हल्द्वानी: भारत में अलग-अलग राज्यों की अलग-अलग संस्कृति है. अलग-अलग पहनावा है. अलग-अलग खानपान है. उत्तराखंड की संस्कृति में भी कई तरह के परिधान हैं. इनमें से एक विशिष्ट परिधान है 'पिछौड़ा', जो सुहागन की पहचान है. पिछौड़ा कुमाऊं के अंदर हर शुभ मंगल कार्यों का प्रतीक माना जाता है. कुमाऊं के प्रवेश द्वार हल्द्वानी में इन दिनों महिलाओं को पिछौड़ा बनाने की ट्रेनिंग दी जा रही है.
पिछौड़ा बनाने की दी जा रही ट्रेनिंग: कुमाऊं में दुल्हन के परिधान को लहंगा पिछौड़ा का नाम दिया गया है. पिछौड़ा को नई पहचान देने के लिए जिला उद्योग केंद्र के ग्रोथ सेंटर में 20 से 25 महिलाओं को पिछौड़ा तैयार करने के लिए दो माह का तकनीकी प्रशिक्षण दिया जा रहा है. 19 नवंबर से 8 जनवरी तक चलने वाले इस प्रशिक्षण में मास्टर ट्रेनर महिलाओं को पिछौड़ा बनाने के तकनीकी टिप्स सिखा रहे हैं. पिछौड़ा बनाने का तकनीकी प्रशिक्षण हासिल करने के बाद महिलाएं आत्मनिर्भर बन सकेंगी. क्योंकि अब पिछौड़ा की मांग सिर्फ उत्तराखंड नहीं, बल्कि राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी है. उद्योग निदेशालय ने भी पिछौड़ा के लिए जीआई (जियोग्राफिकल इंडिकेटर) टैग के लिए आवेदन किया है.
हर रंग और डिजाइन का महत्वः पिछौड़ा कितना आकर्षक होता है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसे पहाड़ की हर दुल्हन को पहनाया जाता है. पिछौड़ा में प्रयोग होने वाले हर रंग का और उन रंगों से बनने वाले हर डिजाइन का भी अपना विशेष महत्व है. लगभग 3 मीटर लंबे व सवा मीटर चौड़े सफेद चिकन के कपड़े को हल्दी के पीले रंग में रंगकर बनाया जाता है. सफेद रंग शांति, शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक है. जबकि पीला रंग आपके मन की खुशी व प्रसन्नता को जाहिर करता है. साथ ही इसमें बने शंख और स्वास्तिक के डिजाइन ऊर्जा, वैभव और धार्मिकता के सूचक हैं.
विदेशों में भी डिमांडः पिछौड़ा अब देश में ही नहीं बल्कि, विदेशों में भी अपनी पहचान बनाने लगा है. दिल्ली में लगने वाला ट्रेड फेयर हो या फिर देश के अंदर होने वाले बड़े कार्यक्रमों में लगने वाले स्टॉल सब में पिछौड़ा की काफी डिमांड है. आजकल इसे युवतियां स्टॉल के रूप में भी अनेक मांगलिक शुभ कार्य और स्वागत कार्यक्रमों में प्रतीक के तौर पर पहनती हैं.
आत्मनिर्भर बनने की ओर महिलाएंः पिछौड़ा बनाने की ट्रेनिंग ले रही महिलाओं के मुताबिक 2 से 3 घंटे में एक पिछौड़ा को तैयार कर लेती हैं. ट्रेनिंग के शुरुआती दिनों में तो थोड़ा सा कठिनाई जरूर थी, लेकिन अब महिलाएं काम सीखने के प्रति काफी उत्साहित नजर आ रही हैं. महिलाओं का मानना है कि यह ट्रेनिंग उनके लिए काफी महत्वपूर्ण है. क्योंकि आने वाले दिनों में पिछौड़ा बनाने की ट्रेनिंग से उन्हें आत्मनिर्भर बनना है.