कैंप में उन्होंने प्रशिक्षण लिया. जहां से उन्होंने अपने नई जिंदगी की शुरुआत की और एक पुरानी सिलाई मशीन खरीद कर सिलाई कढ़ाई का काम शुरू किया, और घर का खर्चा चलाने लगी. जिसके बाद से सुमनलता ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और दिव्यांग होने के बावजूद दूसरों के लिए मिसाल बनते हुए सैकड़ों महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ा है. साथ ही बताया कि सिलाई-कढ़ाई से समय निकालने के बाद वो करीब 50 बच्चों को किताबी शिक्षा भी देती हैं.

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सुमनलता ने बताया कि दिव्यांग होने के बावजूद आज तक उन्होंने किसी के आगे के कोई भी सहायता लिए हाथ नहीं फैलाया और ना ही सरकार और समाज कल्याण विभाग से उन्हें आज तक कोई मदद नहीं मिली. उन्होंने बताया कि ग्रेजुएशन के बाद अगर वो चाहती तो नौकरी भी कर सकती थी. लेकिन आत्म सम्मान और दूसरे महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्होंने स्वरोजगार चुना.

Intro:sammry-ग्रामीण महिला दिवस स्पेशल - दिव्यांग सुमनलता दूसरों के लिए बन रही है मिसाल अभी तक स्वरोजगार से जोड़न चुकी है सैकड़ों महिलाओं को।

एंकर- मन में इच्छा शक्ति और हौसले बुलंद हो तो एक फैसला अपनी ही नहीं दूसरों की जिंदगी बदल सकता है जी हां कुछ ऐसा ही कर दिखाया है हल्द्वानी के डहरिया की रहने वाली दिव्यांग महिला सुमनलता ने। सुमनलता दिव्यांग होने के बावजूद खुद स्वरोजगार अपनाते हुए दूसरे को स्वरोजगार से जोड मिसाल कायम कर रही हैं।


Body:हल्द्वानी के डहरिया निवासी सुमनलता कश्यप बचपन से ही 70 फ़ीसदी विकलांगता से ग्रसित हैं लेकिन इन विपरीत परिस्थितियों में उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और ग्रेजुएशन तक पढ़ाई की। सुमन लाता बताती है कि बचपन से ही उनके मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा था लेकिन दिव्यांग बेटी के रूप में मां बाप पर बोझ नहीं बनना चाहती थी इसलिए उन्होंने आत्मनिर्भर बनने की ठान ली। और एक दिन सिलाई कढ़ाई के लगाए गए कैंप में जाकर उन्होंने प्रशिक्षण लिया जहां से उन्होंने अपने नई जिंदगी की शुरुआत की और एक पुरानी सिलाई मशीन खरीद कर सिलाई कढ़ाई का काम शुरू कर दिया और गरीब परिवार की बोझ समझे जाने वाली दिव्यांग बेटी घर का खर्चा चलाने लगी। जिसके बाद सुमन लता पीछे मुड़कर नहीं देखा और आज दिव्यांग होने के बावजूद भी दूसरे के लिए मिसाल बनी हुई है और सैकड़ों महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ चुकी हैं।

सुमनलता इन दिनों सैकड़ों महिलाओं के प्रेरणा स्रोत बनी हुई है एक संस्था के सहयोग से अपना स्वरोजगार प्रशिक्षण खोला है जहां महिलाओं को सिलाई ,बुनाई ,कढ़ाई का प्रशिक्षण दे रही हैं और महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही हैं। यही नहीं सुमनलता ने अभी तक पांच सौ से अधिक महिलाओं को सिलाई बुनाई कढ़ाई का प्रशिक्षण देकर उनको आत्मनिर्भर बना चुकी है।

यही नहीं सुमन लता शिक्षा से वंचित बच्चों को भी ट्यूशन के माध्यम से शिक्षित कर रही हैं उन्होंने बताया कि उन्होंने शिक्षा में ग्रेजुएशन कर रखा है ऐसे में बच्चों को शिक्षा देना उनका दायित्व बनता है सिलाई कढ़ाई से समय निकालने के बाद करीब 50 बच्चों को किताबी शिक्षा भी देती है।

सुमनलता ने बताया कि दिव्यांग होने के बावजूद आज तक उन्होंने किसी के आगे के कोई भी सहायता लिए हाथ नहीं फैलाया । ग्रेजुएशन के बाद चाहती तो नौकरी भी कर सकती थी लेकिन आत्म सम्मान और दूसरे महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्वरोजगार चुना।
उन्होंने कहा कि दिव्यांग होने के बावजूद भी सरकार और समाज कल्याण विभाग से आज तक कोई मदद नहीं मिला। सरकार दिव्यांगों के उत्थान के लिए बड़े-बड़े दावे तो करती है लेकिन सरकार से दिव्यांगों को दी जाने वाली योजनाओं का लाभ आज तक उनको नहीं मिला।

बाइट- सुमनलता दिव्यांग महिला


Conclusion:ग्रामीण महिला दिवस के मौके पर ईटीवी भारत सुमनलता के उनके जज्बे और हौसले को सलाम करता है उम्मीद है कि सुमनलता इसी तरह से महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत रहेगी और स्वावलंबी बन अन्य महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाएंगी।
Last Updated : Oct 15, 2019, 4:05 PM IST
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