हल्द्वानी: मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो मंजिल मिल ही जाती है. इच्छा शक्ति से लिया आपका एक फैसला आपकी ही नहीं, दूसरों की जिंदगी भी बदल सकता है. जी हां कुछ ऐसा ही कर दिखाया है, हल्द्वानी के डहरिया निवासी सुमनलता ने दिव्यांग होने के बावजूद स्वरोजगार अपनाते हुए दूसरे को रोजगार से जोड़कर मिसाल कायम कर रही हैं.
बता दें कि सुमनलता कश्यप का शरीर बचपन से विकलांग है. इन विपरीत परिस्थितियों में हिम्मत हारने के बजाय सुमनलता ने ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई की. जिसके बाद से वो स्वरोजगार के जरिये सैकड़ों महिलाओं को रोजगार दिलाकर उनके आर्थिक उत्थान में अहम भूमिका निभा रही है. सुमनलता इन दिनों सैकड़ों महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बनी हैं. एक संस्था के सहयोग से अपना स्वरोजगार प्रशिक्षण खोला है, जहां वो सुमनलता ने अभी तक पांच हजार से अधिक महिलाओं को सिलाई, बुनाई, कढ़ाई का प्रशिक्षण देकर उन्हें आत्मनिर्भर बना चुकी है. साथ ही सुमनलता गरीब बच्चों को ट्यूशन के माध्यम से शिक्षित भी कर रही हैं
सुमन लाता ने बताया कि दिव्यांग बेटी के रूप में वो मां-बाप पर बोझ नहीं बनना चाहती थी. बचपन से ही उनके मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा था. जिसके चलते उन्होंने आत्मनिर्भर बनने की ठानी और सिलाई-कढ़ाई के लिए लगाए गए कैंप में उन्होंने प्रशिक्षण लिया. जहां से उन्होंने अपने नई जिंदगी की शुरुआत की और एक पुरानी सिलाई मशीन खरीद कर सिलाई कढ़ाई का काम शुरू किया, और घर का खर्चा चलाने लगी. जिसके बाद से सुमनलता ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और दिव्यांग होने के बावजूद दूसरों के लिए मिसाल बनते हुए सैकड़ों महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ा है. साथ ही बताया कि सिलाई-कढ़ाई से समय निकालने के बाद वो करीब 50 बच्चों को किताबी शिक्षा भी देती हैं.
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सुमनलता ने बताया कि दिव्यांग होने के बावजूद आज तक उन्होंने किसी के आगे के कोई भी सहायता लिए हाथ नहीं फैलाया और ना ही सरकार और समाज कल्याण विभाग से उन्हें आज तक कोई मदद नहीं मिली. उन्होंने बताया कि ग्रेजुएशन के बाद अगर वो चाहती तो नौकरी भी कर सकती थी. लेकिन आत्म सम्मान और दूसरे महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्होंने स्वरोजगार चुना.